अंतरराष्ट्रीय व्यापार में चल रहे टैरिफ युद्ध ने अब डाक सेवाओं को भी अपनी चपेट में ले लिया है। भारत और यूरोप के कई देशों ने अमेरिका को भेजे जाने वाले पार्सल और डाक सामग्री पर अस्थायी रोक लगाकर एक स्पष्ट संदेश दिया है: व्यापारिक पारदर्शिता और सहयोग अनिवार्य है।
भारत और यूरोप का संयुक्त विरोध
भारत ने 25 अगस्त से अमेरिका के लिए डाक सेवाएं बंद कर दी थीं। इसके तुरंत बाद ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, डेनमार्क और बेल्जियम जैसे यूरोपीय देशों ने भी इसी दिशा में कदम उठाया। इन देशों ने अमेरिका को भेजे जाने वाले पार्सल और डाक सामग्री पर अस्थायी रोक लगा दी है।
टैरिफ नीति में बदलाव बना विवाद का कारण
इस निर्णय के पीछे मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लागू किए गए नए टैरिफ नियम हैं। 30 जुलाई को जारी आदेश के अनुसार, अमेरिका ने 800 डॉलर तक के सामान पर मिलने वाली टैरिफ छूट को समाप्त कर दिया, जो 29 अगस्त से प्रभावी हो गई। इससे अंतरराष्ट्रीय शिपिंग महंगी और जटिल हो गई है, विशेषकर ई-कॉमर्स और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए।
शिपिंग कंपनियों की प्रतिक्रिया
जर्मनी की प्रमुख शिपिंग कंपनी डीएचएल ने स्पष्ट किया कि वह अब अमेरिका जाने वाले व्यावसायिक ग्राहकों से सामान वाले पार्सल स्वीकार नहीं करेगी। यह प्रतिबंध अस्थायी है, लेकिन अमेरिकी सीमा शुल्क विभाग द्वारा लागू की गई नई प्रक्रियाओं—जैसे अतिरिक्त डेटा की मांग, अस्पष्ट शुल्क वसूली और डेटा ट्रांसमिशन नियम—ने कंपनियों पर भारी प्रशासनिक बोझ डाल दिया है।
ब्रिटेन और फ्रांस की डाक सेवाओं पर असर
ब्रिटेन की रॉयल मेल ने भी अमेरिका के लिए शिपमेंट रोक दी है। फ्रांस, इटली और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की डाक सेवाओं ने भी इसी तरह का निर्णय लिया है। इन देशों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने डाक सेवाओं को अव्यवहारिक बना दिया है, खासकर छोटे और मध्यम व्यापारियों के लिए।
व्हाइट हाउस का तर्क और विशेषज्ञों की राय
व्हाइट हाउस ने यह तर्क दिया है कि यूरोप से अमेरिका में आने वाले फेंटेनाइल और अन्य अवैध दवाओं की रोकथाम के लिए यह कदम उठाया गया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह तर्क केवल एक बहाना है और असली वजह व्यापारिक टकराव और टैरिफ नीति में बदलाव है। अमेरिका ने अपने घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के लिए यह नीति लागू की है, लेकिन इसका असर वैश्विक व्यापार पर पड़ रहा है।
वैश्विक व्यापार पर संभावित प्रभाव
यदि अमेरिका अपनी टैरिफ नीतियों में लचीलापन नहीं दिखाता, तो यह स्थिति और अधिक गंभीर हो सकती है। इससे न केवल डाक सेवाएं प्रभावित होंगी, बल्कि ई-कॉमर्स, स्वास्थ्य सेवाएं और व्यक्तिगत संचार भी बाधित होंगे।
निष्कर्ष – व्यापारिक सहयोग की आवश्यकता
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि वैश्विक व्यापार केवल वस्तुओं के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जटिल नेटवर्क है जिसमें नीति, कूटनीति और तकनीकी प्रक्रियाएं गहराई से जुड़ी होती हैं। ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति ने इस नेटवर्क को झकझोर दिया है, और भारत तथा यूरोपीय देशों ने अपने हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए हैं।
आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अमेरिका इस प्रतिक्रिया को कैसे लेता है और क्या वह अपनी नीतियों में कोई बदलाव करता है या नहीं।