बीजिंग/ढाका: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी मुलाकात ने तीस्ता नदी परियोजना को लेकर नई हलचल पैदा कर दी है। इस दौरे में जल प्रबंधन सहित कई मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना जताई जा रही है। यदि चीन इस परियोजना में सक्रिय भूमिका निभाता है, तो इससे भारत के हितों पर असर पड़ सकता है, क्योंकि शेख हसीना की पूर्ववर्ती सरकार ने भारत को इस परियोजना के लिए प्राथमिकता देने की बात कही थी।
मुख्य बिंदु: मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा
- तीस्ता परियोजना में चीन की बढ़ती भूमिका
- तीस्ता परियोजना पर भारत-चीन की बढ़ती दावेदारी
- बांग्लादेश-चीन वार्ता: नई आर्थिक और कूटनीतिक दिशा
- तीस्ता परियोजना पर भारत के सामने कूटनीतिक चुनौती
- तीस्ता परियोजना में चीन की एंट्री का भारत पर असर
चीन की बढ़ती दिलचस्पी और बांग्लादेश की बदली प्राथमिकता
गौरतलब है कि चीन लंबे समय से तीस्ता नदी परियोजना में रुचि दिखा रहा है। इससे पहले, जुलाई 2024 में शेख हसीना सरकार ने भारत को प्राथमिकता देते हुए इस परियोजना को नई दिशा देने की घोषणा की थी। हसीना ने भारत के साथ इसे लागू करने की अपनी सरकार की मंशा जताई थी और कहा था कि चूंकि तीस्ता नदी का पानी भारत से आता है, इसलिए भारत को ही इस परियोजना को पूरा करना चाहिए।
हालांकि, बांग्लादेश में नई सरकार के गठन के बाद प्राथमिकताओं में बदलाव देखने को मिल रहा है। मौजूदा प्रशासन ने चीन के साथ इस परियोजना पर चर्चा शुरू करने के संकेत दिए हैं। इस घटनाक्रम से भारत की चिंता बढ़ सकती है, क्योंकि यह परियोजना रणनीतिक और जल संसाधन प्रबंधन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।
तीस्ता नदी परियोजना: भारत और चीन की प्रतिस्पर्धा
तीस्ता नदी बांग्लादेश और भारत के लिए एक अहम जल संसाधन है। इस नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित कर कृषि और जल आपूर्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से बांग्लादेश इस परियोजना को लागू करना चाहता है। चीन ने पहले ही इस परियोजना पर एक सर्वेक्षण किया था और 2020 में एक मास्टर प्लान तैयार किया था, जिसे 2024 तक अंतिम रूप दिया जाना था।
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शेख हसीना सरकार ने 2024 में भारत के साथ इस परियोजना को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन अब चीन के साथ संभावित समझौते की खबरें भारत के लिए चिंता का विषय बन गई हैं। बांग्लादेश के विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन ने भी संकेत दिया था कि जल प्रबंधन यात्रा के एजेंडे में शामिल है और तीस्ता नदी परियोजना पर चर्चा होने की संभावना है।
यूनुस की चीन यात्रा: आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण
मोहम्मद यूनुस चार दिवसीय चीन यात्रा के तहत पहले हैनान पहुंचे, जहां उन्होंने बोआओ फोरम फॉर एशिया के वार्षिक सम्मेलन में भाग लिया। इसके बाद वे बीजिंग पहुंचे, जहां चीनी उप विदेश मंत्री सन वेइदोंग ने उनका स्वागत किया। इस यात्रा के दौरान यूनुस ने चीन से चीनी ऋणों की ब्याज दरों को कम करने और चीन से वित्तपोषित परियोजनाओं पर प्रतिबद्धता शुल्क माफ करने का अनुरोध किया।
बांग्लादेश में नई सरकार बनने के बाद यह यात्रा बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। चीन-बांग्लादेश संबंधों में यह यात्रा एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकती है, खासकर तब जब बांग्लादेश अपनी आर्थिक और जल प्रबंधन रणनीतियों को पुनर्परिभाषित कर रहा है।
भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां
भारत और बांग्लादेश के बीच जल संसाधनों के प्रबंधन को लेकर सहयोग की पुरानी परंपरा रही है, लेकिन अगर तीस्ता नदी परियोजना में चीन सक्रिय रूप से शामिल होता है, तो यह भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। भारत पहले ही बांग्लादेश के साथ कई जल संसाधन समझौतों में शामिल रहा है और तीस्ता नदी परियोजना को लेकर बातचीत चल रही थी। लेकिन अगर बांग्लादेश चीन के साथ इस परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला करता है, तो भारत को नई रणनीति बनानी पड़ सकती है।
बांग्लादेश और चीन की इस वार्ता के क्या हैं मायने?
मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा और शी जिनपिंग के साथ संभावित वार्ता से संकेत मिलता है कि बांग्लादेश अपनी जल प्रबंधन रणनीति को लेकर नए विकल्प तलाश रहा है। यदि तीस्ता नदी परियोजना में चीन को शामिल किया जाता है, तो यह भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर डाल सकता है। अब यह देखना होगा कि भारत इस चुनौती का किस तरह सामना करता है और बांग्लादेश अपने जल संसाधनों के प्रबंधन को लेकर किन नीतियों को अपनाता है।
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