राकेश कुमार राज्य जम्मू कश्मीर के जिला रियासी के कटरा वैष्णो देवी के रहने वाले है । जम्मू कश्मीर में देश के बेहतरीन पैरा तीरंदाजों में से एक में राकेश कुमार ने अपना नाम दर्ज किया है। राकेश 33 साल की उम्र में पैरा तीरंदाजी में आए और आते ही एक साल बाद पहला स्वर्ण पदक जीता। राकेश ने 38 साल की उम्र में लगातार 3 स्वर्ण पदक जीते।
राकेश कुमार एक किसान के बेटे हैं। वह प्लंबर का काम किया करते थे और सामान्य रूप से अपना जीवन व्यतीत करते थे। उसके बाद एक हादसे में उनके दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया था फिर उन्होंने मान लिया की उनका जीवन एक बोझ बन गया है।
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2009 में ठीक होने के बाद उनकी मुलाकात मां वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड से जुड़े तीरंदाजी कोच से हुई; यहां से उनका जीवन बदल गया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। शुरुआत में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं था और पहले राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 17वां स्थान प्राप्त किया था। उसके बाद उनको यह पता लगा कि कितनी मेहनत करनी होती है फिर क्या था, बिना रुके बिना थके साल के 365 दिन लगातार मेहनत का नतीजा आज पूरी दुनिया देख रही है।
श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड पहला ऐसा ट्रस्ट है जिसने खेलों को इतना बढ़ावा दिया है। इस ट्रस्ट के खिलाड़ी 200 से ज्यादा पदक जीत चुके हैं। सुनने में आया है कि इस ट्रस्ट के कोच न तो छुट्टी लेते है और न ही छुट्टी लेने देते हैं।
अनुभवी तीरंदाज राकेश कुमार ने पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीतने का सपने पूरा करने के लिए जी-जान से कठिन मेहनत की। उन्होंने पैरालंपिक में कंपाउंड पुरुष ओपन वर्ग में सेलेगल के अलियु ड्रेम को 136 – 131 से हरा कर प्री क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया । रविवार को राकेश ने कंपाउंड पुरुष में इंडोनेशिया के केन स्वगुमिलांग को हरा कर लगातार दूसरी बार पैरालंपिक खेलों के क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया और शीतल देवी के साथ मिलकर ब्रोंज मेडल देश के नाम किया।