फार्मा कंपनियों की अनैतिक मार्केटिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने कहा, “यदि डॉक्टर जेनेरिक दवाएं लिखें, तो फार्मा कंपनियों द्वारा दी जाने वाली रिश्वत और महंगी दवाओं का चलन रुक सकता है।” फिलहाल इस मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को तय की गई है। यह याचिका अधिवक्ता सुरभि अग्रवाल द्वारा तैयार की गई और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अपर्णा भट्ट द्वारा दायर की गई थी।
जस्टिस संदीप मेहता ने सुनवाई के दौरान पूछा: “क्या कोई कानूनी आदेश है कि डॉक्टर सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही लिखें?”
वकील ने जवाब दिया: “यह डॉक्टर के विवेक पर है, अभी कोई वैधानिक आदेश नहीं है।”
राजस्थान सरकार ने यह नियम पहले ही लागू कर दिया है कि डॉक्टर सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही लिखें, ब्रांडेड नहीं।
सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी
बीते वर्षों में यह देखा गया है कि फार्मा कंपनियां डॉक्टरों को महंगी ब्रांडेड दवाएं लिखने के लिए प्रलोभन देती हैं। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि: “यदि डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवा लिखना कानूनी रूप से अनिवार्य कर दिया जाए, तो फार्मा कंपनियों द्वारा रिश्वत देने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकती है।”
कोर्ट ने फार्मा मार्केटिंग कोड को लेकर क्या सुझाव दिया है?
सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा कंपनियों की अनैतिक मार्केटिंग प्रैक्टिसेज़ को लेकर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने यह संकेत दिया कि अगर फार्मा कंपनियों द्वारा अपनी दवाओं को डॉक्टरों तक पहुँचाने के लिए रिश्वत और अन्य अनैतिक तरीकों को नियंत्रित नहीं किया गया, तो इसका सीधा असर समाज और मरीजों पर पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा मार्केटिंग कोड (Pharmaceutical Marketing Code) के कानूनी रूप में लागू होने तक खुद गाइडलाइनों को तय करने का प्रस्ताव दिया। गाइडलाइन में ये बातें मुख्य रूप से शामिल हो सकती हैं:
1. जेनेरिक दवाओं को प्राथमिकता देना:
कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए प्रेरित किया जाए, ताकि महंगे ब्रांडेड दवाओं के प्रमोशन और उनके लिए रिश्वत देने की प्रथा खत्म हो सके। जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं और इनकी गुणवत्ता भी ब्रांडेड दवाओं जैसी ही होती है, इसलिये इनका प्रयोग अधिक व्यापक हो सकता है।
2. फार्मा कंपनियों पर निगरानी:
कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि क्यों फार्मा कंपनियों के विपणन (Marketing) को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कानून नहीं बनाया गया है। कोर्ट का मानना है कि जब तक फार्मा मार्केटिंग कोड को कानूनी रूप नहीं दिया जाता, तब तक कोर्ट खुद दिशा-निर्देश जारी करेगा।
3. सख्त दवाइयों का प्रमोशन:
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि अगर फार्मा कंपनियां केवल अपनी दवाओं के बारे में सही और निष्पक्ष जानकारी देती हैं, तो इसका असर समाज के स्वास्थ्य पर सकारात्मक होगा। इसके अलावा, ये कंपनियां डॉक्टर्स को महंगे ब्रांड की दवाइयों के लिए रिश्वत देने के बजाय, सचेत तरीके से अपनी दवाओं का प्रचार कर सकती हैं।
4. जागरूकता और शिक्षा:
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों को दवाओं के प्रचार और उपयोग के लिए एक विशेष कोड ऑफ कंडक्ट (Code of Conduct) के तहत आना चाहिए, जिससे समाज में इस विषय पर जागरूकता फैलाई जा सके।
