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Home » माइक्रोप्लास्टिक: अदृश्य लेकिन घातक जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है

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माइक्रोप्लास्टिक: अदृश्य लेकिन घातक जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है

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Last updated: October 21, 2025 1:01 pm
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माइक्रोप्लास्टिक अदृश्य लेकिन घातक जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है
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आजकल, प्लास्टिक हमारी जीवनशैली का एक पक्का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसी प्लास्टिक का एक छुपा हुआ दुश्मन‘ माइक्रोप्लास्टिक हमारे पर्यावरण और सेहत के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। यह माइक्रोप्लास्टिक दरअसल प्लास्टिक के बहुत छोटे – छोटे टुकड़े होते है, इन टुकड़ों की साइज 5 मिलीमीटर मतलह की एक तिल के दाने से भी कम होता है, जिन्हें हम अपनी खुली आंखों से भी नहीं देख सकते। हरनी की बात है कि यह कण पूरी दुनिया में फैल चुके है – गहरे समुद्रों से लेकर ऊंचे पहाड़ों की हवा तक, और तो अब यह हमारे पीने के पानी ओर खाने में भी मिल रहे है।

Contents
  • माइक्रोप्लास्टिक क्या है ओर कहा से आते है?
  • पर्यावरण और समुद्री जीवन पर गहरा असर
  • मानव स्वास्थ्य के लिए बढ़ता हुआ खतरा
  • बदलाव लाने का समय: हम क्या कर सकते है?

यह माइक्रोपस्टिक प्रदूषण एक बहुत बड़ा संकट है, जिसे अगर हमने अनदेखा किया तो यह हम इंसानों के लिए बहुत बड़ी गलती साबित होगी।

माइक्रोप्लास्टिक क्या है ओर कहा से आते है?

असल में, यह दो तरह से पैदा होते है। पहले प्राथमिक (  PRIMARY MICROPLASTIC)  वो होते है जिन्हें जान बूझकर छोटा बनाया जाता है, जैसे कि आपके फेस वाश या टूथपेस्ट में मिलने वाले छोटे दाने (माइक्रोक्रोबिड्स)। लेकिन असलल और सबसे बड़ा खतरा है द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक (SECONDARY MICROPLASTIC) जो तन बनते है अब हमारी फेंकी हुई प्लास्टिक की चीजें, जैसे बोतले, थैलियां या मछलियां पकड़ने के जाल, धूप और पानी में टूट – टूटकर बहुत छोटे टुकड़ों में बदल जाती है।

इतना ही नहीं, जब हम सिंथेलिक कपड़े धोते है तो उनसे निकलने वाले नहीं रेशे और गाड़ी के टायर घिसने से निकलने वाले कण भी इन्हीं में शामिल है। दुख की बात यह है कि हमारी रोजमर्रा की आदतें ही इन छोटे मगर खतरनाक प्लास्टिक के टुकड़ों को हर पल पर्यावरण में फैला रही है। 

पर्यावरण और समुद्री जीवन पर गहरा असर

जब ये माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण में पाउच जाए जाते है, तो यह पानी के साथ बहकर नदियों और समुद्रों में जमा हो जाते है, समुद्री जीव, जैसे मछलियां और शंख, इन्हें खाना समझकर निगल लेते है  यह प्लास्टिक उनके पेट में जम जाते है। जिससे उन्हें भूख कम लगती है, वे ठीक से बड़े नहीं हो पाते, और कही बार तो उनका दम ही टूट जाता है। यह उनके स्वभाव और डीएनए को भी बिगाड़ सकता है। यह खतरा केवल समुद्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि जमीन या मिट्टी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी की क्वालिटी, पोषक तत्व और पानी सोखने की ताकत को भी खराब कर देता है, जिससे खेती पर पौधों का बढ़ने में दिक्कत होती है।

चुकी यह कण बहुत धीरे – धीरे खत्म होते है, इसलिए ये कई सालों तक पर्यावरण में बने रहकर लंबे समय तक चलने वाला प्लास्टिक पॉल्यूशन का संकट पैदा करते है।

मानव स्वास्थ्य के लिए बढ़ता हुआ खतरा

सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि यह माइक्रोप्लास्टिक अब हमारे शरीर में आसानी से अंदर पाउच गया है। हम इन्हें खाने (खासकर मछली, नमक), पीने (बोतलबंद पानी) और सांस लेने (हवा) के जरिए अनजाने में निगल रहे है। वैज्ञानिक ने तो इन कणों को इंसानी खून, फेफड़ों और यह तक की गर्भनाल में भी ढूंढ निकला है। सोचिए, हम हर हफ्ते एक क्रेडिट कार्ड के बराबर प्लास्टिक का रहे है  शरीर के अंदर जाकर ये कण सूजन और तनाव पैदा करते है।

और इन प्लास्टिक में BPA जैसे खतरनाक रसायन होते है, जो हमारे हार्मोनल सिस्टम को बिगाड़ सकते है और कैंसर, दिल की बीमारी या बच्चों के विकास में रुकावट आ सकती है। इसीलिए मानव स्वस्थ पर माइक्रोप्लास्टिक का खतरा अब बेहत ज्यादा गम्भीर है।

बदलाव लाने का समय: हम क्या कर सकते है?

माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए अब हमें प्लास्टिक से दूरी बनानी चाहिए। भले ही यह एक बड़ी समस्या है, लेकिन हमारी यही कोशिश बड़ा बदलाव लाएगी। तुरंत सिंगल – यूज़ प्लास्टिक जैसे थैलियां, स्ट्रो को ना कहे और अपनी पानी की बोतल या कपड़े के थैले जैसी दुबारा उपयोग होने वाली चीजें अपनाए।

उन सौंदर्य उत्पादों से बचे जिनमें माइक्रोबीड्स होते है। सिंथेटिक की जगह नेचुरल कपड़ों को चुने, और सबसे जरूरी, खुद जागरूक हो कर इस प्लास्टिक पॉल्यूशन के बारे में दूसरों को भी बताए।

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