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Home » भारत की कड़ी कार्रवाई पर पाकिस्तान की शिमला समझौता रद्द करने की धमकी

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भारत की कड़ी कार्रवाई पर पाकिस्तान की शिमला समझौता रद्द करने की धमकी

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Last updated: April 26, 2025 12:23 pm
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भारत की कड़ी कार्रवाई पर पाकिस्तान की शिमला समझौता रद्द करने की धमकी
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शिमला समझौता: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी कई तीव्र प्रतिक्रियाएं दी हैं—जिनमें वाघा बॉर्डर को बंद करना, सार्क वीजा सुविधा को स्थगित करना और भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करना शामिल है।

Contents
शिमला समझौता के मुख्य बिंदुशिमला समझौते की नींव: 1971 का निर्णायक युद्धशिमला समझौते की प्रमुख शर्तें: संवाद और शांति की दिशा में ऐतिहासिक पहलशिमला समझौते की अवहेलना करता रहा है पाकिस्तानक्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?

इस घटना के बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने गुरुवार को तत्काल नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) की आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में पाकिस्तान ने भारत पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए, शिमला समझौते को निलंबित करने का ऐलान कर दिया। साथ ही, उन्होंने संकेत दिया कि पाकिस्तान भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है।

पाकिस्तान की इन धमकियों के चलते एक बार फिर ‘शिमला समझौता’ सुर्खियों में आ गया है। यह समझौता 1972 में भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच शांति बहाल करने के उद्देश्य से किया गया था। अब सवाल उठता है कि शिमला समझौता वास्तव में है क्या? इसका ऐतिहासिक और मौजूदा समय में क्या महत्व है? और क्या पाकिस्तान के पास इसे रद्द करने का कानूनी अधिकार है? आइए इन पहलुओं को सरल भाषा में समझते हैं।

शिमला समझौता के मुख्य बिंदु

  1. 1971 के बाद भारत – पाक शांति की नीव बनी – शिमला समझौता।
  2. शिमला समझौते की बड़ी शर्तें।
  3. पाकिस्तान बार बार तोड़ता रहा मर्यादा की सीमा।
  4. शिमला समझौता टूटने से गर्मा सकता है सीमा की संतुलन।

शिमला समझौते की नींव: 1971 का निर्णायक युद्ध

शिमला समझौता: भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसकी जड़ें तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में फैली अस्थिरता और मानवीय संकट में थीं। पाकिस्तान की सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए गए अत्याचारों के चलते लाखों लोग जान बचाकर भारत की ओर पलायन करने लगे। हालात बेकाबू होते देख भारत ने न केवल मानवीय जिम्मेदारी निभाई, बल्कि स्थिति को सुलझाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप का रास्ता अपनाया।

यह युद्ध भारत की ऐतिहासिक और निर्णायक जीत के रूप में दर्ज हुआ। लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विश्व मानचित्र पर उभर कर सामने आया।

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भारत उस समय चाहता तो पाकिस्तान पर कठोर शर्तें थोप सकता था, लेकिन इसके बजाय भारत ने दीर्घकालिक शांति और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दी। इसी शांतिपूर्ण दृष्टिकोण से प्रेरित होकर भारत ने पाकिस्तान को संवाद का अवसर दिया और दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के बीच ‘शिमला समझौता’ हुआ।

शिमला समझौते की प्रमुख शर्तें: संवाद और शांति की दिशा में ऐतिहासिक पहल

शिमला समझौता: 1972 में हस्ताक्षरित शिमला समझौते में भारत और पाकिस्तान ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सहमति जताई, जो आगे चलकर दोनों देशों के संबंधों की रूपरेखा बने। इनमें से प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:

  1. द्विपक्षीय वार्ता का सिद्धांत: दोनों देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त किया कि आपसी मतभेदों और विवादों को केवल द्विपक्षीय बातचीत के ज़रिए ही सुलझाया जाएगा। किसी तीसरे पक्ष चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, अमेरिका या कोई अन्य वैश्विक शक्ति की मध्यस्थता को साफ़ तौर पर नकार दिया गया।

यह बिंदु विशेष रूप से भारत की कूटनीतिक जीत माना गया, क्योंकि पाकिस्तान प्रायः कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की कोशिश करता रहा है।

