आज पूरा देश भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम — “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” और “जनता के राष्ट्रपति” — की 94वीं जयंती श्रद्धा और गर्व के साथ मना रहा है। यह दिन वर्ष 2010 से विश्व विद्यार्थी दिवस (World Students’ Day) के रूप में मनाया जाता है, जो कलाम के युवाओं के प्रति अटूट समर्पण और उनके नवाचार-प्रेरित जीवनदर्शन का प्रतीक है। 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे डॉ. कलाम की यात्रा गरीबी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक भारतीय स्वप्न की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति बन चुकी है। वर्ष 2025 की यह जयंती देश को एक बार फिर उनके उस सपने की याद दिला रही है जिसमें आत्मनिर्भर, वैज्ञानिक और संवेदनशील भारत की कल्पना की गई थी।
- सादगी से शिखर तक: एक बालक से मिसाइल मैन बनने की यात्रा
- जनता के राष्ट्रपति: राजनीति में भी सेवा की मिसाल
- विज्ञान, शिक्षा और मानवता का संगम
- 2025 की श्रद्धांजलियाँ: भारत में नई प्रेरणा की लहर
- शिक्षा जगत और समाज में आयोजन
- निष्कर्ष: सपनों से साकार होती नई सुबह
- सतज्ञान से प्रेरणा: सेवा और समर्पण का पथ
- FAQs – डॉ. अब्दुल कलाम
सादगी से शिखर तक: एक बालक से मिसाइल मैन बनने की यात्रा
डॉ. कलाम का जीवन इस तथ्य का साक्ष्य है कि संकल्प और परिश्रम से असंभव को संभव किया जा सकता है। एक साधारण तमिल मुस्लिम परिवार में जन्मे अब्दुल के पिता जैनुलाब्दीन नाव चलाते थे और मस्जिद में इमाम थे, जबकि उनकी माता अशियम्मा गृहिणी थीं। आर्थिक कठिनाइयों के बीच वे अखबार बेचकर परिवार का सहयोग करते थे। इस संघर्ष ने उनमें अनुशासन और संवेदनशीलता दोनों का विकास किया।
1954 में उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से भौतिकी में स्नातक किया और उसके बाद मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री (1960) प्राप्त की। वे पायलट बनने के सपने में असफल हुए, परंतु अपने जीवन का उद्देश्य विज्ञान और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में खोज लिया।
उनका करियर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) से प्रारंभ हुआ, जहाँ उन्होंने एक छोटे होवरक्राफ्ट के डिजाइन में योगदान दिया। 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में स्थानांतरण के बाद उन्होंने सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) परियोजना में नेतृत्व किया। 1980 में रोहिणी उपग्रह के सफल प्रक्षेपण ने भारत को अंतरिक्ष राष्ट्रों की सूची में शामिल कर दिया और कलाम को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बना दिया।
1980 और 1990 के दशक में वे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) के प्रमुख बने और “अग्नि” तथा “पृथ्वी” मिसाइलों के विकास में निर्णायक भूमिका निभाई। इस उपलब्धि के कारण उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” की उपाधि मिली। 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षण में उनकी रणनीतिक भागीदारी ने भारत की रक्षा नीति को सशक्त बनाया।
उनकी दृष्टि केवल विज्ञान तक सीमित नहीं थी; वे प्रौद्योगिकी को मानवता की सेवा का साधन मानते थे। वे बार-बार कहते थे, “विज्ञान का लक्ष्य मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाना है, न कि केवल प्रयोगशालाओं को समृद्ध करना।”
जनता के राष्ट्रपति: राजनीति में भी सेवा की मिसाल
वर्ष 2002 में जब वे भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए, तो उन्होंने इस पद को सेवा और संवाद का माध्यम बना दिया। वे “जनता के राष्ट्रपति” के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को “जनता का घर” कहा और अपने कार्यकाल में लगभग 1,50,000 विद्यार्थियों से सीधे संवाद किया।
उनके संदेशों में सदा आशा और आत्मविश्वास झलकता था। वे कहते थे — “भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।” आज “आत्मनिर्भर भारत” और “विकसित भारत 2047” जैसी पहलें उसी दृष्टि की निरंतरता हैं।
