अहमदाबाद, 10 जनवरी: गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को पत्रकार महेश लांगा को जीएसटी धोखाधड़ी और जालसाजी के एक मामले में नियमित जमानत दी। यह मामला अहमदाबाद अपराध शाखा (डीसीबी) द्वारा दर्ज किया गया था, जिसमें उन पर फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ उठाने और सरकारी खजाने को चूना लगाने का आरोप लगाया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
महेश लांगा, जो एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं, को 8 अक्टूबर 2024 को गिरफ्तार किया गया था। यह गिरफ्तारी डीजीजीआई (वस्तु एवं सेवा कर खुफिया महानिदेशालय) की शिकायत पर की गई थी। आरोप है कि लांगा ने फर्जी दस्तावेजों और जाली बिलों के माध्यम से कर चोरी करने के लिए 220 से अधिक फर्जी फर्मों का संचालन किया।
एफआईआर के अनुसार, लांगा और उनके सहयोगियों ने फर्जी पते और जाली दस्तावेजों के सहारे कई फर्मों को जीएसटी पंजीकरण दिलाया। इन फर्मों का उपयोग कर जाली इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाया गया और इसे वास्तविक लेन-देन के रूप में दिखाया गया।
अदालत में क्या क्या हुआ?
गुजरात हाईकोर्ट में महेश लांगा की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गईं।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “एफआईआर में लगाए गए आरोपों, उपलब्ध साक्ष्यों, और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए यह न्यायोचित है कि आवेदक को नियमित जमानत प्रदान की जाए। हालांकि, आवेदक को तभी रिहा किया जाएगा जब वह किसी अन्य मामले में हिरासत में न हो।”
जमानत की शर्तें
अदालत ने महेश लांगा को जमानत देते हुए 10,000 रुपये के निजी बांड और इतनी ही राशि के जमानतदार की शर्त लगाई। अदालत ने स्पष्ट किया कि लांगा को रिहा करने के पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं।
अभियोजन पक्ष के आरोप
अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में दावा किया कि महेश लांगा ने डीए एंटरप्राइजेज नामक फर्म का संचालन किया, जिसने फर्जी फर्मों के साथ लेन-देन कर इनपुट टैक्स क्रेडिट का गलत तरीके से लाभ उठाया।
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उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने भाई और पत्नी के नाम पर फर्जी फर्मों का पंजीकरण कराया और पर्दे के पीछे से इनका प्रबंधन किया। अभियोजन पक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि इन फर्मों के माध्यम से किए गए फर्जी लेन-देन ने सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया।
लांगा का पक्ष
महेश लांगा के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में लगभग 17 महीने की देरी हुई और यह पूरा मामला दस्तावेजी साक्ष्यों पर आधारित है, जो पहले से ही जांच एजेंसियों के पास मौजूद हैं। उन्होंने यह भी दलील दी कि जीएसटी अधिनियम के तहत ऐसे मामलों की जांच के लिए एक अलग प्रक्रिया निर्धारित है और इस मामले में उस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
लांगा के वकीलों ने यह भी कहा कि वह कथित राशि को लौटाने के लिए तैयार हैं, जिसे फर्जी तरीके से हासिल करने का आरोप उन पर लगाया गया है। उन्होंने यह दावा किया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से अस्थिर और बिना किसी ठोस आधार के हैं।
हाईकोर्ट का निर्णय
गुजरात हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि चूंकि मामला काफी हद तक दस्तावेजी साक्ष्यों पर आधारित है और आरोपी पिछले तीन महीनों से हिरासत में है, इसलिए जांच लगभग पूरी हो चुकी है। अदालत ने कहा कि इस स्थिति में आरोपी को जमानत देना न्यायोचित है।
जमानत के बावजूद हिरासत जारी
हालांकि, महेश लांगा अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उनके खिलाफ राजकोट पुलिस द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में भी जांच चल रही है। इस मामले में भी उन पर धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप हैं।
अदालती आदेश का महत्व
यह मामला न केवल जीएसटी धोखाधड़ी जैसे आर्थिक अपराधों पर ध्यान केंद्रित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे जाली दस्तावेजों और फर्जी फर्मों के माध्यम से कर चोरी की जाती है।
निष्कर्ष
गुजरात हाईकोर्ट का यह निर्णय इस बात का संकेत है कि आर्थिक अपराधों की जांच और अभियोजन के दौरान न्यायालय साक्ष्यों और परिस्थितियों का संतुलित आकलन करता है। महेश लांगा के मामले ने जीएसटी कानूनों और उनके अनुपालन में पारदर्शिता और निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता को भी उजागर किया है।