क्या गाज़ा पट्टी पर नरसंहार रुकेगा?
7 अक्टूबर को गाज़ा सीमा पर हमास ने अचानक 7,000 से अधिक रॉकेट इज़राइली शहरों पर दागे। इसके बाद सीमा पर घुसपैठ करके सैकड़ों इज़राइली नागरिकों की हत्या और बंधक बनाए जाने से शुरू हुआ यह युद्ध अब गाज़ा पट्टी में आम जनता के भीषण नरसंहार में बदल चुका है।
इज़राइल की प्रारंभिक हवाई कार्रवाई:
हमास की अवैध घुसपैठ के बाद, इज़राइली वायु सेना ने गाज़ा पट्टी पर 70,000 से अधिक बम गिराए। इस बमबारी से हमास के ठिकाने नष्ट हो गए लेकिन इसके साथ ही बुनियादी सुविधाएं भी तबाह हो गईं, जिससे आम नागरिकों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया। परमाणु वैज्ञानिकों के अनुसार, इन बमों की विध्वंसक क्षमता जापान पर गिराए गए परमाणु बम की तुलना में पांच गुना अधिक है।
गाज़ा की घेराबंदी से गहराया मानवीय संकट:
अपने अभियान के दूसरे चरण में, इज़राइल ने गाज़ा की तटीय सीमा को बंद कर दिया और मिस्र की सीमा पर भी निगरानी बढ़ा दी, ताकि हमास को बाहर से सैन्य मदद न मिल सके। हालांकि, इससे आम नागरिक भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। भोजन और चिकित्सा सामग्री की कमी के कारण, गाज़ा में लोग शुद्ध पानी की अनुपलब्धता और बीमारियों का सामना कर रहे हैं।
आईडीएफ का टैंक युद्ध:
तीसरे चरण में, इज़राइली सुरक्षा बल अपने टैंकों के साथ गाज़ा पट्टी की सुरंगों और खंडहर मकानों की तलाशी ले रहे हैं, ताकि हमास के आतंकियों का खात्मा किया जा सके। इस अभियान में हमास के आतंकियों के साथ सैकड़ों इज़राइली सैनिक भी मारे गए हैं। हमास ने गाज़ा में भूमिगत सुरंगें बना रखी हैं, जिनसे वह अचानक हमला करते हैं। यह हमे वियतनाम युद्ध की गोरिल्ला रणनीति की याद दिलाता है, जब वियतनामी सेना ने भूमिगत सुरंगों का उपयोग करके अमेरिकी सेना को पराजित किया था।
इजराइल को अमेरिकी समर्थन और रणनीतिक लाभ:
अमेरिका और इज़राइल के गहरे संबंधों के कारण, इज़राइल को युद्ध में किसी भी सैन्य सामग्री की कमी नहीं हो रही है। अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनियों को भी इससे भारी मुनाफा हो रहा है। अमेरिका मध्य पूर्व में अपना प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है, ताकि भविष्य में कोई इस्लामिक देश अमेरिका के खिलाफ आतंकवादी संगठनों को समर्थन नही दे सके। 9/11 के हमले के बाद से अमेरिका मध्य पूर्व के इस्लामिक खतरों के प्रति कठोर नीति का पालन करता आ रहा है।
हमास और इज़राइली सेना के बीच आम नागरिकों का नरसंहार :
इस संघर्ष में अब तक 40,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं, और कई अस्पतालों और स्कूलों को भी निशाना बनाया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की खाद्य और चिकित्सा सहायता भी गाज़ा में नहीं पहुंच पा रही है, जिससे लोग एक बंद जेल की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं। इसके अलावा गाज़ा में कई विदेशी नागरिक भी मारे जा चुके हैं जिनमें डॉक्टर, पत्रकार और समाजसेवी शामिल थे।
वैश्विक स्तर पर अमेरिका स्वयं को लोकतंत्र और शांति का रक्षक बताता है, लेकिन इस नरसंहार पर वह अपरोक्ष रूप से इज़राइल का साथ दे रहा है। इसके विपरीत, भारत सरकार ने दोनों पक्षों से तुरंत युद्ध रोकने और शांतिपूर्ण समाधान की अपील की है, क्योंकि भारत की नीति सदैव अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित रही है।