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राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद उन्होंने शिक्षा को अपना केंद्र बनाया। अन्ना विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक Wings of Fire (1999) — आत्मकथा — और India 2020: A Vision for the New Millennium (वाई. एस. राजन के साथ सहलेखन) आज भी युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं।
वे युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। पाँच हज़ार से अधिक व्याख्यानों में उन्होंने न केवल विज्ञान बल्कि नैतिकता, राष्ट्रप्रेम और आत्मविश्वास का संदेश दिया। वे अक्सर तमिल कवि थिरुवल्लुवर की पंक्तियों का उल्लेख करते थे, जो जीवन में ईमानदारी और ज्ञान की महत्ता सिखाती हैं।

27 जुलाई 2015 को शिलांग स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान में भाषण देते हुए उनका निधन हो गया। जीवन के अंतिम क्षणों तक वे छात्रों को प्रेरित कर रहे थे। उनके अंतिम शब्द — “Funny guy! Are you doing well?” — उनकी सहजता और विनम्रता का प्रमाण हैं।
रामेश्वरम में उनके अंतिम संस्कार के समय पूरा देश श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़ा। लाखों लोग और अनेक विश्व नेता उस दिवंगत विभूति को विदा करने पहुंचे जिन्होंने भारत को आत्मविश्वास की नई उड़ान दी थी।
विज्ञान, शिक्षा और मानवता का संगम
डॉ. कलाम को अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए — भारत रत्न (1997), पद्म भूषण (1981) और पद्म विभूषण (1990) उनमें प्रमुख हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें किंग चार्ल्स II मेडल (रॉयल सोसाइटी) और वॉन ब्राउन अवॉर्ड (यू.एस. नेशनल स्पेस सोसाइटी) से सम्मानित किया गया।
उनकी स्मृति में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स और अब्दुल कलाम द्वीप (पूर्व में व्हीलर द्वीप) की स्थापना की गई।
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उनकी सबसे बड़ी विरासत शिक्षा के क्षेत्र में है। तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता के प्रस्ताव पर उनकी जयंती को विश्व विद्यार्थी दिवस घोषित किया गया। उनका प्रसिद्ध कथन —
“यदि कोई देश भ्रष्टाचारमुक्त और सुंदर मस्तिष्कों का राष्ट्र बनना चाहता है, तो पिता, माता और शिक्षक — ये तीन स्तंभ निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।”
आज भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था की आत्मा को झंकृत करता है।
उनकी PURA (Providing Urban Amenities in Rural Areas) योजना ने ग्रामीण विकास को आधुनिक तकनीक से जोड़ने की दिशा में नई सोच दी।
2025 की श्रद्धांजलियाँ: भारत में नई प्रेरणा की लहर
2025 में देशभर में उनकी जयंती उत्साहपूर्वक मनाई जा रही है। भारत के अंतरिक्ष अभियानों — चंद्रयान-3 की सफलता और गगनयान मिशन की तैयारियों — ने इस अवसर को और भी सार्थक बना दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देते हुए लिखा,
“डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी को उनकी जयंती पर नमन। वे ऐसे दूरदर्शी थे जिन्होंने युवा मनों को जगाया और भारत को बड़े सपने देखने की प्रेरणा दी।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि “मजबूत, आत्मनिर्भर और करुणामय भारत” का निर्माण ही कलाम के सपनों की सच्ची पूर्ति है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में पुष्पांजलि अर्पित की, जो नेतृत्व और आदर की निरंतर परंपरा को दर्शाता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उन्हें “दूरदर्शी वैज्ञानिक, प्रेरणादायी नेता और सच्चे देशभक्त” बताया।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि डॉ. कलाम की दूरदृष्टि आज भी भारत की रणनीतिक नीति का मार्गदर्शन कर रही है।
सोशल मीडिया पर #APJAbdulKalam शीर्ष ट्रेंड बना रहा। लाखों लोगों ने उनके प्रेरक विचार साझा किए —
“Dream, dream, dream. Dreams transform into thoughts and thoughts result in action.”
