आज वर्तमान परिदृश्य में भारत सहित दुनिया भर में आज करोड़ों बच्चे ऐसी हालत में है जो सुबह की पहली किरण से साथ उठ तो जाते हैं मगर अन्य बच्चों की तरह स्कूल में पढ़ने लिखने के लिए नहीं बल्कि कृषि कारखाने और बाजारों में काम पर जाने के लिए क्योंकि पापी पेट का सवाल है इस समय जो माया की दौड़ है इसने आज बच्चों का बचपन भी छीन लिया।
बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की दिशा में कुछ प्रगति तो देखी गई है लेकिन इसके बावजूद भी आज विश्व के अनेक देशों में विशाल संख्या में बच्चों के लिए मजदूरी करना आज भी उनके दैनिक जीवन का एक कड़वी सच्चाई है
हिंदुस्तान सहित पूरी दुनिया में बाल मजदूरी एक सामाजिक समस्या बनी हुई है
बाल मजदूरी की वर्तमान स्थिति
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के एक नए अध्ययन के अनुसार 2024 में 13 करोड़ 80 लाख बच्चे बाल मजदूरी का शिकार थे इनमें से 5 करोड़ 40 लाख बच्चे वर्तमान में जोखिम भरी परिस्थितियों में काम करते हैं
UN श्रम एजेंसी के महानिदेशक गिल्बर्ट होंगबो ने कहा कि इस रिपोर्ट के निष्कर्ष हमें आशा बंधाते हैं और यह दर्शाते हैं की प्रगति संभव तो है लेकिन हमें यह समझना होगा कि अभी एक और गहरा लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
बाल श्रम की समस्या से बड़ी संख्या में देश पीड़ित तो है लेकिन इनका बोझ हर क्षेत्र में एक जैसा नहीं है।
भारत की बात करें तो जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में एक करोड़ से ज्यादा बाल मजदूरी में पाए गए थे बच्चे।
हालांकि सरकारी प्रयास और गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से संख्या में कमी तो आई है लेकिन अब भी लाखों की संख्या में बच्चे कारखाने ढाबे, खेती और घरेलू कार्यों में मजदूरी में लगे हुए हैं।
बाल मजदूरी के पीछे की सच्चाई
1. गरीबी और बेरोजगारी -आज दुनिया भर में अधिकांश परिवार आर्थिक स्थिति के कारण अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा में भेजने के बजाय रोजी-रोटी के कारण किसी भी काम पर लगा देते हैं ताकि घर पर दो पैसे आ सकें।
2. शिक्षा का अभाव- आज भी दुनिया भर में कई ऐसे देश हैं जिसके ग्रामीण क्षेत्र के साथ में शहरी पिछड़े क्षेत्रों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पहुंच आसान नहीं है। स्कूल की दूरी, खराब ढांचा और शिक्षा के प्रति कमी बच्चों को पढ़ाई से दूर कर देती है।
3. सामाजिक मानसिकता – आज वर्तमान समय में भी कुछ क्षेत्र में यह सोच अभी भी बनी हुई है कि पढ़ लिख कर क्या करेगा बच्चा काम ही तो करना है? क्यों न अभी से शुरू किया दिया जाए.
