सोमवार, 23 जून को जाने-माने पूर्व भारतीय गेंदबाज दिलीप दोशी का निधन (Dilip Doshi Death) हो गया। दिल का दौरा पड़ने से 77 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ। दिलीप दोशी पिछले कुछ समय से हृदय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। वे कई दशकों से अपने परिवार के साथ लंदन में रह रहे थे। उनके परिवार में पत्नी कालिंदी, पुत्र नयन और पुत्री विशाखा हैं।
दिलीप दोशी बाएं हाथ के ऑर्थोडॉक्स स्पिनर थे और उनकी गिनती भारत के बेहतरीन स्पिनरों में होती है। उन्होंने भारतीय टीम में 32 वर्ष की उम्र में, 1979 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में टेस्ट डेब्यू किया था। दिलीप दोशी ने भारतीय टीम के लिए कुल 33 टेस्ट मैच खेले, जिनमें उन्होंने 114 विकेट लिए। सिर्फ टेस्ट ही नहीं, उन्होंने 15 वनडे मैच भी खेले, जिनमें 22 विकेट अपने नाम किए।

दिलीप दोशी के अनुसार, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1981 के मेलबर्न टेस्ट में भारत की ऐतिहासिक जीत में निभाई गई निर्णायक भूमिका थी।
शुरुआती जीवन कैसा था?
दिलीप दोशी का जन्म 22 दिसंबर 1947 को राजकोट, गुजरात में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन गुजरात में ही बीता। दिलीप जी पढ़ाई-लिखाई में अन्य बच्चों की तरह थे, लेकिन क्रिकेट के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था। वे स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट में भी सक्रिय रूप से भाग लेते थे।

दिलीप दोशी के क्रिकेट करियर की शुरुआत में देरी का मुख्य कारण उस समय के महान स्पिनर—बी. एस. चंद्रशेखर, बिशन सिंह बेदी और ई. ए. एस. प्रसन्ना की मौजूदगी थी। इसी वजह से दिलीप दोशी को राष्ट्रीय टीम में अपनी जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद उन्होंने घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन किया।
उन्होंने पहले सौराष्ट्र के लिए और बाद में बंगाल के लिए रणजी ट्रॉफी खेली। यहीं से उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई। दिलीप दोशी की गेंदबाजी शैली क्लासिकल लेफ्ट-आर्म ऑर्थोडॉक्स थी, जिसमें वे अपनी समझ और रणनीति के लिए जाने जाते थे।
32 वर्ष की उम्र में किया था भारतीय क्रिकेट टीम में डेब्यू
हालांकि दिलीप जी घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन कर रहे थे और लगभग एक दशक तक उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अपना वर्चस्व बनाए रखा। लेकिन उनकी असली इच्छा भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलने की थी। कई वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद, वर्ष 1979 में दिलीप जी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई टेस्ट में भारतीय क्रिकेट टीम में डेब्यू किया।
महज चार वर्षों के क्रिकेट जीवन से बनाई खुद की पहचान

दिलीप जी ने अपने शुरुआती जीवन में संघर्षों के बावजूद हार नहीं मानी। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई और खुद को दुनिया के सामने साबित किया। उन्होंने यह सिखाया कि किसी भी चीज को हासिल करने में उम्र कभी बाधा नहीं बन सकती। यदि आप सच्ची लगन और निष्ठा से मेहनत करते हैं, तो कम समय में भी सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं।
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दिलीप दोशी ने वर्ष 1983 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। उन्होंने उसी वर्ष अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला। हालांकि, दिलीप जी ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना जारी रखा और बाद में, वर्ष 1986 में, उन्होंने क्रिकेट से पूरी तरह संन्यास ले लिया।
क्रिकेट की फील्ड में लिखी है किताब

दिलीप जी ने न सिर्फ बेहतरीन गेंदबाजी की, बल्कि उसके दांव-पेंच भी बखूबी समझे। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने ‘स्पिन पंच’ नामक किताब लिखी, जो 1991 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में दिलीप जी ने क्रिकेट से जुड़े अपने अनुभव, स्पिन गेंदबाजी की बारीकियां और भारतीय क्रिकेट को लेकर अपने विचार साझा किए हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने बताया सफलता प्राप्त करने का मार्ग
जिस प्रकार दिलीप दोशी ने अपने जीवन में संघर्ष किया और सफलता प्राप्त की। उसी तरह संत रामपाल जी महाराज जी बताते है कि मनुष्य सच्ची निष्ठा, लगन और मेहनतस सफलता प्राप्त कर सकता है। पर सिर्फ जीवन में सफलता प्राप्त करना ही सब कुछ नहीं है। मानव जीवन का मूल उद्देश्य परमेश्वर द्वारा दी गई सतभक्ति करना है। अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब चैनल पर विजिट करें।