आज के डिजिटल युग में बच्चों का ज़्यादातर समय टीवी, मोबाइल, लेपटॉप और टैबलेट की स्क्रीन पर बीतता है। पर सवाल उठता है क्या बच्चे वास्तव में बिना स्क्रीन के बड़े हो सकते हैं? बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञों और चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि, “यह चुनौतीपूर्ण ज़रूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। जीवनशैली में छोटे बदलाव, स्पष्ट नियम और परिवार की सक्रिय भागीदारी से बच्चों को स्क्रीन-फ्री वातावरण दिया जा सकता है।”
- बच्चों को स्क्रीन फ्री शिक्षा देने से संबंधित मुख्य बिंदु:
- बच्चों पर पड़ रहा है स्क्रीन का गहरा असर
- स्क्रीन फ्री बच्चे कौशल निपुण होते हैं
- बच्चें को स्क्रीन फ्री बनाने में माता-पिता की अहम भूमिका
- स्कूल और ऑनलाइन पढ़ाई
- बचपन में भक्ति और संस्कार: संत रामपाल जी के विचार
- बच्चों को स्क्रीन फ्री शिक्षा देने से संबंधित मुख्य FAQs:
हाल के अध्ययनों के मुताबिक लगातार स्क्रीन देखने से बच्चों की आँखों, नींद और मानसिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। वहीं जब बच्चों को आउटडोर गेम्स, किताबों और रचनात्मक गतिविधियों में शामिल किया जाता है, तो वे अधिक सक्रिय, कल्पनाशील और सामाजिक बनते हैं।
बच्चों को स्क्रीन फ्री शिक्षा देने से संबंधित मुख्य बिंदु:
- 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम बिल्कुल कम या शून्य होनी चाहिए।
- माता-पिता खुद कम स्क्रीन का उपयोग करेंगे तो बच्चे भी आदत सीखेंगे।
- आउटडोर गेम्स जैसे पार्क, खेलकूद, और क्रिएटिव आर्ट एक्टिविटी से बच्चों को व्यस्त और खुश रखें।
- परिवार के सभी सदस्य मिलकर किताबें पढ़ना, कहानियाँ सुनाना और बोर्ड गेम्स खेलना स्क्रीन का बढ़िया विकल्प है।
- घर में स्क्रीन इस्तेमाल के समय और जगह के लिए स्पष्ट नियम तय करना ज़रूरी है।
बच्चों पर पड़ रहा है स्क्रीन का गहरा असर
कई शोध बताते हैं कि लंबे समय तक स्क्रीन देखने से बच्चों की नींद, आंखों की रोशनी, एकाग्रता और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम से मोटापे, व्यवहार संबंधी समस्याओं और सीखने की क्षमता में कमी का खतरा भी बढ़ जाता है।
स्क्रीन फ्री बच्चे कौशल निपुण होते हैं
बिना स्क्रीन के पले-बढ़े बच्चे अधिक रचनात्मक, सामाजिक और शारीरिक रूप से सक्रिय पाए गए हैं। वे बाहर खेलते हैं, किताबें पढ़ते हैं, क्राफ्ट, संगीत, और कल्पनाशील खेलों में हिस्सा लेते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल मजबूत होता है।
बच्चें को स्क्रीन फ्री बनाने में माता-पिता की अहम भूमिका
- रोल मॉडल बनें: बच्चे वही सीखते हैं जो वे अपने माता-पिता को करते देखते हैं। इसलिए सबसे पहले बड़े खुद अपना स्क्रीन टाइम सीमित करें।
- स्पष्ट नियम बनाएं: घर में तय करें कि स्क्रीन कब और कितने समय के लिए चलेगी।
- दिलचस्प विकल्प दें: पार्क में खेलना, किताबें पढ़ना, कहानी सुनाना, बोर्ड गेम्स, पेंटिंग और म्यूज़िक बच्चों को व्यस्त और खुश रखते हैं।
- फैमिली टाइम बढ़ाएँ: रोज़ाना परिवार के साथ सामूहिक गतिविधियाँ करें ताकि बच्चा स्क्रीन की ज़रूरत महसूस ही न करे।
स्कूल और ऑनलाइन पढ़ाई
महामारी के बाद से ऑनलाइन क्लास का चलन बढ़ा है, लेकिन विशेषज्ञों का सुझाव है कि पढ़ाई से जुड़ा स्क्रीन टाइम भी समयबद्ध और मॉनिटर किया जाए। पढ़ाई के बाद बच्चों को ऑफलाइन गतिविधियों में शामिल करने पर ज़ोर देना चाहिए।
बचपन में भक्ति और संस्कार: संत रामपाल जी के विचार
मनुष्य शरीर ईश्वर की दी हुई अनमोल देन है, जिसमें संस्कार और भक्ति की नींव रखी जाती है। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज कहते हैं कि बच्चों को केवल शैक्षणिक ज्ञान और खेल तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें परमात्मा की भक्ति की ओर मार्गदर्शन दें। माता-पिता और गुरुओं का कर्तव्य है कि वे बच्चे को पवित्र वातावरण में रखें, उन्हें अच्छे संस्कार सिखाएँ और छोटे-छोटे कार्यों में भक्ति का अनुभव कराएँ। रोज़ाना की साधारण गतिविधियों जैसे भोजन, पढ़ाई और खेल के समय भी परमात्मा की स्मृति और सच्ची भक्ति की आदत डालें, ताकि उनका जीवन धर्म और भक्ति से परिपूर्ण बने।
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बच्चों को स्क्रीन फ्री शिक्षा देने से संबंधित मुख्य FAQs:
Q1. क्या बच्चों को पूरी तरह स्क्रीन से दूर रखना ज़रूरी है?
A1. शिशु और छोटे बच्चों के लिए हाँ, लेकिन बड़े बच्चों के लिए सीमित, शिक्षाप्रद और मॉनिटर किया हुआ स्क्रीन टाइम सुरक्षित माना जाता है।
Q2. स्क्रीन से दूर रखने के क्या फायदे हैं?
A2. आंखों की सुरक्षा, बेहतर नींद, रचनात्मक सोच, और शारीरिक विकास में मदद मिलती है।
Q3. अगर बच्चा स्क्रीन की ज़िद करे तो क्या करें?
A3. धैर्य से समझाएँ, रोचक ऑफलाइन एक्टिविटी दें और खुद भी स्क्रीन का कम उपयोग कर मिसाल पेश करें।
Q4. स्कूल की ऑनलाइन पढ़ाई का क्या?
A4. ज़रूरी ऑनलाइन क्लास को छोड़कर बाकी समय ऑफलाइन गतिविधियों पर फोकस करें।
Q5. बच्चों को बचपन से भक्ति और ईश्वर की समझ कैसे सिखाई जाए, ताकि उनका जीवन धर्म और मोक्ष की ओर अग्रसर हो?
A5. तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, बच्चों को बचपन से ही पवित्र वातावरण में रखना चाहिए। उन्हें माता-पिता और तत्वदर्शी संत के मार्गदर्शन में परमात्मा की भक्ति, सच्चे संस्कार और धर्म के मूल्य सिखाएँ। रोज़मर्रा की गतिविधियों जैसे भोजन, पढ़ाई और खेल में ईश्वर की याद और भक्ति की आदत डालें। इससे बच्चे धर्म के मार्ग पर चलना सीखते हैं और उनका जीवन मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।