4. सस्ते श्रम की मांग – आज वर्तमान में हर व्यक्ति को कम दाम में कार्य करने वाला चाहिए, तो इसके लिए उद्योग, ढाबे, और फैक्ट्री हो यहां तक की घरों में भी बच्चों से सस्ता और आसान श्रम लिया जाता है। क्योंकि वो आवाज नहीं उठा पाते है।
5. कानून का कमजोर क्रियान्वयन -दुनिया भर में बहुत से देश और साथ भारत में भी बाल मजदूरी (निषेध और विनियमन) अधिनियम 1986 लागू है. लेकिन जमीनी स्तर पर पालन बहुत ही कमजोर है।
बाल श्रम के दुष्परिणाम
शिक्षा से वंचित होना – मजबूरी में बाल मजदूरी करने वाले ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जा पाते और उनका बौद्धिक जीवन स्तर अशिक्षित रह जाता है।
स्वास्थ्य पर असर – आज वर्तमान समय में कल कारखानों में खतरनाक जगह पर बच्चों के काम करने की वजह से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं
शोषण और अपराध का भी खतरा – बहुत से बार ऐसा देखा गया है ख़बरों में की बाल मजदूरी भी बच्चों को अपराध की दुनियां में शोषण के जाल में धकेल सकती है।
राष्ट्र की प्रगति पर भी असर – जब किसी भी राष्ट्र के बच्चे शिक्षित नहीं होंगे तो देश की मानव संसाधन क्षमता कमजोर होगी।
बाल मजदूरी की समस्या के लिए समाधान
आर्थिक सहयोग – विश्व भर में जितने भी गरीब परिवारों को देश की सरकारों के द्वारा आर्थिक सहायता और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराई जाए ,ताकि वह अपने बच्चों से मजदूरीकरने ना भेजें।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा -हर राष्ट्र के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और निशुल्क शिक्षा मिले साथ ही शिक्षा का अधिकार भी मिले साथ में बच्चों को स्कूल के अंदर ही मिड डे मील जैसी योजना का विस्तार हो।
कानून का सख्त पालन – बाल मजदूरी करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, और जो भी दोषी पाया जाए उसके आर्थिक दंड के साथ सजा का भी प्रावधान कड़ा किया जाए।
सामुदायिक भागीदारी – एक कहावत है “निज पर शासन फिर अनुशासन” ग्रामीण क्षेत्र में पंचायती राज और शहरी क्षेत्रों में संगठनों को भी मिलकर आज वर्तमान समय में बाल मजदूरी मुक्त गांव और कस्बा, मोहल्ला बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिए, समाज में संदेश फैलाना जरूरी है जागरूकता के लिए की बच्चों का स्थान मजदूरी में नहीं बल्कि स्कूल और खेल के मैदान में भी है।
अन्नपूर्ण मुहिम ने दिया बच्चों को नया जीवन
एक ओर जहाँ पूरा विश्व बाल मजदूरी जैसी समस्या से जूझ रहा है, गरीबी और शिक्षा के महत्व ना होने के कारण बच्चे विद्यालयी शिक्षा से वंचित रह रहे हैं वहीं संत रामपाल जी महराज ने अपनी अन्नपूर्णा मुहिम के दौरान अनेकों बालकों को जो भोजन और विद्यालयी शिक्षा जैसे समान्य अधिकारों से वंचित थे उन्हें उपलब्ध करवाया है। उन्हें विद्यालय में दाखिला दिलाने के साथ साथ उनकी फीस, कॉपी पुस्तकें और पोशाक का खर्च संत रामपाल जी महाराज ने वहन किया है और इन बच्चों को एक नया जीवन देकर उन्हें बाल मजदूरी की मजबूरी से बचा लिया। ये सब जानकारी देखने के लिए विज़िट करें संत रामपाल जी महाराज यूट्यूब चैनल।
बाल मजदूरी बच्चों के बचपन और सपनों की हत्या भी तो है यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं है ।
अगर समाज और सरकारी मिलकर इस दिशा में बने हुए कानून का सख्त कदम उठाती तो इस समस्या को भी समाप्त सकती थी, लेकिन परिणाम “ढाक के तीन पात “वाले बात हुई. इस कड़ी में आज संत रामपाल जी महाराज का वर्तमान में योगदान विशेष उल्लेखनीय है वे सत्संगों के माध्यम से संदेश देते हैं की बच्चों की शिक्षा और संस्कार देना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है उनके अनुयायियों के बीच नशा मुक्ति और दहेज मुक्त प्रथा लागू है जिससे परिवारों का आर्थिक बोझ कम होता है और परिवार बच्चों की शिक्षा दिलाने पर ध्यान दे सकता है संत रामपाल जी महाराज का यह मानना है कि सच्चा (आध्यात्मिक) ज्ञान ही जीवन की दिशा बदल सकता है ।