गुरु तो जीवन में बहुत होते हैं, जैसे प्रथम गुरु मां को कहा जाता है और शब्द ज्ञान व शिक्षा प्राप्ति के लिए सांसारिक गुरु कई होते हैं। व्यावसायिक गुरु भी कई हो सकते हैं, परंतु सतगुरु वह होता है जो शास्त्रों के अनुकूल आध्यात्मिक ज्ञान देकर साधक को सही मार्ग दिखाए और उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने में सक्षम हो। सतगुरु केवल वही होता है जो सत्य आध्यात्मिक ज्ञान (तत्वज्ञान) के आधार पर सच्ची भक्ति की विधि बताए और तीनों लोकों के साथ सभी लोकों के रहस्यों को स्पष्ट करे।
संत रामपाल जी महाराज अपने प्रवचनों में वेदों, गीता और अन्य सभी धार्मिक ग्रंथों का प्रमाण देते हुए समझाते हैं कि सतगुरु वही है जो पूर्ण परमात्मा के बारे में सही ज्ञान दे और साधक को परमात्मा की सही उपासना करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करे। उनके अनुसार, कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं और सतगुरु की पहचान उनके तत्वज्ञान और साधना विधि से होती है।
सतगुरू के लक्षण
सतगुरू के लक्षण कहूं, मधुरे बैन, विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कहे अठारह बोध।।
सतगुरु के वे लक्षण हैं जो चार वेद, छह शास्त्र और अठारह पुराण सहित सभी ग्रंथों के आधार पर ज्ञान बताते हैं। तत्वज्ञान रूपी शस्त्र से साधक के सभी भ्रम और अज्ञान को नष्ट कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
सतगुरू के शरण में सभी पाप कर्मों का नाश हो जाता है
सच्चे सतगुरू की शरण में जाने से साधक के प्रारब्ध और वर्तमान में किए गए सभी पाप कर्मों का नाश हो जाता है। सतगुरू के बताए गए सतभक्ति मार्ग के अनुसार साधना करने से साधक को सभी व्रत और तीर्थों का लाभ प्राप्त होता है।
जब ही सतनाम हृदय धरों, भयो पाप को नाश।
जैसे चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुरानी घास।।
सतगुरू शरण में आए कर, फिर धर्मराय का डर कैसा?
सच्चे सतगुरू की शरण प्राप्त करने से साधक के सभी प्रकार के भय का नाश हो जाता है। जन्म-मरण रूपी रोग का समाधान प्राप्त कर वह धर्मराय अर्थात मृत्यु के भय से भी विजय प्राप्त कर लेता है।
सतगुरू की शरण कब प्राप्त होती है?
असंख्य जन्मों के पुण्य के पश्चात सतगुरू की शरण प्राप्त होती है। बहुत कुर्बानियों के बाद ही सतगुरू हमें अपने शरण में लेते हैं। यह डूम-भाट के गीत नहीं हैं, बल्कि सच्चा ज्ञान है। परमात्मा अपनी वाणी में कहते हैं:
लख बर सुरा जूझहीं, लख बर सावंत देह।
लख बर यति जहांन में, तब सतगुरू शरणा ले।।
लाखों बार शूरवीर रह चुके, लाखों बार सावंत देह जैसे पुण्य आत्माओं के रूप में जन्म ले चुके, लाखों बार यति और जति रह चुके, लाखों बार सेवा और समर्पण जैसी कुर्बानियां दे चुके साधक को ही सतगुरू की शरण प्राप्त होती है।
सतगुरू की पहचान गीता में
गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत अर्थात सतगुरू के बारे में उल्लेख है—
ऊर्ध्वमूलम्, अधः शाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।
अर्थ:
जो पुरुष संसार रूपी पीपल के वृक्ष को मूल सहित तत्त्व से जानता है, वही वेदों के वास्तविक तात्पर्य को जानने वाला होता है।
निष्कर्ष
संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे सतगुरु हैं, जिनसे लाखों-करोड़ों अनुयायियों ने उपदेश प्राप्त कर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया है। उनके दिव्य ज्ञान और कृपा से असाध्य रोगों से मुक्ति पाई गई है, और असंख्य भक्त मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो चुके हैं। वह सभी धर्मग्रंथों के प्रमाणों के आधार पर तत्वज्ञान प्रस्तुत करते हैं और सच्ची भक्ति विधि का मार्गदर्शन देते हैं। यही प्रमाण एक सतगुरु की सच्ची पहचान के लिए पर्याप्त हैं।उनका प्रसिद्ध नारा है:
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
कबीर सागर में भी प्रमाण है—
जो मम संत सत शब्द दृढ़ावे, वाकी संग सब राड़ बढ़ावे।
लोगों में यह चर्चा का विषय है कि एक “विवादित” संत के अनुयायियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। आप भी उनके तत्वज्ञान को समझने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड करें और वेबसाइट www.jagatgururampalji.org पर विजिट करें।