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Home » नेपाल बस दुर्घटना: पोखरा से काठमाण्डू जा रही भारतीय तीर्थयात्रियों की बस नदी में जा गिरी, 27 की मौत

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नेपाल बस दुर्घटना: पोखरा से काठमाण्डू जा रही भारतीय तीर्थयात्रियों की बस नदी में जा गिरी, 27 की मौत

SA News
Last updated: August 26, 2024 2:00 pm
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नेपाल बस दुर्घटना पोखरा से काठमाण्डू जा रही भारतीय तीर्थयात्रियों की बस नदी में जा गिरी, 27 की मौत
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शुक्रवार, 23 अगस्त को यह हादसा तब हुआ जब महाराष्ट्र के जलगांव जिले के तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस हाईवे से फिसलकर करीब 150 मीटर नीचे तेज बहती मार्स्यांगदी नदी में जा गिरी। बस पोखरा से काठमांडू जा रही थी और उसमें कुल 43 लोग सवार थे। बस का रजिस्ट्रेशन नंबर UP 53 FT 7623 था। हादसे में 27 यात्रियों की मौत हो गई जबकी बाकी को रेसक्यू कर लिया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बस में ड्राइवर और कंडक्टर समेट कुल 43 लोग सवार थे।

Contents
महाराष्ट्र से नेपाल पहुंचा था 104 लोगों का समूहहादसे के शिकार तीर्थयात्रीबचाव कार्य और सरकारी प्रतिक्रियाक्या केवल तीर्थो पर भ्रमण करने से हो सकती है हमारी मुक्ति?तीर्थो के भ्रमण करने की बजाय सबसे उत्तम तीर्थ ‘चित्तशुद्धि तीर्थ’ हैतत्वदर्शी संत धरती पर विराजमान है

महाराष्ट्र से नेपाल पहुंचा था 104 लोगों का समूह

नेपाल बस हादसे को लेकर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री गिरीश महाजन ने कहा कि नेपाल यात्रा पर गए सभी लोग महाराष्ट्र के भुसावल के धरनगांव इलाके के रहने वाले थ। वे पर्यटन के उद्देश्य से नेपाल गए थे। सभी लोग गोरखपुर से बसों के जरिए रवाना हुए थे। पीड़ितों में से ज़्यादातर महाराष्ट्र के जलगांव जिले के रहने वाले थे, जो तीर्थयात्रियों के एक समूह के रूप में यात्रा कर रहे थे।

हादसे के शिकार तीर्थयात्री

इस दुर्घटना में मारे गए लोगों में अधिकांश महाराष्ट्र के जलगांव जिले के थे। मृतकों की पहचान रामजीत उर्फ मुन्ना, सरला राणे (42), भारती जावड़े (62), तुलशीराम तावड़े (62), सरला तावड़े (62), संदीप सरोदे (45), पल्लवी सरोदे (43), अनुप सरोदे (22), गणेश भारम्बे (40), नीलिमा धांडे (57), पंकज भांगड़े (45), परी भारम्बे (8 वर्ष), अनीता पाटिल, विजया झावाड़े (50), रोहिणी झावाड़े (51) और प्रकाश कोडी के रूप में हो पाई है।

बचाव कार्य और सरकारी प्रतिक्रिया

दुर्घटना के तुरंत बाद नेपाली अधिकारियों और स्थानीय बचाव दलों ने नदी की तेज धाराओं के बीच बचाव कार्य शुरू कर दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने दुर्घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया और मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट की है। विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि घायल व्यक्तियों को हवाई मार्ग से राजधानी से जाया गया है। मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा “वे स्थानीय अधिकारियों और प्रभावित परिवारों के साथ लगातार संपर्क में हैं और शवों को जल्द से जल्द भारत लाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।”

■ Also Read: Dahi Handi । दही हांडी: श्रीकृष्ण की माखन चोरी की परंपरा और उत्सव का रहस्यमय सच

क्या केवल तीर्थो पर भ्रमण करने से हो सकती है हमारी मुक्ति?

हम इस त्रासदी में अपनी संवेदनाएँ व्यक्त करते हैं और घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। लेकिन भक्ति करने वाले भक्तो के साथ हो रही ऐसी दुर्घटनाये क्या भक्ति व भगवान पर प्रश्न चिन्ह नही है ? यह कोई एक खबर नहीं है इस प्रकार की खबरे आम है। चाहे केदारनाथ में भक्तो के मरने की खबर हो या उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में पुजारियों के झूलसने की इन सब से यह तो तय है हम उस भगवान से कौसो दूर है जो हमे सुख दे सकता है, द्रौपदी की तरह चीर बढा सकता है। दामोदर सेठ की तरह हमारा जहाज डूबने से बचा सकता है।

तीर्थो के भ्रमण करने की बजाय सबसे उत्तम तीर्थ ‘चित्तशुद्धि तीर्थ’ है

ऐसे में भक्तो के मन में एक शंका उठोन्न होगी की यदि हम तीर्थो पर नहीं जाएंगे तो हमारा उद्धार कैसे होगा, क्या हम नास्तिक हो जाए ? इसका उत्तर है नहीं क्युकी नास्तिक हो जाना आत्महत्या कर लेने के समान है। क्युकी भक्ति आत्मा की खुराक है इसे बंद नहीं करना चाहिए। शास्त्रों की माने तो सर्वश्रेष्ठ तीर्थ चितशुद्ध तीर्थ अर्थात् तत्वदर्शी सन्त का सत्संग है।

श्री देवी पुराण छठा स्कन्द अध्याय 10 पृष्ठ 417 पर लिखा है व्यास जी ने राजा जनमेजय से कहा “राजन्! यह निश्चय है कि तीर्थ देह सम्बन्धी मैल को साफ कर देते हैं, किन्तु मन के मैल को धोने की शक्ति तीर्थों में नहीं है। चितशुद्ध तीर्थ गंगा आदि तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चितशुद्ध तीर्थ सुलभ हो जाए तो अर्थात् तत्वदर्शी संतों का सत्संग रूपी तीर्थ प्राप्त हो जाए तो मानसिक मैल के धुल जाने में कोई संदेह नहीं। परन्तु राजन्! इस चितशुद्ध तीर्थ को प्राप्त करने के लिए ज्ञानी पुरूषों अर्थात् तत्वदर्शी सन्तों के सत्संग की विशेष आवश्यकता है।”

तत्वदर्शी संत धरती पर विराजमान है

इस संसार में लाखों- करोड़ों धर्मगुरू हैं जो धार्मिक गुरु होने का दावा करते हैं। पूर्ण संत की पहचान बताते हुए कबीर साहेब कहते है :- ”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“ यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि पूर्ण संत वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। 

सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा, दोपहर को विश्व के देवताओं का सत्कार व संध्या आरती अलग से बताएगा, वह जगत का उपकारक संत होता है। तथा गीता अनुसार पूर्ण संत गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 में वर्णित उल्टे लटके हुए वृक्ष के समान संसार की व्याख्या बताते हैं। सभी पवित्र शास्त्रों में वर्णित सतगुरु के सभी गुण महान संत रामपाल जी महाराज पर सटीक बैठते हैं।

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही एक मात्र तत्वदर्शी संत धीरानाम/बाखबर/इलमवाला/मसीहा हैं। सभी पाठकों से अनुरोध है कि पूर्ण संत धरती पर अवतरित हैं उन्हें उनके तत्वज्ञान से पहचान कर नकली धर्म गुरुओं को शीघ्र त्याग कर उनसे नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्ति के पात्र बनें।

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