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विलक्षण मानव मस्तिष्क: सुपर कंप्यूटर से भी आगे

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Last updated: November 8, 2024 12:58 pm
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विलक्षण मानव मस्तिष्क सुपर कंप्यूटर से भी आगे
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मानव शरीर परमात्मा की अद्भुत रचना है और इस विलक्षण यंत्र का संचालन कर्ता है मस्तिष्क, जिसकी रचना और कार्य और भी अद्भुत और विलक्षण है। मानव खोपड़ी रूपी छोटे से पिटारे में स्थित इस अद्भुत वस्तु की क्षमताओं को आंकना ना मुमकिन है। आज तक इसकी 20% क्षमता का ही उपयोग कर मानव फूला नहीं समाता है। सुई से लेकर हवाई जहाज, परमाणु बम, कम्प्यूटर, सुपर कंप्यूटर और भी अनेकों चीजें इसी अलादीन के चिराग से ही निकली है। इसके बाद भी छोटा सा लगने वाला मस्तिष्क की जादुई क्षमताओं और गतिविधियों को मापा नहीं जा सकता। आज हम जानेंगे इसके क्षमता का सत प्रतिशत सदुपयोग और कई रोचक जानकारी से भी पर्दा हटाएंगे।

Contents
  • मानव मस्तिष्क: सुपर कंप्यूटर से भी आगे
  • मस्तिष्क और सुपर कंप्यूटर में फर्क:
  • क्या मस्तिष्क की बराबरी कर पाएंगे कंप्यूटर?
  • आध्यात्म और विज्ञान 
  • अपनी ही क्षमताओं से अचंभित होना दुर्भाग्यपूर्ण: 
  • निष्कर्ष

मानव मस्तिष्क: सुपर कंप्यूटर से भी आगे

जब भी हम कंप्यूटर की शक्ति और दक्षता की बात करते हैं, अक्सर ‘सुपर कंप्यूटर’ का जिक्र आता है। ये मशीनें लाखों गणनाएँ एक सेकंड में कर सकती हैं और वैज्ञानिक अनुसंधान, मौसम पूर्वानुमान, अंतरिक्ष अध्ययन जैसी जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए बनाई गई हैं। लेकिन इन सभी उपलब्धियों के बावजूद भी मानव मस्तिष्क आज भी किसी भी सुपर कंप्यूटर से अधिक जटिल और प्रभावी है। इसे “सुपर कंप्यूटर का बाप” कहना अनुचित नहीं होगा।

मस्तिष्क और सुपर कंप्यूटर में फर्क:

मानव मस्तिष्क और सुपर कंप्यूटर के बीच का सबसे बड़ा फर्क यह है कि मस्तिष्क सिर्फ गणनाएँ करने तक ही सीमित नहीं है। मस्तिष्क में असंख्य तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) होती हैं, जो आपस में मिलकर एक जटिल नेटवर्क बनाती हैं। इसके माध्यम से हमारा मस्तिष्क, याद रखने, निर्णय लेने, भावनाओं को महसूस करने,मल्टी-टास्किंग,भावनात्मक और रचनात्मक क्षमताएं,सोचने की स्वतंत्रताऔर प्रतिक्रिया देने जैसे अनगिनत कार्य करता है। वहीं, सुपर कंप्यूटर केवल संगणनाओं तक सीमित रहते हैं, जिनमें केवल इनपुट डेटा के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

मस्तिष्क में लगभग 86 बिलियन न्यूरॉन्स होते हैं, जो एक दूसरे से संपर्क कर हर तरह की गतिविधि को संचालित करते हैं। ये न्यूरॉन्स इतनी कुशलता से काम करते हैं कि हमारा मस्तिष्क विचारों और भावनाओं को समझने के साथ ही, अनुभवों को स्मृतियों में बदलने का काम करता है। वहीं, सुपर कंप्यूटर में ऐसा कोई ‘नेटवर्क’ नहीं होता जो उसे संवेदनशीलता प्रदान कर सके।

एक दिलचस्प तथ्य यह है कि एक सुपर कंप्यूटर को अपनी प्रक्रियाओं के लिए जबरदस्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जबकि मानव मस्तिष्क बेहद कम ऊर्जा पर काम कर सकता है। मस्तिष्क का औसतन वज़न 1.4 किलोग्राम होता है और यह 20 वॉट(एक बल्ब) से भी कम ऊर्जा का उपयोग करता है। 

क्या मस्तिष्क की बराबरी कर पाएंगे कंप्यूटर?