  1. बल प्रयोग से परहेज़: भारत और पाकिस्तान ने यह संकल्प लिया कि वे किसी भी परिस्थिति में एक-दूसरे के विरुद्ध हिंसा या सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे। सभी मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीक़ों से, समझदारी और सहमति के साथ सुलझाया जाएगा।
  1. नियंत्रण रेखा (एलओसी) का पुनर्निर्धारण: 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान ने जमीनी हालात को स्वीकार करते हुए एक नई नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ़ कंट्रोल) तय की। दोनों देशों ने इस सीमा रेखा को आपसी सहमति से मान्यता दी, जो आज भी जम्मू-कश्मीर में दोनों देशों के बीच की वास्तविक सीमा के रूप में मौजूद है। यह रेखा युद्ध के बाद स्थायी सीमा निर्धारण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
  1. युद्धबंदियों और कब्जे की गई भूमि की वापसी: भारत ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए पाकिस्तान के लगभग 93,000 युद्धबंदियों को बिना किसी पूर्व शर्त के रिहा कर दिया। इसके अलावा, युद्ध के दौरान भारत द्वारा कब्जे में ली गई अधिकांश भूमि भी सौहार्दपूर्ण भाव से पाकिस्तान को वापस कर दी गई। यह कदम भारत की नीति में उदारता और स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक था।

शिमला समझौते की अवहेलना करता रहा है पाकिस्तान

शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान ने भारत को जो आश्वासन दिए, वे केवल शब्दों तक सीमित रह गए—ना तो उन वचनों को समझा गया और ना ही निभाया गया। वर्षों से पाकिस्तान इस समझौते की आत्मा और शर्तों का बार-बार उल्लंघन करता रहा है। इतिहास स्वयं गवाह है कि पाकिस्तान ने कश्मीर जैसे भारत के आंतरिक और संवेदनशील विषय को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया। संयुक्त राष्ट्र से लेकर इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) तक, उसने इस मुद्दे को उछालने की कोशिश की, पर हर बार उसके दावे तथ्यहीन और झूठे सिद्ध हुए।

क्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?

2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध सख्त कूटनीतिक रुख अपनाया। इसके प्रत्युत्तर में पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लेख करते हुए घोषणा की कि जब तक भारत “संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों” और “अंतरराष्ट्रीय नियमों” का पालन नहीं करता, तब तक वह भारत के साथ किए गए सभी द्विपक्षीय समझौतों को ‘स्थगित’ करता है। यह एक प्रकार से समझौते को निलंबित करने की घोषणा थी। परंतु मूल प्रश्न यह उठता है क्या पाकिस्तान इस समझौते को पूरी तरह से रद्द भी कर सकता है?

शिमला समझौता: रक्षा विशेषज्ञों की राय में, तकनीकी रूप से कोई भी देश किसी भी संधि या समझौते से खुद को अलग कर सकता है। किंतु ऐसा कदम उसकी अंतरराष्ट्रीय साख और भरोसेमंद छवि पर गंभीर असर डालता है। पाकिस्तान यदि शिमला समझौते को रद्द करता है, तो वह अप्रत्यक्ष रूप से यह भी स्वीकार कर लेगा कि कश्मीर मुद्दे को अब शांतिपूर्ण वार्ता से सुलझाने की कोई संभावना नहीं बची है।

इस स्थिति में भारत भी स्पष्ट रूप से यह कह सकता है कि यदि पाकिस्तान इस समझौते से पीछे हटता है, तो भारत पर भी किसी प्रकार की कूटनीतिक या संवादात्मक बाध्यता नहीं रह जाती। यानी भारत भी फिर अपने फैसले लेने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र होगा। अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है, तो इससे भारत-पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद की संभावनाएं लगभग समाप्त हो सकती हैं और वैश्विक मंचों पर तनाव और भी गहरा सकता है।

इस समझौते के तहत लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) के सम्मान और पालन की जिम्मेदारी दोनों देशों पर थी। लेकिन अगर यह संधि अमान्य घोषित होती है, तो सीमाओं पर सैन्य गतिविधियों में उत्तेजना बढ़ने की संभावना भी बन सकती है, जिससे टकराव या संघर्ष की आशंका गहरा सकती है।

इसके अलावा, भविष्य में अगर किसी भी तरह की झड़प या युद्ध जैसी स्थिति पैदा होती है, तो युद्धबंदियों की रिहाई, संघर्षविराम या अन्य मानवीय समझौतों को लेकर परस्पर भरोसे की कमी देखने को मिल सकती है।

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