Kanya sankranti 2024: मान्यताओं के अनुसार, सूर्य का राशि परिवर्तन, जिसे संक्रांति भी कहा जाता है, यह ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे संक्रांति कहते हैं। विशेष रूप से सितंबर में सूर्य जब सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करता है, तो इसे कन्या संक्रांति कहते हैं।
कन्या राशि, जिसे ज्योतिष में बुद्धि, विश्लेषण और सेवा का प्रतीक कहा जाता है, इस दिन विशेष महत्व रखती है।कहा जाता है की कन्या राशि की संक्रांति पर सूर्य देवता की पूजा और स्नान-दान करने से कई लाभ मिलते हैं क्या यह सही है? इस दिन लोग विशेष ध्यान देते हैं कि वे न केवल धार्मिक क्रियाओं में भाग लें, बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी स्वच्छता और अनुशासन बनाए रखें।
कन्या संक्रांति के दिन स्नान और दान के माध्यम से व्यक्ति अपने खोए हुए सम्मान और धन को पुनः प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा, यह समय स्वास्थ्य में सुधार और सफलता प्राप्त करने के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। इस दिन की गई पूजा और धार्मिक गतिविधियाँ व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।
कन्या संक्रांति – 16 सितंबर 2024
कन्या संक्रांति 16 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। यह हिंदू पंचांग के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के साथ जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इस दिन को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्व प्राप्त है। पुरातन काल से चली आ रही मान्यताओं के अनुसार कन्या संक्रांति पर आमतौर पर नदी में स्नान करने और पितरों का तर्पण करने की परंपरा है, जिससे जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है।
यह भी माना जाता है कि यह दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर भी होता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यह समय होता है जब लोग अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और अपने घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
कन्या संक्रांति पर क्या पूजा की जाती है?
मान्यताओं के अनुसार कन्या संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठा जाता है और स्नान करने के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य अर्पित दें। सूर्य को जल चढ़ाने के लिए लोटे में पानी के साथ लाल फूल,चावल भी डाल लिए जाते हैं। इसके बाद ‘ऊँ सूर्याय नम:’ मंत्र का जप करते हुए अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह भी माना जाता है की सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए श्रधालु को गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करना चाहिए।
कन्या संक्रांति पर गंगा स्नान क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है?
मान्यताओ के अनुसार, कन्या संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व भारतीय परंपरा में व्यापक रूप से माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा के साथ गंगा नदी में स्नान करने से निम्नलिखित लाभ माने जाते हैं:
1. आरोग्य की प्राप्ति: माना जाता है कि गंगा स्नान करने से शरीर और मन को पवित्रता मिलती है, जिससे स्वास्थ्य और ताजगी में सुधार होता है।
2. मोक्ष की प्राप्ति: यह भी कहा जाता है कि गंगा में स्नान करने से जीवन की परेशानियों से मुक्ति और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति का अवसर मिलता है।
3. सूर्य देव की उपासना: पुरातन काल से चली आ रही मनीताओं के अनुसार सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति को मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, और प्रशासनिक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होते हैं। सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है, और उनकी पूजा से विभिन्न ग्रहों के अशुभ प्रभाव भी कम होते हैं।
क्या है सही भक्ति विधि
संक्रांति एक ऐसा दिन जिस दिन कहा जाता है कि सूर्य का राशि परिवर्तन हुआ है। तथा यह भी माना जाता है कि इस दिन सूर्यदेव की विशेष पूजा करने से और गंगा स्नान आदि करने से मनुष्य को बहुत लाभ प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान मात्र करने से मनुष्य के सारे पाप तथा परेशानियाँ खत्म हो जाती हैं तथा मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या केवल एक स्नान मात्र करने से वास्तव मनुष्य के सारे पाप धूल जाते है? क्या उसकी सारी परेशानियाँ खत्म हो जाती है? क्या सच में मृत्यु के बाद मोक्ष मिलना संभव है? और यह भी कहा जाता है की इस दिन पितरों को श्रधांजलि देने से उन्हें शांति मिलती है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है क्योंकि इस बात खंडन श्रीमद्भगवतगीता में किया गया है।
गीता अध्याय 9 के श्लोक 25 में कहा है कि:-
