Child Trafficking: हर साल देश में हज़ारों बच्चे लापता हो जाते हैं। किसी भी परिवार के लिए अपने बच्चे से बिछड़ने से बड़ी कोई पीड़ा नहीं हो सकती। लेकिन इस दर्द का एक और भयावह पहलू भी है, चोरी हुए बच्चों के साथ की जाने वाली अमानवीयता।
इन बच्चों को गलत हाथों में पहुंचा दिया जाता है, जहां उन्हें बंधक बनाकर मज़दूरी कराई जाती है, देह व्यापार में धकेला जाता है, भीख मंगवाई जाती है, और कई बार उनके अंग तक निकालकर बेच दिए जाते हैं। यह घिनौना कारोबार वर्षों से चलता आ रहा है, जो मानवता पर एक कलंक है।
मासूम बच्चे Child Trafficking का शिकार: मुख्य बिंदु
- देश में हर दिन औसतन 174 बच्चे लापता हो जाते हैं। इनमें से करीब 75% लड़कियां होती हैं।
- यौन शोषण, अंग व्यापार, भीख मंगवाना, बंधुआ मजदूरी, निःसंतान दंपतियों को बेचना जैसे घिनौने कार्यों के लिए बच्चों की तस्करी की जाती है।
- 2 से 14 साल तक के बच्चे सबसे अधिक निशाने पर होते हैं, क्योंकि वे कमजोर और आसानी से बहकाए जा सकते हैं।
- करीब 50% बच्चे वापस मिलते हैं, लेकिन बाकी बच्चों का कोई अता-पता नहीं चल पाता।
- BNS की विभिन्न धाराएं (जैसे 143, 366A, 372, 373) इस अपराध के लिए कठोर सज़ा और जुर्माने का प्रावधान करती हैं।
- पुलिस, प्रशासन और NGO मिलकर कई बच्चों को बरामद करने में सफल रहे हैं, लेकिन चुनौती अब भी बड़ी है।
- जागरूकता, त्वरित कार्रवाई और कानून का सही उपयोग ही इस अपराध को रोकने के सबसे बड़े हथियार हैं।
- हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह संदिग्ध गतिविधियों की सूचना पुलिस को तुरंत दें और चुप न बैठें।
Child Trafficking मासूम बचपन पर मंडराता खतरा: हर दिन लापता होते हैं सैकड़ों बच्चे
देश में हर दिन औसतन 174 बच्चे लापता हो जाते हैं। इनमें से करीब 75% लड़कियां होती हैं, जो विशेष रूप से असुरक्षित मानी जाती हैं। लापता बच्चों में लगभग 50% बच्चे किसी तरह वापस घर लौट आते हैं, लेकिन बाकी का क्या होता है, इसका अंदाज़ा लगाना भी भयावह है।
अपराधियों का निशाना ज़्यादातर 2 से 14 वर्ष की उम्र के मासूम बच्चे होते हैं। ये बच्चे Child Trafficking यानी बाल तस्करी के लिए चोरी किए जाते हैं। फिर इनका इस्तेमाल बाल मज़दूरी, देह व्यापार, अंग तस्करी या भीख मंगवाने जैसे अपराधों में किया जाता है।
लापता बच्चों की दर्दनाक हकीकत: क्यों होती है Child Trafficking?
