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Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला: सभी हाई कोर्ट जजों को समान पेंशन

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Last updated: May 25, 2025 1:32 pm
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Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला सभी हाई कोर्ट जजों को समान पेंशन
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  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सभी रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों को सालाना 13.5 लाख रुपये की पेंशन दी जाए।
  • ‘वन रैंक वन पेंशन’ की तर्ज पर अब से सभी को समान पेंशन मिलेगी।
  • फैसले से न्यायपालिका में पारदर्शिता और समानता को मिलेगा बल।

नई दिल्ली (मई 2025): भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था ने एक बड़ा और सराहनीय फैसला सुनाते हुए न्यायपालिका में पेंशन व्यवस्था को लेकर दशकों से चली आ रही असमानता को समाप्त कर दिया है। अब देश के सभी हाई कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीशों को समान पेंशन मिलेगी, भले ही वे किसी भी समय या पद पर से सेवानिवृत्त हुए हों।

Contents
क्या है यह फैसला?पहले क्या स्थिति थी?‘वन रैंक वन पेंशन’ का अर्थकितने न्यायाधीशों को लाभ मिलेगा?विशेषज्ञों की प्रतिक्रियानिर्णय का महत्ववन रैंक वन पेंशन’ से जुड़े FAQs

यह निर्णय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनाया। बेंच ने स्पष्ट कहा कि, “अब रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों के बीच पेंशन को लेकर कोई अंतर नहीं किया जाएगा और केंद्र सरकार को उन्हें वार्षिक ₹13.50 लाख की पूरी पेंशन प्रदान करनी होगी।”

क्या है यह फैसला?

इस फैसले के तहत अब ‘वन रैंक वन पेंशन’ की नीति न्यायपालिका में भी लागू की जाएगी। पहले तक यह अवधारणा मुख्य रूप से सशस्त्र बलों तक सीमित थी, लेकिन अब उच्च न्यायालयों के रिटायर्ड न्यायाधीश भी इस लाभ के पात्र होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया कि इस फैसले को लागू करने के लिए जितना जल्द हो सके, वित्तीय व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं।

पहले क्या स्थिति थी?

अब तक, हाई कोर्ट से रिटायर होने वाले न्यायाधीशों की पेंशन उनकी सेवा अवधि और सेवानिवृत्ति के वर्ष के अनुसार तय होती थी। इससे कई बार एक ही पद पर कार्य कर चुके दो न्यायाधीशों को अलग-अलग पेंशन मिलती थी। यह व्यवस्था न्याय के सिद्धांतों के विपरीत थी।

इस असमानता के खिलाफ कई रिटायर्ड न्यायाधीशों और कानूनी संगठनों ने वर्षों से आवाज़ उठाई थी, जिसका परिणाम अब एक ऐतिहासिक फैसले के रूप में सामने आया है।

‘वन रैंक वन पेंशन’ का अर्थ

यह नीति इस विचार पर आधारित है कि एक ही रैंक और पद पर कार्य कर चुके व्यक्ति को एक समान पेंशन मिलनी चाहिए, भले ही उनकी सेवानिवृत्ति का समय अलग-अलग क्यों न हो। यह व्यवस्था सैन्य सेवाओं में पहले से लागू है, और अब न्यायपालिका भी इसके दायरे में आएगी।

कितने न्यायाधीशों को लाभ मिलेगा?

इस निर्णय से भारत के विभिन्न राज्यों के सैकड़ों रिटायर्ड हाई कोर्ट जजों को सीधा फायदा मिलेगा। इसके साथ-साथ, यह भविष्य में सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों के लिए भी एक मज़बूत और पारदर्शी पेंशन व्यवस्था की नींव रखेगा।

विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

कानूनी जानकारों और न्यायिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनके अनुसार, यह निर्णय न्यायपालिका की निष्पक्षता, सम्मान और गरिमा को मजबूत करेगा। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य के अनुसार, “यह न केवल एक नीतिगत सुधार है, बल्कि न्याय के मूलभूत सिद्धांतों की जीत भी है।”

निर्णय का महत्व

  • समानता की स्थापना: न्यायाधीशों को समान पेंशन मिलना न्याय की अवधारणा को लागू करने का सर्वोत्तम उदाहरण है।
  • भविष्य में प्रेरणा: इस नीति से वर्तमान और भावी न्यायाधीशों में विश्वास और निष्ठा बढ़ेगी।
  • संवैधानिक गरिमा: सभी जजों को समान आर्थिक सम्मान मिलना उनके संवैधानिक कर्तव्यों का सम्मान है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल एक पेंशन योजना से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह भारत की न्यायिक प्रणाली में समानता और सम्मान की भावना को मज़बूती से स्थापित करता है। ‘वन रैंक वन पेंशन’ अब सिर्फ सैन्य बलों की अवधारणा नहीं रही, बल्कि न्यायपालिका में भी समानता की गूंज सुनाई देने लगी है।

वन रैंक वन पेंशन’ से जुड़े FAQs

Q1. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसके लिए लागू होगा?

A1. यह फैसला सभी रिटायर्ड हाई कोर्ट के जजों पर लागू होगा, चाहे वे किसी भी वर्ष में रिटायर हुए हों।

Q2. उन्हें सालाना कितनी पेंशन दी जाएगी?

A2. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि उन्हें ₹13.50 लाख सालाना की पूरी पेंशन दी जाए।

Q3. क्या यह फैसला ‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति के तहत आता है?

A3. हाँ, यह निर्णय न्यायपालिका में ‘वन रैंक वन पेंशन’ नीति को लागू करता है।

Q4. इससे न्यायपालिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

A4. यह निर्णय न्यायपालिका में समानता, पारदर्शिता और आत्मसम्मान को बढ़ावा देगा।

Q5. क्या यह फैसला सिर्फ मुख्य न्यायाधीशों पर लागू है?

A5. नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह सभी रिटायर्ड हाई कोर्ट न्यायाधीशों पर समान रूप से लागू होगा, न कि केवल मुख्य न्यायाधीशों पर।

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