मोक्ष एक आध्यात्मिक स्थिति है जहां जीव आत्मा संसार के बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाता है। यह भारतीय दर्शन की चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) में सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण पुरुषार्थ माना गया है। मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाना और सच्चे आनंद की स्थिति को प्राप्त करना। इसे आत्मा की परम शांति और सत्य ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
भारतीय धार्मिक परंपराओं में मोक्ष प्राप्ति के विभिन्न मार्ग बताए गए हैं, जैसे कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और राज योग। इन मार्गों के माध्यम से साधक अपने जीवन में पुण्य कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास करता है।
आख़िर मोक्ष कैसे मिलेगा? कौन है मोक्ष देने का अधिकारी? कौन सी विधी है मोक्ष की ? जानेंगे सभी सवालों के जवाब इसी लेख में।
कहने मात्र से मोक्ष प्राप्त हो सकता है क्या?
मानव समाज इन्हीं कुटिलताओं में भ्रमित है कि स्नान करने से पाप कट जाएंगे, तीर्थ करने से मोक्ष हो जायेगा, काशी और प्रयागराज में प्राण त्यागने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। ये सारी बातें मृथ्या और आधारहीन हैं। आज समाज को जागरूक होकर अपने धर्म ग्रंथों के आधार पर साधना और भक्ति करनी चाहिए, ताकि परमात्मा से मिलने वाले लाभ प्राप्त हो सके और मोक्ष का वास्तविक मार्ग मिल सके। आगे जानेंगे मोक्ष के अधिकारी संत और वास्तविक विधी की जानकारी ।
संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान के अनुसार, पवित्र वेद और गीता जी में केवल सच्चे भक्ति मार्ग की चर्चा की गई है, जिसमें ईश्वर की सत्य उपासना द्वारा मोक्ष प्राप्त होता है। गीता अध्याय 16 के श्लोक 23-24 में लिखा है कि शास्त्र-विरुद्ध साधना करने वाले मनुष्य को न तो सुख, न सिद्धि, और न ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ में पवित्र स्नान करके पापों से मुक्ति का साधन मानना अज्ञानता है, क्योंकि इसका प्रमाण पवित्र वेद व गीता में नही मिलता अर्थात यह शास्त्र विरुद्ध क्रिया है जिसका कोई लाभ प्राप्त नही हो सकता।
शास्त्रों के अनुसार मोक्ष
शास्त्रों के अनुसार, मोक्ष केवल संतों और वेदों में दिए गए सत्य ज्ञान के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है। शास्त्रों में यह बताया गया है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु की शरण ग्रहण करना अनिवार्य है। वर्तमाम में सच्चे गुरु सिर्फ संत रामपाल जी महाराज जी है। संत रामपाल जी महाराज ने “जीवात्मा” और “परमात्मा” के बीच के संबंध को स्पष्ट किया है और बताया है कि जीवात्मा तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता जब तक वह सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान को ग्रहण नहीं करता।
गीता जी के अध्याय 17 के श्लोक 23 में ॐ तत् सत् मंत्र के जाप को मोक्ष का मंत्र बताया गया है और उसके लिए किसी तत्व दर्शी संत की खोज करने के निर्देश भी गीता जी में निर्देशित किए गए हैं (4:34) और तत्वदर्शी संत की पहचान भी पवित्र गीता जी अध्याय 15 श्लोक 1– 4 में बताया गया है।
गीता जी अध्याय 17 मंत्र 23
ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृतः, ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा ॥ २३ ॥
हे अर्जुन ! –
ॐ= ॐ,
तत्= तत्,
सत्= सत्-
इति= ऐसे (यह)
त्रिविधः =तीन प्रकारका
ब्रह्मणः={ सच्चिदानन्दघन ब्रह्मका
निर्देशः= नाम
स्मृतः= कहा है;
तेन= उसीसे पुरा { सृष्टिके आदिकालमें
ब्राह्मणाः= ब्राह्मण
च=और
वेदाः=वेद
च=तथा
यज्ञाः=यज्ञादि
विहिताः=रचे गये।
मोक्ष के लिए मुख्य सिद्धांत
- सत्य साधना: शास्त्रों के अनुसार, केवल वही साधना करना चाहिए जो वेदों और शास्त्रों के अनुसार सत्य हो।
- सतगुरु की आवश्यकता: शास्त्रों में यह प्रमाम मिलता है कि एक सच्चे सतगुरु के बिना मोक्ष संभव नहीं है। सतगुरु जीव को सही मार्ग दिखाते हैं और उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त कराते हैं।
- नाम दीक्षा: शास्त्रों के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति के लिए सतगुरु द्वारा सही मंत्र की दीक्षा लेना आवश्यक है।
- पवित्र ग्रंथों का पालन: सतगुरु वही है जो वेद, गीता और अन्य पवित्र ग्रंथों के आधार पर सही साधना करने पर जोर दे।
मोक्ष प्राप्ति की प्रक्रिया
- सच्चे ज्ञान की प्राप्ति: पहले चरण में व्यक्ति को सही और पूर्ण ज्ञान की आवश्यकता होती है।
- पवित्र जीवन जीना: सही साधना के साथ-साथ एक नैतिक और पवित्र जीवन मर्यादा में रहकर जीना आवश्यक है।
- सतभक्ति: भक्ति के बिना मोक्ष असंभव है।
संत रामपाल जी महाराज की शिक्षा का प्रभाव:
संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों का मानना है कि उनकी शिक्षाएं सरल, तार्किक और शास्त्र-सम्मत हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और पाखंडों को समाप्त करने का प्रयास किया है।
गीता के अध्याय 15 श्लोक 1 में सतगुरू की पहचान
गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत अर्थात् सतगुरू के बारे में उल्लेख है।
ऊर्ध्वमूलम्, अधः शाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित् ॥ १ ॥
अनुवाद- (ऊध्र्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्षको (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।
तत्वदर्शी संत वही होता है जो “ॐ तत् सत्” मंत्र की साधना शास्त्रोक्त विधी से करता हैं और कराता हैं। जो आज वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही के रूप में विद्यमान है।
निष्कर्ष
मोक्ष का अर्थ शाश्वत परम धाम की प्राप्ति है। यह जीवन के सही ज्ञान और आत्मबोध से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही सच्चे अधिकारी संत हैं, और सच्चे सतगुरु की शरण में जाकर ही उनके बताए गए सतभक्ति विधि से साधना करने से ही मोक्ष प्राप्ति संभव है। संत रामपाल जी महाराज मोक्ष की गारंटी देते है यदि साधक मर्यादा में रहकर भक्ति करे। आप भी संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करके सत्य साधना अपना सकते हैं और अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
आज विश्वभर में संत रामपाल जी महाराज के लाखों-करोड़ों अनुयायी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ सहज ही प्राप्त कर रहे हैं और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हैं। उनके तत्वज्ञान को समझने हेतु Sant Rampal Ji Maharaj ऐप डाउनलोड करें या उनकी वेबसाइट www.jagatgururampalji.org पर विजिट करें।