भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकिंग से जुड़ी एक अहम पहल की है, जिससे अब 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे अपने बैंक खाते खुद संचालित कर सकेंगे। यह नियम 1 जुलाई से लागू होगा। इस फैसले के तहत बच्चे बिना किसी अभिभावक की मदद के अपने बचत या सावधि खाते का उपयोग कर सकेंगे, जिसमें पैसों का लेन-देन, ATM कार्ड और कुछ डिजिटल सुविधाएं शामिल हैं।
फैसले के पीछे RBI की सोच
इस निर्णय का मूल उद्देश्य यह है कि बच्चों को छोटी उम्र से ही पैसों की अहमियत और वित्तीय जिम्मेदारी से परिचित कराना आवश्यक है। RBI का मानना है कि अगर बच्चे कम उम्र में ही बैंकिंग की बुनियादी समझ हासिल कर लें, तो वे भविष्य में बेहतर आर्थिक फैसले लेने में सक्षम होंगे। इस कदम के द्वारा, माता पिता के मार्गदर्शन में बच्चों की वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा मिलेगा।
देश में डिजिटल लेन-देन तेज़ी से बढ़ रहा है और ऐसे में यह ज़रूरी हो गया है कि नई पीढ़ी भी इस बदलाव के साथ कदम से कदम मिला सकें।
बच्चों को कौन-कौन सी सुविधाएं मिलेंगी?
नई व्यवस्था के अनुसार, बैंक अब 10 साल या उससे ऊपर के बच्चों को निम्नलिखित बैंकिंग सेवाएं दे सकेंगे:
•बचत या सावधि खाता खोलने की अनुमति
•ATM/डेबिट कार्ड का उपयोग
•सीमित इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग
•खाते में पैसा जमा और निकालने की सुविधा
•सीमित चेक बुक सुविधा (बैंक की नीति पर निर्भर)
हालांकि, सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ट्रांजैक्शन की एक तय सीमा होगी और कुछ मामलों में बैंक अभिभावकों की अनुमति मांग सकते हैं। बैंक अपनी रिस्क मैनेजमेंट पॉलिसी के आधार पर नाबालिगों के अकाउंट को अतिरिक्त बैंकिंग सुविधा भी दे सकते हैं।
क्या इससे खतरे बढ़ सकते हैं?
कम उम्र के बच्चों को बैंकिंग की आज़ादी देने पर साइबर फ्रॉड या वित्तीय नुकसान की आशंका स्वाभाविक रूप से उठती है। लेकिन RBI ने बैंकों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे सुरक्षा के हर पहलू को गंभीरता से लें।
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बैंक बच्चों के खातों पर OTP आधारित वेरिफिकेशन, लिमिटेड ट्रांजैक्शन, और पैरेंटल अलर्ट जैसे फीचर्स लागू कर सकते हैं ताकि कोई अनचाही घटना न हो।
अभिभावकों और स्कूलों की भूमिका
बच्चों को पैसे की समझ केवल बैंक ही नहीं दे सकता। इसमें माता-पिता और स्कूलों की भूमिका सबसे अहम होगी। बच्चों को समझाना होगा कि बैंक खाता एक ज़िम्मेदारी है, न कि सिर्फ पैसे रखने का ज़रिया।
उन्हें यह भी सिखाना होगा कि कैसे सुरक्षित तरीके से ऑनलाइन लेन-देन किया जाता है और कैसे बचत व खर्च के बीच संतुलन बनाया जाता है।
बैंकिंग सिस्टम में बदलाव की ज़रूरत
इस नए नियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए बैंकों को अपने सिस्टम में कुछ बदलाव करने होंगे। जैसे कि बच्चों के लिए सरल और सुरक्षित बैंकिंग ऐप, पैरेंटल कंट्रोल फीचर्स और बच्चों की भाषा में बैंकिंग जानकारी उपलब्ध कराना।
इसके अलावा, कुछ बैंक पहले से ही ‘माइनर अकाउंट’ सुविधा दे रहे थे, लेकिन वो अभिभावकों की निगरानी में ही ऑपरेट होती थी। अब सिस्टम को बच्चों के हाथों में देना एक तकनीकी चुनौती भी है।
इसका समाज पर प्रभाव
यह बदलाव न सिर्फ बच्चों को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि उन्हें कम उम्र से ही वित्तीय अनुशासन सिखाएगा। इससे भविष्य में युवाओं में आर्थिक समझ और ज़िम्मेदारी दोनों में इज़ाफ़ा हो सकता है। साथ ही, यह कदम डिजिटल इंडिया अभियान और वित्तीय समावेशन को भी मज़बूती देगा।