बच्चों की तस्करी के पीछे कई अमानवीय कारण होते हैं, जैसे:
- यौन शोषण – देह व्यापार या पोर्नोग्राफी जैसे घिनौने कार्यों के लिए।
- जबरन श्रम – बच्चों से खतरनाक और अवैध काम करवाना।
- बंधुआ मजधदूरी – उधारी या मजबूरी के नाम पर जीवनभर के लिए गुलाम बना देना।
- अंग व्यापार – बच्चों के शरीर के अंग निकालकर बेचना।
- भीख मंगवाना – सड़कों पर भीख मंगवाने के लिए इस्तेमाल करना।
- निःसंतान दंपतियों को बेचना – अवैध रूप से गोद लेने के लिए बच्चों की बिक्री।
वाराणसी में मासूम की चीख: जब सपने चुरा ले गए दरिंदे
वाराणसी, जिसे आदि देव महादेव की नगरी माना जाता है, वहां भी कुछ ऐसे हैवान सक्रिय हैं जो फुटपाथ पर रात गुज़ारने वालों को निशाना बनाते हैं और उनकी गोद से उनके सपने चुरा ले जाते हैं।
14 मई 2023 की रात, वाराणसी के रविंद्रपुरी इलाके में कूड़ा बीनने वाले संजय के लिए वह रात मनहूस साबित हुई। अपने परिवार के साथ सड़क किनारे सो रहे संजय के पास से बदमाश उसके चार साल के बेटे को अगवा कर ले गए।
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हालांकि पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए बच्चे को बरामद कर लिया और इस मामले में 14 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। निचली अदालत ने सभी की ज़मानत याचिकाएं खारिज कर दीं, लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने इनमें से 9 आरोपियों को ज़मानत दे दी।
इस फैसले के खिलाफ ‘गुड़िया’ नामक एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों की ज़मानत रद्द कर दी।
वाराणसी में बच्चा चोरी गैंग का पर्दाफाश: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से टूटा नेटवर्क
29 अप्रैल 2023 को वाराणसी के नदेसर इलाके में सड़क किनारे सो रही पिंकी के एक साल के बेटे को उसी बच्चा चोरी गैंग के सदस्यों ने अगवा कर लिया था। अगले दिन, 30 अप्रैल 2023 को पीड़ित परिवार ने पुलिस में बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए बच्चे को बरामद कर लिया और इस मामले में 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
निचली अदालत ने आरोपियों की ज़मानत याचिकाएं खारिज कर दीं, लेकिन हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां सभी आरोपियों की ज़मानत रद्द कर दी गई।
इससे पहले, 28 मार्च 2023 को वाराणसी के अंधरापुल इलाके में भी इसी तरह की बच्चा चोरी की वारदात हुई थी। पुलिस ने इस केस में भी 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया। मामला अलग-अलग अदालतों से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पुलिस और प्रशासन सक्रिय हुआ और दो साल की कड़ी मशक्कत के बाद कोलकाता से एक बच्ची को सकुशल बरामद कर लिया गया।
भारत में लापता बच्चों के आंकड़े (2018–2022)
- वर्ष 2018: 24,429 बच्चे लापता
- वर्ष 2019: 29,243 बच्चे लापता
- वर्ष 2020: 22,222 बच्चे लापता
- वर्ष 2021: 29,364 बच्चे लापता
- वर्ष 2022: 33,650 बच्चे लापता
Child Trafficking रोकने के लिए कड़े कानून: BNS की अहम धाराएं
BNS की धारा 143:
एक नाबालिग की तस्करी पर 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा।
एक से अधिक नाबालिगों की तस्करी पर आजीवन कारावास।
गुनाह साबित होने पर जुर्माना भी देना होगा।
BNS की धारा 366A:
किसी नाबालिग को वेश्यावृत्ति में धकेलने पर 7 साल तक की सज़ा।
दोष साबित होने पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।
BNS की धाराएं 372 और 373:
देह व्यापार के लिए बच्चों की खरीद-फरोख्त करने पर 7 से 10 साल तक की सजा।
दोषी पाए जाने पर जुर्माना भी भरना होगा।
लापता मासूम बच्चे हो रहे Child Trafficking का शिकार: FAQ
1. हर साल भारत में लापता होने वाले बच्चों की सबसे बड़ी वजह क्या मानी जाती है?
उत्तर: भारत में बच्चों के लापता होने के पीछे सबसे बड़ी वजह बाल तस्करी (Child Trafficking) है। इसके अलावा गरीबी, घरेलू हिंसा, बाल श्रम और यौन शोषण भी बड़ी वजहें हैं।
2. क्या सभी लापता बच्चे Child Trafficking का शिकार होते हैं?
उत्तर: नहीं, सभी लापता बच्चे तस्करी का शिकार नहीं होते। कुछ बच्चे खुद से घर छोड़ देते हैं, कुछ गुम हो जाते हैं, लेकिन एक बड़ा हिस्सा अपराधियों द्वारा अगवा कर लिया जाता है।
3. बच्चों की तस्करी के खिलाफ भारत में सबसे सख्त कानूनी प्रावधान कौन से हैं?
उत्तर: BNS की धारा 143, 366A, 372 और 373 Child Trafficking के खिलाफ कड़े प्रावधान करती हैं।
4. Child Trafficking रोकने में आम नागरिक क्या भूमिका निभा सकते हैं?
उत्तर: आम नागरिक संदिग्ध गतिविधियों की सूचना पुलिस को देना, सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाना और हेल्पलाइन नंबरों पर रिपोर्ट करना जैसे कदमों से मदद कर सकते हैं।
5. अगर किसी का बच्चा लापता हो जाए, तो तुरंत क्या करना चाहिए?
उत्तर: सबसे पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराएं, 1098 (चाइल्ड हेल्पलाइन) पर कॉल करें और बच्चे की जानकारी सोशल मीडिया व एनजीओ नेटवर्क्स से साझा करें।