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने (पिण्ड दान करने) वाले भूतों को प्राप्त होते हैं अर्थात् भूत बन जाते हैं, शास्त्रानुकूल(पवित्र वेदों व गीता अनुसार) पूजा करने वाले मुझको ही प्राप्त होते हैं अर्थात् काल द्वारा निर्मित स्वर्ग व महास्वर्ग आदि में कुछ ज्यादा समय मौज कर लेते हैं।
इसका मतलब साफ है कि इस प्रकार भी मुक्ति संभव नहीं है। क्योंकि यह सभी क्रियाएँ शास्त्रविरुद्ध भक्ति साधना हैं। जिन्हें करने से कोई लाभ तथा मोक्ष संभव नहीं है। मोक्ष प्राप्ति हमें केवल सतभक्ति मार्ग से ही संभव हो सकता है जो केवल एक पूर्ण सतगुरु या तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं। वही हमें सतभक्ति का सच्चा मार्ग बताते हैं जिन्हें करने से हमें कोई राशि हानि नहीं पहुंचा सकती। क्योंकि अगर मनुष्य सतभक्ति प्राप्त करके पूर्ण परमात्मा की भक्ति करता है तो चाहे फिर वह किसी भी राशि का हो परमात्मा उसकी स्वम् रक्षा करते हैं।लेकिन इसके लिए भी सतगुरु आवश्यकता जरूर होती है।
मनुष्य जीवन में सतगुरु की अहम भूमिका
गुरु बिन माला फेरते , गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, चाहें पूछो वेद पुराण।।
इस वाणी बताया गया है कि अगर हम गुरु के कोई भी नाम जाप करते हैं या फिर किसी भी प्रकार का कोई भी दान करते हैं तो वो दोनों ही निष्फल हैं और इसका प्रमाण हमारे सतग्रंथों में भी दिया गया है। सतगुरु की मनुष्य जीवन में अहम् भूमिका होती है। सतगुरु वह होता है साधक को भक्ति का सही मार्ग प्रशस्त करते हैं। लोकवेद न बताकर वेदो और पुराण और हमारे धार्मिक सतग्रंथो के अनुसार भक्ति विधि बताते हैं।
वर्तमान में संत बहुत सी धर्मगुरुओं की भीड़ में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जो सही भक्ति विधि का मार्ग अपने अनुयाइयों को प्रशस्त कर रहे हैं। संत रामपाल जी महाराज ही पूरे विश्व में एक मात्र ऐसे संत हैं जो सारे पाखंड मत लोकवेद तथा मान्यताओं जैसी गलत अवधारणाओं को जड़ से खत्म करके सत्यज्ञान फैला रहे हैं तथा जन्म – मरण जैसे दीर्घ रोग से छुटकारा दिलाने की सही भक्ति विधि प्रस्तुत कर रहे हैं यानि की मोक्ष प्राप्ति का सही भक्ति मार्ग जन साधारण को बता रहे हैं। कि कैसे साधक मोक्ष प्राप्त करके अपने निज घर सतलोक में चला जायेगा। जहाँ स्वंम पूर्ण परमात्मा सतपुरुष अपने सिंहासन पर विराजमान हैं।
सतलोक : पूर्ण परमात्मा का निवास स्थान
सतलोक जिसे शाश्वत स्थान भी कहा जाता है, जहाँ स्वम् पर्मेश्वर् कबीर साहेब जी अपने सिंघासन पर विराजमान हैं। सतलोक एक ऐसा लोक है, जो स्वर्ग , महास्वर्ग आदि से भी ऊपर है। जहाँ किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। हर प्रकार की सुख- सुविधा है। तथा जहाँ जाने के बाद हम कभी जन्म-मृत्यु जैसे भयानक कष्ट से हमेशा के लिए आज़ाद हो जाते हैं। अर्थात् सतलोक ही पूर्ण मुक्ति धाम है।
ॠगवेद मणडल 9, सूक्त 85, मंत्र 9
वो कबीर परमात्मा कविर्देव द्युलोक के प्रकाशक नक्षत्रों को प्रकाश करता है वह परमात्मा विविध पदार्थों का दृष्टा है। शक्तिशाली है। द्युलोक को आश्रित करके स्थिर है। यानि द्युलोक ( तीसरे मुक्ति धाम) में रहता है।
कन्या सक्रांति पर सामान्य पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. कन्या संक्रांति क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: कन्या संक्रांति उस समय को कहते हैं जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करता है। यह दिन विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। इसे पवित्रता, स्वास्थ्य और सफलता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इस दिन सूर्य देवता की पूजा की जाती है।
2. कन्या संक्रांति 2024 पर क्या विशेष पूजा विधियाँ हैं?
उत्तर: कन्या संक्रांति के दिन, प्रातः काल स्नान करके तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। इस अर्घ्य में जल, लाल फूल और चावल डालकर ‘ऊँ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है। साथ ही गुड़ और तांबे के बर्तन का दान करने की परंपरा है।
3. क्या कन्या संक्रांति पर गंगा स्नान करना जरूरी है?
उत्तर: गंगा स्नान का महत्व इसलिए है कि इसे शुद्धि, स्वास्थ्य और मोक्ष के प्राप्ति के लिए लाभकारी माना जाता है। गंगा में स्नान करने से शारीरिक और मानसिक पवित्रता मिलती है और मोक्ष प्राप्ति की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
4. क्या केवल स्नान करने और पूजा करने से सभी पाप खत्म हो जाते हैं?
उत्तर: केवल स्नान और पूजा से सभी पाप समाप्त नहीं होते। सच्ची मुक्ति और पापों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए सतभक्ति और गुरु की सही मार्गदर्शना की आवश्यकता होती है, जैसा कि श्रीमद्भगवद गीता में उल्लेखित है।
5 . सतगुरु की भूमिका क्या होती है और क्यों आवश्यक है?
उत्तर: सतगुरु भक्ति का सही मार्ग दिखाते हैं और धार्मिक क्रियाओं को शास्त्रों के अनुसार बताते हैं। वे सतभक्ति की विधि को समझाते हैं, जिससे मोक्ष प्राप्ति संभव होती है। सतगुरु की सहायता से व्यक्ति सही भक्ति पद्धति को समझ सकता है और जीवन की वास्तविकता को जान सकता है।