RBI का यह फैसला बच्चों को बैंकिंग से जोड़ने और उन्हें आर्थिक रूप से जागरूक बनाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। यदि इसे सावधानीपूर्वक लागू किया जाए, तो यह नई पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। लेकिन इसके साथ-साथ सुरक्षा, मार्गदर्शन और सीमाओं का ध्यान रखना भी उतना ही ज़रूरी है।
“जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है, केवल माया एकत्रित करना नहीं”
मनुष्य अपना समुचित जीवन, माया (धन) एकत्रित करने में नाश कर देता है। अथवा मानव जन्म के मूल उद्देश्य को जान ही नहीं पाता। मनुष्य समझता है कि माया से वह संसार के सभी सुखों को प्राप्त कर लेगा, अर्थात माया को अपने आधीन कर लेगा, तो उसे सब मिल जाएगा। इस विषय में कबीर जी कहते हैं;
“यह माया है राम की, अपनी कहे गँवार,
जम्पुर धक्के खावेगा, नहीं बहे बिचार।”
अर्थात यह माया भगवान की है, इसे अपना समझना मूर्खता है। जो इसे अपनी मान बैठता है, वह मृत्यु के बाद यमलोक में पीड़ा झेलता है, क्योंकि उसने जीवन का असली उद्देश्य नहीं समझा।
कबीर साहेब जी कहते हैं-
“काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होए,
गुरु चरणों में ध्यान रखो, इन दोनों को खोय।”
अर्थात यह शरीर भी वास्तव में हमारा नहीं है, तो धन कैसे हमारा हो सकता है? जब शरीर नश्वर है, तो माया (धन, भौतिक सुख) भी नाशवान है। इसलिए धन और देह में लिप्त रहने के बजाय, सच्चे गुरु के चरणों में ध्यान लगाना ही सच्ची बुद्धिमानी है।
“गुरु चरणों में ध्यान रखो” यह कोई साधारण कथन नहीं है। यहां गुरु का अर्थ है सच्चा पूर्ण संत और चरणों में ध्यान का अर्थ है उनकी आज्ञा अनुसार भक्ति करना। उस पूर्ण संत के द्वारा बताई गई भक्ति विधि से ही मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
संत रामपाल जी महाराज स्वयं उस पूर्ण सतगुरु के रूप में प्रकट हुए हैं, जो परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए गए सच्चे भक्ति मार्ग को चला रहे हैं। उनकी शरण में आकर और उनके बताए अनुसार परमेश्वर कबीर जी की सत्य भक्ति करने से ही मोक्ष संभव है।
FAQs RBI का बड़ा फैसला: अब 10 साल के बच्चे खुद चला सकेंगे अपना बैंक खाता
1: RBI के नए नियम के अनुसार, कितनी उम्र के बच्चे अब खुद अपना बैंक खाता चला सकेंगे?
उत्तर: 10 साल या उससे अधिक उम्र के बच्चे।
2: RBI का यह निर्णय लेने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: बच्चों को छोटी उम्र से ही पैसों की अहमियत और वित्तीय जिम्मेदारी सिखाना।
3: नए नियम के तहत बच्चों को कौन-कौन सी बैंकिंग सुविधाएं मिलेंगी?
उत्तर: बचत/सावधि खाता, ATM/डेबिट कार्ड, सीमित मोबाइल/इंटरनेट बैंकिंग, पैसा जमा/निकासी और सीमित चेकबुक।
4: परमेश्वर के विधान के अनुसार माया को अपना मानने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद क्या भुगतता है?
उत्तर: वह यमलोक में पीड़ा झेलता है क्योंकि उसने जीवन का सही उद्देश्य नहीं समझा।
5: ‘गुरु चरणों में ध्यान रखो’ का क्या अर्थ है, और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: ‘गुरु चरणों में ध्यान रखो’ का अर्थ है पूर्ण संत की शरण लेकर उनकी आज्ञा अनुसार परमेश्वर की भक्ति करना। इसका महत्व यह है कि केवल सच्चे गुरु के मार्गदर्शन से ही जीव को वास्तविक ज्ञान, भक्ति विधि और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। वह पूर्ण संत संत रामपाल जी महाराज हैं।