मानव जीवन को दुर्लभ कहा गया है क्योंकि यह 84 लाख योनियों के पश्चात् प्राप्त होता है। लेकिन आज, अधिकांश लोग इसे व्यर्थ की चीज़ों में गँवा रहे हैं और इसके मूल उद्देश्य को भूल रहे हैं।
परमात्मा कहते हैं:
“मानुष जनम दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
तरुवर से पत्ता टूट गिरा, बहूर न लगता डार।।”
मानव जीवन सुरदुर्लभ
यह जीवन सृष्टि का सबसे अनमोल उपहार है। प्राचीन ग्रंथों और संतों के उपदेशों में इसे “सुरदुर्लभ” कहा गया है, अर्थात देवता भी इस जीवन को पाने के लिए तरसते हैं। केवल मानव जीवन में ही भक्ति और मोक्ष संभव है। इसका कारण यह है कि मनुष्य को अद्वितीय चेतना, विवेक और कर्म करने की स्वतंत्रता मिली हुई है। यह जन्म ईश्वर द्वारा दिया गया एक सुनहरा अवसर है, जिसमें आत्मा को शुद्ध कर मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
मानव जीवन का उद्देश्य
शास्त्रों के अनुसार, 84 लाख योनियों में भटकने के बाद जीव को यह जन्म मिलता है। इसका उद्देश्य केवल भौतिक सुख प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति करना है।
- कर्मयोग: अपने कार्यों को ईमानदारी और निष्काम भाव से करना।
- ज्ञानयोग: सत्य ज्ञान को प्राप्त करना और अज्ञानता का नाश करना।
- भक्तियोग: परमात्मा के प्रति समर्पण और प्रेम करना।
संत तुलसीदास ने कहा है:
“सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गाहा।
सुनत रहत साधन बिनु लाहा।।”
अर्थात, मानव जीवन दुर्लभ है, और इसका लाभ तभी मिलता है जब इसे साधना में लगाया जाए।
समय का सदुपयोग
मानव जीवन सीमित है और हर क्षण अनमोल है। यदि इसे सांसारिक विषयों में व्यर्थ कर दिया गया, तो यह अवसर हमेशा के लिए खो जाएगा।
कबीर साहेब कहते हैं:
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब?”
हमें अपने समय का सदुपयोग कर भक्ति और सत्कर्म में लगाना चाहिए।
आत्मिक विकास का मार्ग
मनुष्य के पास आत्मा को शुद्ध करने और मुक्ति प्राप्त करने का विशेष अवसर है। अध्यात्म, योग, ध्यान, और सत्संग के माध्यम से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किए गए तत्वज्ञान से लाखों लोगों का जीवन सुखमय हुआ है। उनके अनुयायियों ने उनके उपदेश से प्रेरणा लेकर मोक्ष की ओर अग्रसर होने का मार्ग अपनाया है।
मानुष जन्म का मुख्य उद्देश्य
यह जीवन केवल भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति के लिए है। धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष – इन चार पुरुषार्थों का पालन करते हुए जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
शास्त्र कहते हैं:
“मानुष जन्म पायकर जो नहीं रटे हरि नाम।
जैसे कुआं जल बिना, फिर बनवाया क्या काम।।”
अगर इस जीवन में ईश्वर भक्ति नहीं की, तो यह जीवन व्यर्थ हो जाएगा।
निष्कर्ष
मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है। इसे व्यर्थ न गवाकर, अपने विवेक और चेतना से इसका उद्देश्य पहचानें। संत रामपाल जी महाराज जी के तत्वज्ञान को समझें और अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए उनका मार्गदर्शन प्राप्त करें।
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