हाल के वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग में कई महत्वपूर्ण विकास हुए हैं, जिससे सुपर कंप्यूटर की क्षमताएं बढ़ी हैं। ये तकनीकें हमें अपने मस्तिष्क के समान निर्णय लेने वाले और खुद से सीखने वाले सिस्टम बनाने में मदद कर रही हैं जो एक प्राथमिक चरण है। हालांकि, आज की तारीख में कोई भी तकनीक मानव मस्तिष्क की संपूर्ण क्षमता को पूरी तरह से नहीं समझ पाई है।

आध्यात्म और विज्ञान 

आज भी विज्ञान आध्यात्म से काफ़ी दूर है कहते हैं विज्ञान की सोच जहां खत्म होती है अध्यात्म की वहां से शुरुवात होती है। परमात्मा ने मानव शरीर में पूरा मसाला भर रखा है, मस्तिष्क और उससे लगे मेरुदंड में स्थित सप्तचक्र (कुण्डलिनी शक्ति) पुरे ब्रह्मांड का रहस्य छुपाये हुए है। ईस पिंड(शरीर) से ही पूरे ब्रह्मांड का रहस्य को जाना जा सकता है। मानव ने अज्ञानता वश इसे मिट्टी ही मान बैठा हैं इस मिट्टी से सोना भी बनाया जा सकता है उसके लिए सतगुरु की आवश्यकता होती है।

विज्ञान आज तक सर्फ दो आने की कमाई कर पाया है,विज्ञान की सारी क्षमताओं से ऊपर आध्यात्म का दुर्लभ सतज्ञान आज सर्व सुलभ हो गया है इस मिट्टी को अब सोना बनाने का समय आ चुका है। इस मिट्टी के शरीर को सत ज्ञान और भक्ति साधना रुपी शक्ति तपाकर बहुमूल्य सोना बना देता है। और मानव जीवन के मूल उद्देश्य की प्राप्ति कराता है। सतगुरू से दीक्षा प्राप्त कर मानव जीवन का सदुपयोग कर सतलोक जाया जा सकता है, जीवन को सफल बनाया जा सकता है। 

एक झलक अध्यात्म की 

अपनी ही क्षमताओं से अचंभित होना दुर्भाग्यपूर्ण: 

मानव जाति अपने क्षमता हनुमान जी और नल नील की तरह भूल गया है, आज मानव क्षणिक सुख और कृत्रिमता के वश होकर अपने मूल उद्देश्य और क्षमता को भूल चूका है। थोड़ी सी उपलब्धि से फूले नहीं समा रहा है जो दुर्भाग्य पूर्ण है। आज उसे याद दिलाया जा रहा है कि सतलोक हमारा ठिकाना है, सत्य भक्ति करके वहां जाना है। 

निष्कर्ष

“मानुष जन्म दुर्लभ है मिले न बारंबार,

 तरुवर से पत्ता टूट गया बहुर न लगता डार।।”

विश्व में एक मात्र तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज महराज हैं जो मानव को उसके वास्तविक उद्देश्य से अवगत कराकर उसे उसके निज स्थान सतलोक की राह दिखा रहे हैं।इस मशीनी युग (कलयुग) में मानव अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है, अपनी क्षमता भूल चूका है।

हम मानव समाज से आग्रह करते हैं कि दो आनें की उपलब्धियों में अपना बहुमुल्य समय न गवाकर सत ज्ञान से सत प्रतिशत लाभ उठा सकते हैं। आज संत रामपाल जी महाराज से उपदेश प्राप्त लोगों को शारीरिक, मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो रहे हैं, लाईलाज बीमारियों से मुक्ति मिल रही है और वे इस सच्चे ज्ञान का अलख जगा रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश प्राप्त कर अपने और अपनो का जीवन सफल बना रहे हैं।

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