5. राज्य स्तरीय योजनाएं:
कुछ राज्यों, जैसे राजस्थान, ने पहले से डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने का नियम लागू किया है। कोर्ट ने इसे एक उदाहरण के रूप में देखा और कहा कि अन्य राज्य भी इस तरह के नियमों को लागू करें, ताकि फार्मा कंपनियों के अनैतिक तरीके पर रोक लगाई जा सके।
कोर्ट ने संकेत दिए कि जब तक फार्मास्युटिकल मार्केटिंग के यूनिफॉर्म कोड को कानून का दर्जा नहीं मिलता, कोर्ट स्वयं गाइडलाइन जारी कर सकता है। इसका उद्देश्य डॉक्टरों और फार्मा कंपनियों के बीच अनैतिक व्यवहार पर लगाम लगाना है।
अगली सुनवाई 24 जुलाई 2025 को होगी
दरअसल, फार्मा उद्योग में अनैतिक मार्केटिंग की प्रभावी रोकथाम और नियंत्रण की मांग तेज़ हो गई है। भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा सभी डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने का ही निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने इस पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए राजस्थान को एक उदाहरण के रूप में देखा। फिलहाल कोर्ट ने अगली सुनवाई 24 जुलाई को तय कर दी है।
जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं में अंतर क्या है?
1. जेनेरिक दवाएं (Generic Medicines):
ये वे दवाएं होती हैं जिनमें वही सक्रिय तत्व (Active Ingredient) होता है जो किसी ब्रांडेड दवा में होता है। ये दवाएं उसी तरह असर करती हैं, लेकिन कीमत बहुत कम होती है क्योंकि इन पर ब्रांडिंग, मार्केटिंग या भारी मुनाफा नहीं जोड़ा जाता।
2. ब्रांडेड दवाएं (Branded Medicines):
ये किसी कंपनी द्वारा अपने ब्रांड नाम से बेची जाती हैं। हालांकि इनका भी फार्मूला वही होता है जो जेनेरिक दवाओं का होता है, लेकिन कंपनियां इन पर रिसर्च, प्रचार और मार्केटिंग का खर्च जोड़कर कीमत बढ़ा देती हैं।
जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तरह ही असरदार होती हैं, लेकिन वे सस्ती होती हैं। सुप्रीम कोर्ट इसी कारण डॉक्टरों को जेनेरिक दवा लिखने पर जोर दे रहा है ताकि मरीजों का खर्च घटाया जा सके और रिश्वतखोरी पर लगाम लगे।
जेनेरिक दवाओं से जुड़े FAQs
1. सुप्रीम कोर्ट ने फार्मा कंपनियों के खिलाफ क्या टिप्पणी की है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डॉक्टरों द्वारा केवल जेनेरिक दवाएं लिखी जाएं तो फार्मा कंपनियों की रिश्वत और ब्रांडेड दवाओं को बढ़ावा देने की अनैतिक प्रथा पर रोक लग सकती है।
2. क्या भारत में डॉक्टरों के लिए केवल जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य है?
पूरे भारत में यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन राजस्थान जैसे राज्यों में यह कानूनी रूप से अनिवार्य किया गया है कि डॉक्टर केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखें।
3. जेनेरिक दवाएं क्या होती हैं और ये ब्रांडेड दवाओं से कैसे अलग हैं?
जेनेरिक दवाएं वे होती हैं जिनमें वही सक्रिय घटक होते हैं जो ब्रांडेड दवाओं में होते हैं, लेकिन इनकी कीमत कम होती है क्योंकि इनका प्रचार-प्रसार कम खर्चीला होता है।
4. कोर्ट ने फार्मा मार्केटिंग कोड को लेकर क्या सुझाव दिया है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक फार्मास्युटिकल मार्केटिंग कोड को कानूनी रूप नहीं दिया जाता, तब तक कोर्ट खुद गाइडलाइन जारी कर सकता है।
5. इस मामले में अगली सुनवाई कब होगी?
फार्मा कंपनियों की अनैतिक मार्केटिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 24 जुलाई 2025 को होगी।