देशभर में नई पेंशन योजना (NPS) और पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लेकर गहन चर्चा और विवाद का माहौल बना हुआ है। सरकारी कर्मचारियों के बीच यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि, उनके लिए कौनसी पेंशन योजना लाभदायक होगी।
NPS Vs OPS
राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों की पेंशन स्कीम को लेकर सरकार का फैसला अब तक सस्पेंस में है। कर्मचारियों के लिए कौन सी योजना लागू होगी यह निर्णय अभी तक भजनलाल सरकार नहीं कर पाई है। एक तरफ 2004 से पहले लागू पुरानी पेंशन योजना (OPS) को फिर से लागू करने की मांग तेज हो रही है, तो दूसरी ओर नई पेंशन योजना (NPS) पर सरकार और अर्थशास्त्रियों का जोर है। सरकार अब भी इस पर अंतिम निर्णय लेने में असमंजस की स्थिति में है, जिससे लाखों सरकारी कर्मचारी अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं।
राज्य वित्त मंत्री का संसद में बयान
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने 2003 में पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया था, और सत्ता से बाहर होने से ठीक एक महीने पहले 1 अप्रैल 2004 को मौजूदा राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) शुरू की थी। इस पर सरकार ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि, एनपीएस को बंद कर ओपीएस लागू करने का फिलहाल कोई विचार नहीं है।
NPS Vs OPS : सरकार क्यों बना रही इसे बड़ा मुद्दा
पुरानी पेंशन योजना (OPS) 2004 से पहले लागू थी, जिसके तहत कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन मिलती थी। पेंशन की राशि कर्मचारी के अंतिम वेतन के आधार पर तय होती थी, और इसमें महंगाई भत्ते के हिसाब से वृद्धि की जाती थी। इस योजना में कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा और स्थायित्व का अहसास होता था।
OPS के अंतर्गत पेंशन सरकार की जिम्मेदारी होती थी, और कर्मचारी अपने रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित राशि प्राप्त करते थे। यही कारण है कि लाखों सरकारी कर्मचारी अब फिर से इस योजना को लागू करने की मांग कर रहे हैं। कर्मचारी संगठन इस बात पर जोर देते हैं कि OPS कर्मचारी हितों के लिए सबसे बेहतर और स्थायी विकल्प है।
National Pension Scheme 2024: एनपीएस क्या है?
नई पेंशन योजना का विवाद वहीं, 2004 के बाद जो कर्मचारी नियुक्त हुए, उन्हें नई पेंशन योजना (NPS) के तहत कवर किया गया। NPS को लागू करने का मुख्य उद्देश्य सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को कम करना था। NPS के तहत कर्मचारियों और सरकार दोनों को एक निश्चित अंशदान करना पड़ता है, और इस राशि को शेयर बाजार में निवेश किया जाता है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन की राशि बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जिससे पेंशन की गारंटी नहीं होती।
इस कारण कई कर्मचारी NPS से असंतुष्ट हैं। उनका मानना है कि इस योजना में आर्थिक असुरक्षा है और रिटायरमेंट के बाद उनकी पेंशन निश्चित नहीं होती, जो उन्हें OPS के तहत मिलती थी।
What is Difference between NPS and OPS: एनपीएस और ओपीएस में क्या है फर्क?
पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बात करें तो यह योजना पहले से ही सरकारी कर्मचारियों के बीच लोकप्रिय थी, क्योंकि यह अंतिम वेतन के आधार पर सुनिश्चित पेंशन प्रदान करती थी। इसे बदलकर नई पेंशन योजना (NPS) लाई गई, जो 2004 के बाद शामिल हुए कर्मचारियों के लिए अनिवार्य हो गई। NPS में पेंशन की गारंटी नहीं होती, बल्कि इसमें कर्मचारी और नियोक्ता के योगदान से एक कोष बनता है, जिससे रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है। हालांकि, इसमें निवेश के जरिए लाभ की संभावना होती है, लेकिन पेंशन राशि निश्चित नहीं होती।
NPS के तहत कर्मचारियों और सरकार दोनों को एक निश्चित अंशदान करना पड़ता है, और इस राशि को शेयर बाजार में निवेश किया जाता है। रिटायरमेंट के बाद पेंशन की राशि बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जिससे पेंशन की गारंटी नहीं होती।
जनीतिक और आर्थिक पहलू
NPS और OPS के बीच इस विवाद का राजनीतिक और आर्थिक पहलू भी गहरा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओपीएस (OPS) को बड़ा मुद्दा बनाया गया था। समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को मुखरता से उठाया और जनता को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार आई तो पुरानी पेंशन व्यवस्था या OPS को लागू किया जाएगा। लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं आई।
इसके बावजूद ओपीएस का मुद्दा गर्म है अलग-अलग क्षेत्रों के कर्मचारी इसे फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं।
2003 में ओपीएस को बंद कर दिया गया था और उसकी जगह पर नेशनल पेंशन सिस्टम लागू किया गया था। देश के कई राज्यों ने ओपीएस को लागू भी कर दिया है। जिनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के नाम हैं। वहीं, केंद्र सरकार अब भी NPS को बेहतर विकल्प मानती है, क्योंकि यह सरकार पर पड़ने वाले वित्तीय भार को कम करता है।
पेंशन योजना पर सरकार का फैसला
पेंशन स्कीम को लेकर सरकार का तर्क है कि OPS के अंतर्गत आने वाले पेंशन खर्च में तेजी से वृद्धि होती है, जो दीर्घकालिक रूप से देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ डाल सकता है। वहीं NPS के अंतर्गत पेंशन योजना को बाजार से जोड़ा गया है, जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ कम हो जाता है। लेकिन कर्मचारी संगठन इस तर्क से असहमत हैं और वे OPS को लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।
Pension Scheme 2024: क्या है कर्मचारियों की मांग
कर्मचारी संघ और संगठन OPS को फिर से लागू करने के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि NPS से कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। OPS के तहत मिलने वाली निश्चित पेंशन ने कर्मचारियों को भविष्य के लिए एक स्थिर और निश्चित आय दी थी, जो NPS में नहीं मिल पाती। कर्मचारी इस बात से भी चिंतित हैं कि शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण उनके पेंशन फंड का भविष्य अनिश्चित हो जाता है।
राज्य बनाम केंद्र
राज्यों में जहां कुछ सरकारों ने OPS को फिर से लागू करने का निर्णय लिया है, वहीं केंद्र सरकार NPS पर ही टिकी हुई है। राज्य सरकारें अपने कर्मचारियों के हितों को देखते हुए OPS की वापसी का समर्थन कर रही हैं, जबकि केंद्र सरकार आर्थिक स्थिरता और विकास को ध्यान में रखते हुए NPS को जारी रखने के पक्ष में है।
राज्य और केंद्र के बीच इस मतभेद ने देशभर में एक अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। कई कर्मचारी यह जानने को उत्सुक हैं कि आने वाले समय में उनके लिए कौन सी योजना लागू होगी और उनके रिटायरमेंट के बाद की स्थिति क्या होगी।
नई पेंशन योजना से कैसा होगा सरकारी कर्मचारियों का भविष्य
NPS और OPS को लेकर चल रही यह बहस निकट भविष्य में और तीव्र हो सकती है। कर्मचारी संगठनों के दबाव के चलते सरकार को एक ठोस निर्णय लेना ही होगा। हालांकि, अर्थशास्त्री और वित्तीय विशेषज्ञ यह मानते हैं कि NPS आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक व्यवहारिक है, लेकिन कर्मचारियों की भावनात्मक और सुरक्षा की जरूरतें OPS की ओर इशारा करती हैं।
कर्मचारियों की ओर से यह मांग जोर पकड़ रही है कि, OPS को दोबारा से पूरे देश में लागू किया जाए ताकि सभी को एक निश्चित पेंशन मिल सके। वहीं, केंद्र सरकार वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिए NPS को ही सबसे अच्छा विकल्प मान रही है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कौन सा निर्णय लेती है।
NPS और OPS के बीच की यह खींचतान अभी भी सस्पेंस में है। जहां एक ओर कर्मचारी संगठनों की मांग OPS को लेकर है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार NPS के समर्थन में मजबूती से खड़ी है। कर्मचारियों के हित और देश की आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। अब देखना यह है कि भविष्य में इस पर क्या फैसला लिया जाता है और लाखों सरकारी कर्मचारियों के रिटायरमेंट का भविष्य किस दिशा में जाता है।