शिक्षा जगत और समाज में आयोजन
देशभर के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विशेष कार्यक्रम आयोजित हुए।
गुजरात के गवर्नमेंट साइंस कॉलेज, बगसरा में “Innovation Inspiration Day” के तहत STEM कार्यशालाएँ हुईं।
तमिलनाडु के लिटरेसी मिशन मैट्रिक हायर सेकेंडरी स्कूल में NSS इकाइयों ने पर्यावरण जागरूकता अभियान चलाया और इसे विश्व ओज़ोन दिवस से जोड़ा।
नई दिल्ली स्थित आंध्र प्रदेश भवन में PURA मॉडल पर संगोष्ठी आयोजित की गई।
फिल्म जगत में भी श्रद्धांजलि की लहर रही। अभिनेता धनुष की आगामी बायोपिक “Kalam: The Missile Man” ने प्रशंसकों में उत्सुकता बढ़ाई।
विश्व विद्यार्थी दिवस के अवसर पर “Empowering Youth for a Sustainable Future” विषय पर देशभर में निबंध प्रतियोगिताएँ और प्रेरक भाषण हुए, जिनमें लाखों विद्यार्थियों ने भाग लिया।
रामेश्वरम में विशेष युवा उत्सव आयोजित हुआ, जहाँ डॉ. कलाम का होलोग्राम प्रस्तुत किया गया जिसमें वे अपनी कविताएँ सुनाते नजर आए — परंपरा और प्रौद्योगिकी का अद्भुत संगम।
विदेशों में भी भारतीय मिशनों ने कार्यक्रम आयोजित किए। चीन के ग्वांगझोऊ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास ने विशेष संगोष्ठी रखी, जिसमें कलाम के वैश्विक योगदान को रेखांकित किया गया।
निष्कर्ष: सपनों से साकार होती नई सुबह
जयंती के समापन पर एक बार फिर डॉ. कलाम के शब्द गूंज उठे —
“You have to dream before your dreams can come true.”
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतरिक्ष अन्वेषण के इस युग में यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। भारत आज आत्मनिर्भरता और नवाचार के पथ पर अग्रसर है, और यही वह मार्ग है जिसकी कल्पना कलाम ने अपने सपनों में की थी।
94वीं जयंती के इस अवसर पर राष्ट्र केवल एक वैज्ञानिक या राष्ट्रपति को याद नहीं कर रहा, बल्कि उस शिक्षक को प्रणाम कर रहा है जिसने प्रत्येक भारतीय को यह विश्वास दिया कि —
“सपना देखो, और फिर उसे साकार करो।”
सतज्ञान से प्रेरणा: सेवा और समर्पण का पथ
डॉ. कलाम का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान, मेहनत और समर्पण ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।
संत रामपाल जी महाराज भी अपने उपदेशों में यही संदेश देते हैं —
“सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान और सेवा का मार्ग ही मनुष्य को सही दिशा देता है।”
उनकी अन्नपूर्णा महिमा योजना जैसी सेवाएं समाज में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं।
जैसे डॉ. कलाम ने अपने कर्म और विचारों से देश की सेवा की, वैसे ही संत रामपाल जी का सतज्ञान हमें सत्य, सेवा और विनम्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
FAQs – डॉ. अब्दुल कलाम
1. डॉ. अब्दुल कलाम का जन्म कब और कहां हुआ था?
उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था।
2. उन्हें “मिसाइल मैन” क्यों कहा जाता है?
भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम (अग्नि, पृथ्वी, त्रिशूल) में उनके नेतृत्व के कारण।
3. डॉ. कलाम की प्रमुख किताबें कौन सी हैं?
Wings of Fire, Ignited Minds, India 2020 और My Journey।
4. विजन 2020 क्या था?
भारत को 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने की डॉ. कलाम की दीर्घकालिक योजना।
5. डॉ. कलाम का निधन कब और कहां हुआ?
उनका निधन 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) में लेक्चर देते समय हृदयाघात से हुआ था।
6. डॉ. कलाम युवाओं के लिए इतने प्रेरणादायक क्यों हैं?
उनकी सादगी, मेहनत, ईमानदारी और “सपनों को हकीकत में बदलने” की कहानी के कारण।