जाने-माने अर्थशास्त्री, पद्मश्री से सम्मानित और लेखक बिबेक देबरॉय का निधन हो गया है। बिबेक प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने नई पीढ़ी के लिए सभी पुराणों का अंग्रेजी में आसान अनुवाद भी लिखा है। बिबेक देबरॉय 69 साल के थे। उन्हें मोदी सरकार में पद्म श्री से भी नवाजा गया था। उनके अचानक यूं चले जाने से उन्हें जानने वाले सदमे में हैं।
पीएम मोदी की टीम में था इनका खास स्थान
बिबेक देबरॉय प्रधानमंत्री मोदी आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे। सितंबर में, देबरॉय ने पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (GIPE) के कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया था। तब बॉम्बे हाई कोर्ट ने पहले हटाए गए कुलपति अजित रानाडे को अंतरिम राहत दी थी। यहीं नहीं बिबेक देबरॉय लेखक भी बहुत उम्दा थे। उन्होंने पुराणों का अंग्रेजी में आसान अनुवाद भी कर रखा है। ऐसा उन्होंने नई पीढ़ी के लिए किया था। दिल्ली एम्स ने अपने बयान में कहा कि उनका आज सुबह 7 बजे आंतों में रुकावट के कारण निधन हो गया।
मोदी जी ने भी जताया दुःख
प्रधानमंत्री मोदी ने बिबेक देबरॉय के निधन पर कहा कि डॉ. बिबेक देबरॉय जी विद्वान थे, जो अर्थशास्त्र, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, अध्यात्म और बहुत कुछ जैसे विविध क्षेत्रों में पारंगत थे। अपने कार्यों के माध्यम से, उन्होंने भारत के बौद्धिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। सार्वजनिक नीति में उनके योगदान से परे, उन्हें हमारे प्राचीन ग्रंथों पर काम करने में मजा आया, उन्हें युवाओं के लिए सुलभ बनाया।
कौन थे बिबेक देबरॉय?
बिबेक देबरॉय को उन्हें पूरे करियर में कई पुरस्कार मिले, जिनमें 2015 में पद्म श्री भी शामिल है। अगले साल यानी 2016 में उन्हें यूएस-इंडिया बिजनेस समिट में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था।देबरॉय का करियर कई भूमिकाओं में फैला हुआ था, जिसमें कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनका कार्यकाल, पुणे में गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (GIPE) और 2019 तक नीति आयोग के एक प्रमुख सदस्य के रूप में शामिल है। एक उत्साही लेखक के रूप में, उन्होंने कई पुस्तकें, शोध पत्र और राय लेख लिखे, और कई प्रमुख समाचार पत्रों के लिए कंसल्टिंग एडिटर के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने आर्थिक सुधारों, रेलवे नीति और सामाजिक असमानताओं पर अंतर्दृष्टि साझा की।
बिबेक देबरॉय के बयान किसानों पर टैक्स
देबरॉय के इस बयान पर काफी हंगामा हुआ था। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को इस पर सफाई देनी पड़ी थी। उन्होंने कहा कि सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है। देबरॉय ने एक लेख में विस्तार से इसका औचित्य समझाया था। उन्होंने आयकर कानून की धारा 2 (1ए) और धारा 10 (1) का हवाला देते हुए कृषि आय पर टैक्स लगाने के आधारभूत कानूनी ढांचे की व्याख्या की। यह कृषि आय को टैक्सेबल इनकम से बाहर रखता है, लेकिन लंबे समय से कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
बिबेक देबरॉय के निधन से देश में शोक की लहर
बिबेक देबरॉय की विदाई ने न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्र में भी एक गहरी छाप छोड़ी है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उनके शासन और नीति निर्माण में योगदान को महत्वपूर्ण बताया, जबकि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने उनकी संस्कृति के प्रति लगाव को सराहा। बिबेक देबरॉय ने अपनी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत की संस्कृति और महाकाव्यों को जन जन तक पहुंचाने में लगाया।
देश की पहचान में निभाई भूमिका
बिबेक देबरॉय का निधन एक सच्चे विद्वान की विदाई है जिन्होंने भारत की पहचान और संस्कृति को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी अनमोल धरोहर और ज्ञान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा। देश उन्हें हमेशा याद रखेगा, और उनकी अद्वितीय सोच और दृष्टिकोण का प्रभाव भारतीय राजनीति और संस्कृति पर बना रहेगा।