महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म राजस्थान में कुंभलगढ़ किले में 9 मई 1540 को हुआ था। वे महाराणा उदयसिंह (द्वितीय) व रानी जयवंता कंवर के पुत्र थे। पिता उदयसिंह ने चित्तौड़ के किले को मुगल सम्राट अकबर के हमलों से बचाने व मुगलों के अत्याचार से प्रजा की रक्षा के लिए कई संघर्ष किए, लेकिन फिर भी 1568 में चित्तौड़गढ़ मुगलों के अधीन हो गया। इन घटनाओं ने प्रताप के मन में मुगलों के प्रतिरोध और प्रतिशोध की भावना प्रबल कर दी।
महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं और स्वतंत्रता प्रेमियों में से एक थे। उनका जीवन वीरता, आत्मसम्मान और मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक है। वे मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश के राजा थे और मुगल सम्राट अकबर के साथ उनके संघर्ष ने उन्हें अमर बना दिया।
हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध
- हल्दीघाटी में अकबर एवं महाराणा प्रताप के बीच भारी युद्ध हुआ था। इस युद्ध ने एक नया इतिहास रचा था।
- हल्दीघाटी, जो राजस्थान में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, वहीं यह प्रसिद्ध युद्ध लड़ा गया था। यह स्थल मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हुए प्रसिद्ध युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
- हल्दीघाटी का इतिहास 16वीं शताब्दी में शुरू होता है, जब मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ने मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ विद्रोह किया था। अकबर ने मेवाड़ पर हमला किया और महाराणा प्रताप को हराने के लिए एक बड़ी सेना का नेतृत्व किया।
- 18 जून 1576 को हल्दीघाटी में दोनों सेनाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की सेना का सामना किया और एक बहुत ही साहसी और निडर लड़ाई लड़ी।
स्वामीभक्त घोड़ा चेतक
युद्ध के दौरान, महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक बहुत प्रसिद्ध हुआ। चेतक ने महाराणा प्रताप को युद्ध के मैदान से सुरक्षित निकाल लिया था।
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के प्रिय घोड़े चेतक ने हल्दीघाटी युद्ध में अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया। चेतक ने अपने अगले पैरों को हाथी की सूंड पर रखा जिससे प्रताप को मानसिंह पर वार करने का मौका मिला। इस युद्ध में अकबर की सेना के हाथी की सूंड में तलवार होने के कारण चेतक पर हमला किया गया, जिससे चेतक का एक पैर जख्मी हो गया।
चेतक के घायल होने के बाद भी पीछे दुश्मन की सेना पीछा कर रही थी और उसे अपने स्वामी की रक्षा भी करनी थी। इस समय चेतक ने अपने साहस का परिचय दिया और अपने स्वामी को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकालते हुए सामने बहुत बड़ा दर्रा, जिसे पार करना किसी भी स्थिति में संभव नहीं था, उस पर जोर से छलांग लगाई और दर्रे के उस पार आ गए।
वहां नीचे गिरते ही स्वामीभक्त घोड़े ने अपने स्वामी महाराणा प्रताप की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उस वक्त महाराणा प्रताप की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने चेतक को प्रणाम किया और वहां से आगे बढ़े।
स्वामीभक्त चेतक की समाधि
जहां चेतक ने अपने प्राण त्यागे, वहां आज भी उनकी समाधि बनी हुई है, जो स्वामीभक्ति की याद दिलाती है और चेतक हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गया।
क्या यह मेवाड़ का स्वतंत्रता संग्राम था?
मेवाड़ का यह युद्ध स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध ने साबित कर दिया कि मेवाड़ किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा और अकबर की सेना को बुरी तरह से मुंह की खानी पड़ी थी।
युद्ध की रणनीति और साथ देने वाले
युद्ध में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की सेना कम थी, वहीं अकबर की सेना में 18,000 सैनिक थे। लेकिन अपनी सेना का नेतृत्व स्वयं महाराणा प्रताप कर रहे थे। सेना कम होने के कारण महाराणा प्रताप ने व्यूह रचना रची, जिसमें गुरिल्ला युद्ध किया गया।
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इस युद्ध में भीलू राणा नामक सरदार ने बड़ा सहयोग किया और उन्होंने ही गुरिल्ला पद्धति बताई। जैसे ही अकबर की सेना ने हमला किया, वैसे ही महाराणा प्रताप की सेना ने आमने-सामने युद्ध न करते हुए गुरिल्ला पद्धति से युद्ध किया, जिसमें महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की सेना पर तीर, कमान, बरछी, गोफन और पत्थरों से हमला किया, जिससे अकबर की सेना में अफरा-तफरी मच गई और उन्हें लोहे के चने चबाने पड़े।
यह समाचार पाकर अकबर का सेनापति मानसिंह स्वयं युद्ध स्थल पर आ पहुंचा और महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को पकड़ने का प्रयास किया। लेकिन स्वामीभक्त भीलू राणा सेनापति ने मानसिंह की योजना को विफल कर दिया और अपने स्वामी राणा प्रताप को युद्ध से सुरक्षित निकाल लिया। इस प्रकार उन्होंने अकबर की अधीनता करने से मना कर दिया और यह युद्ध हल्दीघाटी में होने के कारण इसे ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ कहा जाता है।
हल्दीघाटी – एक पर्यटन स्थल
यह ऐतिहासिक स्थल राजस्थान में राजसमंद जिले में नाथद्वारा तहसील के खमनोर नामक क्षेत्र के पास है। वर्तमान में यह स्थान पर्यटन स्थल बन चुका है। यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग घूमने के लिए आते हैं।
यहां एक म्यूजियम बना हुआ है जो महाराणा प्रताप, चेतक के जीवन और युद्ध की घटना को दर्शाता है।
परिवहन – कैसे पहुंचें?
यहां पर पहुंचने के लिए स्वयं के वाहन से पहुंचा जा सकता है। उदयपुर तक हवाई सेवा उपलब्ध है और उसके बाद निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है।
मातृभूमि से प्रेम करने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है?
यह सत्य है कि जिन्होंने अपने वतन से प्रेम किया और प्राण न्योछावर किए, उन्हें शहादत प्राप्त होती है।
लेकिन संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि जो वतन के लिए शहीद होता है, उसे मोक्ष नही प्राप्त होता है। बल्कि जो शास्त्रों के अनुसार सतभक्ति करता है उसे मर्यादा में रहने से पूर्ण मोक्ष मिलता है। और अधिक जानकारी के लिए www.jagatgururampalji.org पर विजिट करें।
FAQs : महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)
Q महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था?
Ans 9 मई 1540 को
Q महाराणा प्रताप का जन्म कहाँ हुआ था?
Ans राजस्थान मे कुम्भलगढ किले में
Q महाराणा प्रताप ने किसकी आधीनता स्वीकार नहीं की?
Ans मुगल सम्राट अकबर की
Q महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि कहाँ पर है?
Ans हल्दीधाटी में
Q महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओ के बीच युद्ध कहाँ हुआ था?
Ans हल्दीघाटी में