पशु बलि कोई भक्ति नहीं है, यह लोक वेद के आधार पर किया जा रहा मनमानी पूजा अर्थात गलत आचरण जो हमें पाप का भागीदार बनाता है। बरसों से चली आ रही यह एक परंपरा ने आज बहुत बड़ा फंदा रख दिया है जिस इंसान को निकलना मुश्किल हो रहा है परंतु इससे निकलने का आसान तरीका एक सच्चे संत के माध्यम से मिल सकता है जो हमें शास्त्रों के अनुकूल साधना करवाए जिससे हमारे जन्मो-जन्म के पाप कर्म नष्ट हो सके।
आज लोग पशु बलि को भगवान को खुश करने का तरीका मानते हैं और धार्मिक क्रिया मानते हैं, वह यह सोचते हैं कि हम पशु बलि देंगे तो भगवान हम पर खुश होंगे। लेकिन सोचने की बात यह है,कोई माता-पिता अपने ही बच्चे को मारने का आदेश दे सकता है, या खाकर कैसे खुश हो सकता है?
पशु बलि एक अधार्मिक क्रिया है, आज पाखंड का रूप ले चुकी है कुरीति बन चुकी है। यह कोई भक्ति नहीं है वास्तव में यह एक अंध-श्रद्धा का प्रतीक है। हमारे पवित्र सब ग्रंथ श्रीमद् भागवत गीता जी, चार वेद, कुरान शरीफ, बाइबल तथा गुरु ग्रंथ साहिब आज धार्मिक किताब में कहीं भी पशु बलि का उल्लेख नहीं है बल्कि मना कर रखा है। इसमें बुरे कर्मों की कुर्बानी का उल्लेख है। मां की निर्दोष पशु की कुर्बानी। पशु बलि करना ईश्वर का अपमान है क्योंकि ईश्वर के विधान के विरोध है।
क्या वास्तव में धर्म पशु बलि की अनुमति देता है?
कोई धर्म पशु बलि की अनुमति नहीं दे सकता अगर कोई धर्म पशु बलि की अनुमति देता है तो वह धर्म कहानी योग्य नहीं हो सकता।वह किसी शैतान का चलाया हुआ मार्ग हो सकता है वह धर्म के नाम पर कलंक होता है। संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग प्रवचन में बताते हैं की सच्चा धर्म वह है प्रेम, करुणा, दया, क्षमा, विवेक, विनम्रताका, भाव-भक्ति और अहिंसा का पाठ पढ़ाए।
अगर प्रमाण की बात की जाए तो गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है की जो व्यक्ति शास्त्र विरुद्ध साधना करता है इसको ना तो सुख प्राप्त होता है, ना सिद्धि प्राप्त होती है और ना ही मोक्ष।
- यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 1
- गुरु ग्रंथ साहिब अंक 1350
- कुरान शरीफ सूरा अनआम 6:121:
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पशु हिंसा का परिणाम
संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग प्रवचनों में बताते हैं कि अगर किसी राजा के बड़े बेटे का या छोटे बेटे का कत्ल किया जाए तो वह राजा खुश नहीं हो सकता। राजा का विधान है उसके अनुसार उसे सजा मिलती है इसी प्रकार परमात्मा का विधान है की जो उसके बच्चों अर्थात पशु पक्षी जीव जंतु मनुष्य आदि को मारता है उसकी हत्या करता है वह पाप का भागी बनता है।उसे परमात्मा स्वयं दंड देते हैं वह चाहे धार्मिक रूप से किया जाए या अन्य तरीके से यह एक पाखंड क्रिया है।
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जीव हत्या केवल शारीरिक रूप से ही हानि नहीं करती बल्कि यह एक आत्मिक चोट भी पहुंचाती है। हत्या के बाद में पाप कर्मों से लद जाता है। पशु हिंसा करने से उसका बदला अगले जन्म में चुकाना पड़ता है जैसे- “जैसी करनी वैसी भरनी”
जीव हिंसा करने वाला व्यक्ति बंधन में फँसता है और मोक्ष से वंचित रह जाता है।मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति होता है।
परमात्मा की सच्ची पूजा क्या है?
परमात्मा की सच्ची पूजा वही है जिसमें शास्त्रों के अनुकूल किया जाए, अहिंसा को अपनाया गया हो, मोक्ष प्राप्ति का उद्देश्य हो, जीवन को सरल और सफल और पवित्र बनाएं। सच्ची भक्ति में यह शक्ति होती है कि वह जन्म और मरण रूपी काल के किले को तोड़ देती है और मोक्ष प्रदान करवाती है। परमात्मा की सच्ची भक्ति को पहचानने के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिए गए कुछ प्रमाण इस तरह है-
1.श्रीमद्भगवद्गीता से प्रमाण: अध्याय 18, श्लोक 62
2.यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10-11
3.गुरु ग्रंथ साहिब (राग सिरी, पृष्ठ 24)
4.कुरान शरीफ (सूरा फुरकान 25:52-59)
गीता अध्याय 9 श्लोक 26 में भगवान स्वयं कहते हैं कि “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति”—यानी मुझे पत्र, पुष्प, फल और जल अर्पित करो, हिंसा नहीं।
संत रामपाल जी महाराज के द्वारा दी जा रही भक्ति विधि
1. सतनाम और सारनाम की निःशुल्क दीक्षा
2. नियम युक्त जीवन शैली जिसमें जिसमें मांसाहार मदिरा और व्यभिचार का संपूर्ण परहेज
3. तीन टाइम की आरती
4. पांच यज्ञ
तत्वज्ञान के आधार पर पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही है। उनकी भक्ति शास्त्रों के अनुकूल की जाती है जो की पूर्ण संत द्वारा बताई जाती है और उसी से मोक्ष होता है। आज पूरे विश्व में पुर्ण और अधिकारी गुरु संत रामपाल जी महाराज ही है।