3 जनवरी, सावित्रीबाई फुले जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन 19वीं सदी की महान समाज सुधारक और भारत में महिला शिक्षा की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन को स्मरण करने के लिए महत्वपूर्ण है। उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक कार्यों ने महिलाओं के लिए शिक्षा और समानता के अधिकार को बढ़ावा देने में समाज पर गहरा प्रभाव डाला। तेलंगाना सरकार ने इस दिन को महिला शिक्षिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
श्रीमती सावित्रीबाई फुले की जीवनी
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। उनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 1841 में महात्मा ज्योतिराव फुले से हुआ। सावित्रीबाई फुले ने भारत में शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में नए अध्याय लिखे। वे देश के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं।
महात्मा ज्योतिराव फुले, जिन्हें बाद में ज्योतिबा फुले के नाम से जाना गया, सावित्रीबाई के मार्गदर्शक, गुरु और उनके सामाजिक सुधार कार्यों में सहयोगी थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को सामाजिक सुधार के कार्यों के लिए समर्पित कर दिया। उनका उद्देश्य विधवा विवाह को बढ़ावा देना, छुआछूत की कुरीति को समाप्त करना, महिलाओं की मुक्ति और दलित वर्ग की महिलाओं को शिक्षित बनाना था।
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इसके अलावा, सावित्रीबाई एक प्रसिद्ध कवयित्री भी थीं और उन्हें मराठी साहित्य में “आदिकवयित्री” के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताओं ने महिलाओं को सशक्त बनाने और सामाजिक जागरूकता फैलाने का काम किया। उनके जीवन और कार्य ने भारतीय समाज में एक स्थायी छाप छोड़ी।
तेलंगाना सरकार ने महिला शिक्षिका दिवस मनाने की पहल की
सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन को तेलंगाना में महिला शिक्षिका दिवस के रूप में मनाने का उद्देश्य महिला शिक्षकों की भूमिका को उजागर करना है। यह दिन:
• महिला शिक्षकों के योगदान को स्वीकार करता है।
• यह सुनिश्चित करता है कि लड़कियों को समान शैक्षणिक अवसर मिलें।
• महिला शिक्षकों को सशक्तिकरण और समानता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है।
सावित्रीबाई फुले के योगदान की याद दिलाते हुए यह दिन शिक्षा के माध्यम से समाज सुधार के उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है।
सावित्रीबाई फुले का योगदान
सावित्रीबाई फुले का जीवन समाज सुधार और महिला शिक्षा को समर्पित था। उनका योगदान कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रहा:
1. महिला शिक्षा की वकालत: सावित्रीबाई ने महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया, जब शिक्षा केवल पुरुषों तक सीमित थी। उनके प्रयासों से लड़कियों को पढ़ने का अधिकार मिला।
2. सामाजिक कुरीतियों का विरोध: उन्होंने जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, और विधवाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार का कड़ा विरोध किया।
3. साक्षरता का प्रसार: सावित्रीबाई ने दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों में साक्षरता फैलाने का काम किया, यह मानते हुए कि शिक्षा हर व्यक्ति का अधिकार है।
उनके इन कार्यों ने समाज में व्याप्त अन्याय और भेदभाव को चुनौती दी। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं।
सामाजिक सुधारों में भूमिका
सावित्रीबाई फुले ने सामाजिक सुधारों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा और जातिवाद के खिलाफ महत्पूर्ण कार्य किए। विधवा पुनर्विवाह और महिलाओं के लिए आश्रम स्थापित किए।छुआ छूत के विरोध में अपने घर का कुआँ सभी के लिए खोला और समानता का संदेश दिया।
संत रामपाल जी महाराज के विचारों से मेल
सावित्रीबाई फुले के कार्य और उनके विचार संत रामपाल जी महाराज की शिक्षाओं से मेल खाते हैं। संत रामपाल जी समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने, समानता स्थापित करने, और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से सशक्तिकरण पर जोर देते हैं। संत रामपाल जी महाराज शिक्षा और सतभक्ति को मानवता के उत्थान का आधार मानते हैं। उनके अनुसार, सच्ची शिक्षा न केवल भौतिक ज्ञान देती है, बल्कि मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान की ओर अग्रसर करने की प्रेरणा देती है।
उन्होंने मानवता के उत्थान के लिए धार्मिक कुरीतियों और अंधविश्वासों को समाप्त किया है, जिससे जातिवाद, भेदभाव और अज्ञानता को समाप्त कर मोक्ष के मार्ग पर प्रशस्त किया जा सकता है। उनके प्रयास आज लाखों लोगों को आत्मज्ञान और सच्ची भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहे हैं।
निष्कर्ष
सावित्रीबाई फुले का संदेश है कि शिक्षा और सशक्तिकरण के माध्यम से एक बेहतर और समान समाज की स्थापना की जा सकती है। उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे।
इस दिवस पर संत रामपाल जी महाराज के उपदेश और शिक्षा को समझने के लिए Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड करें और वेबसाईट www.jagatgururampalji.org पर visit करें।