इज़राइली रक्षा मंत्री इज़राइल काट्ज ने एक बयान में कहा कि युद्ध के दौरान उनका लक्ष्य ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को निशाना बनाना था। यदि खामेनेई उनकी पकड़ में आ जाते, तो उन्हें समाप्त कर दिया जाता, लेकिन ऐसा करने का अवसर नहीं मिल सका। जब एक पत्रकार ने उनसे साक्षात्कार के दौरान पूछा कि क्या इस कदम के लिए अमेरिका की सहमति ली गई थी, तो काट्ज ने स्पष्ट किया कि ऐसे फैसलों के लिए उन्हें किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
ईरान-इज़राइल युद्ध: मुख्य बिंदु
- बंकर में छिपे खामेनेई वहीं से जारी कर रहे थे सेना को निर्देश।
- अमेरिका का बड़ा एक्शन ईरान के परमाणु ठिकानों पर चला निर्णायक हमला।
- परमाणु ठिकानों की तबाही के बाद ईरान NPT से हटने को तैयार।
- कतर ने शांति स्थापना में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, युद्धविराम का मार्ग हुआ प्रशस्त ।
बंकर से जारी हो रहे थे सैन्य निर्देश
सूत्रों के अनुसार, अयातुल्ला खामेनेई ने 13 जून को अपना ठिकाना बदला था। उसी दिन वे तेहरान से लगभग 24 किलोमीटर दूर नार्मक इलाके में पहुंच गए, जहां वे अपने परिवार के साथ एक बंकर में शरण लिए हुए थे। इसके बाद कहा जाता है कि उन्होंने नार्मक छोड़कर लगभग 316 किलोमीटर दूर लाहिजन की ओर रुख किया, जो कि अजोव सागर के पास ईरान की सीमांत बस्ती मानी जाती है। यहां भी खामेनेई बंकर में रहकर सेना को निर्देश जारी कर रहे थे।
कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि खामेनेई, लाहिजन से अजोव सागर के समुद्री मार्ग के ज़रिए लगभग 890 किलोमीटर दूर रूस के दागेस्तान शहर पहुंच गए। यह भी कहा जा रहा है कि इस यात्रा में उनका पूरा परिवार भी साथ था। वर्तमान में वे वहीं से सैन्य अधिकारियों और अन्य प्रशासनिक प्रतिनिधियों से संपर्क में बने हुए हैं।
इस बीच, खामेनेई के विरोधियों ने इस स्थिति को एक अवसर के रूप में लिया है। सत्ता परिवर्तन का एजेंडा ज़ोर पकड़ने लगा है और समाज के भीतर विभिन्न माध्यमों से संदेश फैलाए जा रहे हैं। विरोधियों की कोशिश है कि खामेनेई को देश की वर्तमान स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए और उन्हें जन आक्रोश का मुख्य पात्र बनाया जाए।
ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका का निर्णायक वार
अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने एक बड़ा दावा करते हुए कहा कि 22 जून को अमेरिकी सेना द्वारा किए गए हमले में ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों को गंभीर रूप से नष्ट कर दिया गया। हेगसेथ के अनुसार, यह कार्रवाई रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत सफल रही और इसे एक ऐतिहासिक सैन्य उपलब्धि माना जा रहा है। उन्होंने उन मीडिया रिपोर्टों को सिरे से खारिज किया, जिनमें यह कहा गया था कि ईरानी न्यूक्लियर ठिकानों को केवल सीमित नुकसान हुआ है। पत्रकारों की आलोचना करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि वास्तविकता इससे कहीं अधिक गंभीर है और ईरान की सैन्य क्षमताओं को गहरा आघात पहुंचाया गया है।
परमाणु ठिकानों को भारी क्षति, ईरान NPT से हटने को तैयार
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची ने स्वीकार किया है कि इज़राइल के साथ 12 दिनों तक चले संघर्ष में देश की परमाणु सुविधाओं को गंभीर क्षति पहुँची है। उन्होंने बताया कि सरकार इस नुकसान की भरपाई की दिशा में प्रयास कर रही है और इसका मुआवजा कूटनीतिक एजेंडे में शामिल कर लिया गया है।
अराकची ने यह भी बताया कि ईरान अब तक परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty – NPT) के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग करता रहा है। ईरान ने वर्ष 1970 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन अब परिस्थितियों को देखते हुए इसे छोड़ने का निर्णय लिया गया है।
इस निर्णय पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ईरान का NPT से बाहर निकलना वैश्विक परमाणु संतुलन के लिए एक नकारात्मक संकेत होगा। साथ ही उन्होंने यह भी माना कि ईरानी परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमले बेहद प्रभावशाली और निर्णायक सिद्ध हुए हैं।
कतर ने निभाई सुलह की भूमिका
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान और इज़राइल के बीच जारी युद्ध को रोकने में कतर ने अहम मध्यस्थ की भूमिका निभाई। जानकारी के अनुसार, ईरान ने अमेरिका द्वारा दिए गए युद्धविराम प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। यह पहल उस वक्त सामने आई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कतर के अमीर से अपील की कि वह ईरान के साथ संघर्षविराम समझौता कराने में मदद करें।
यह अनुरोध उस समय किया गया जब कतर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर ईरान की ओर से जवाबी हमले हुए थे। इसके बाद कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अल थानी ने ईरान से संपर्क साधा और सहमति प्राप्त होने के पश्चात ट्रंप ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस युद्धविराम की घोषणा कर दी। इस पूरे संघर्ष में अब तक 1000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 6000 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।