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Home » दिल्ली की हवा में घुला पारा: स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा

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दिल्ली की हवा में घुला पारा: स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा

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Last updated: September 14, 2025 6:27 pm
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दिल्ली की हवा में घुला पारा: स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा
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हाल ही में, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि दिल्ली की हवा में पारा (Mercury) की मात्रा अत्यधिक स्तर पर पहुंच चुकी है। यह अध्ययन 2018 से 2024 तक के डेटा पर आधारित है, जो कि ‘एयर क्वालिटी, एटमॉस्फियर एंड हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

Contents
  • दिल्ली की हवा में घुला पारा से जुड़े मुख्य बिंदु
  • दिल्ली की हवा में पारे का स्तर
  • पारा उत्सर्जन के स्रोत
  • हवा में मौजूद पारे का स्वास्थ्य पर प्रभाव
  • पारा उत्सर्जन की इस गंभीर समस्या को रोकने के उपाय 
  • FAQs पारे का उत्सर्जन पर्यावरण और मानव दोनों के लिए हानिकारक 

दिल्ली की हवा में घुला पारा से जुड़े मुख्य बिंदु

  • WHO के अनुसार पारा स्वास्थ्य के लिए 10 खतरनाक रसायनों में से एक है।
  • दिल्ली की हवा में पारा का स्तर 6.9 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया है।
  • अहमदाबाद में 2.1 और पुणे में घटकर 1.5 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पाया गया। 
  • अध्ययन के अनुसार, सर्दियों और रात के समय पारा का स्तर बढ़ जाता है, जो दिमाग, किडनी, फेफड़े आदि अन्य अंगों पर गंभीर असर डाल सकता है।

दिल्ली की हवा में पारे का स्तर

IITM के अध्ययन अनुसार, दिल्ली की हवा में औसतन 6.9 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पारा (Mercury) पाया गया है, जो उत्तरी गोलार्ध के औसत 1.7 नैनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से लगभग चार गुना ज्यादा है।

पारा का यह स्तर दिल्ली ही नहीं अहमदाबाद और पुणे जैसे भारतीय शहरों की हवाओं में भी मौजूद है। अध्याय में वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि हाल के वर्षों में धीरे-धीरे इसमें कमी का संकेत भी मिला है। 

पारा उत्सर्जन के स्रोत

दिल्ली में पारा (Mercury) उत्सर्जन का 72% से 92% हिस्सा मानवीय गतिविधियों से है। इसमें जीवाश्म ईंधन का दहन, औद्योगिक गतिविधियाँ और वाहन उत्सर्जन आदि शामिल हैं। प्राकृतिक स्रोतों में पारा उत्सर्जन का हिस्सा 8% से 28% के बीच है।

हवा में मौजूद पारे का स्वास्थ्य पर प्रभाव

WHO के अनुसार, पारा एक विषैला धातु है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। यह तंत्रिका तंत्र, गुर्दे और श्वसन प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। खासकर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए पारा बेहद खतरनाक है। पारा जैसे सूक्ष्म कणों के ज्यादा संपर्क में रहने से ब्रोंकाइटिस, निमोनिया और कैंसर जैसे मामलों में वृद्धि दर्ज की जा सकती है। 

पारा उत्सर्जन की इस गंभीर समस्या को रोकने के उपाय 

  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग: कोयला, पेट्रोल-डीजल आधारित ऊर्जा उत्पादन के बजाय सोलर, पवन और हाइड्रो पावर का अधिकतम उपयोग को बढ़ावा देना।
  • वाहन उत्सर्जन नियंत्रण: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और पुराने, प्रदूषणकारी वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाना।
  • औद्योगिक मानकों का कड़ाई से पालन: उद्योगों में पारा उत्सर्जन पर विशेष निगरानी और नियम लागू करना।
  • वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सरकारी नीतियां और कड़े कानून लागू करना।
  • जन जागरूकता अभियान: लोगों को पारा प्रदूषण के खतरे और बचाव के उपायों के प्रति संवेदनशील बनाना।

FAQs पारे का उत्सर्जन पर्यावरण और मानव दोनों के लिए हानिकारक 

1. WHO द्वारा पारा को सांस के माध्यम से अंदर लेने की कोई सीमा निर्धारित है?

नहीं, लेकिन इन सूक्ष्म पदार्थों के लगातार संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं देखी जा सकती है। 

2. गर्मियों में सूक्ष्म कणों की बढ़ोतरी कितनी दर्ज की गई है?

ठंड के महीनों में सूक्ष्म कणों का दैनिक संपर्क औसत 10.7 कण, वहीं गर्मियों में बढ़कर 21.1 कण हो जाता है, यानी 97 प्रतिशत की बढ़ोतरी।

3. पारा उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं?

जीवाश्म ईंधन का दहन, औद्योगिक गतिविधियाँ और वाहन उत्सर्जन पारा उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं।

4. पारे (पारा) का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

यह तंत्रिका तंत्र विकार, गुर्दे की बीमारी, मानसिक विकार और श्वसन समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।

5. दिल्ली की हवा में पारा का स्तर बढ़ने का मुख्य कारण क्या है? 

अध्ययन के अनुसार, मुख्य कारण मानवीय गतिविधियां जैसे कोयला जलाना, ट्रैफिक और उद्योग आदि शामिल हैं।

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