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Home » जातीय जनगणना और पहलगाम हमला: एक सामाजिक सुधार और सुरक्षा चिंता की गहरी पड़ताल

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जातीय जनगणना और पहलगाम हमला: एक सामाजिक सुधार और सुरक्षा चिंता की गहरी पड़ताल

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Last updated: May 3, 2025 2:53 pm
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जातीय जनगणना और पहलगाम हमला: एक सामाजिक सुधार और सुरक्षा चिंता की गहरी पड़ताल
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देश में हाल ही में दो बड़े मुद्दों पर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई है— एक ओर केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना को मंजूरी देना, और दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला। इन दोनों घटनाओं पर समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद ने टिप्पणी करते हुए सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर ध्यान आकर्षित किया है।

Contents
जातीय जनगणना: सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम पहलक्यों जरूरी है जातिगत जनगणना?सरकार के फैसले का स्वागत, लेकिन पारदर्शिता की मांगसंसाधनों पर असमान नियंत्रण को लेकर चिंतापहलगाम आतंकी हमला: सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवालनिर्दोष पर्यटकों की हत्या और सुरक्षा की विफलताकाश्मीर में परिंदा भी पर नहीं मार सकता – अब यह कथन सवालों के घेरे मेंस्थानीय नागरिकों की बहादुरीपुलवामा की तरह पहलगाम भी रहस्य बने, यह देश के लिए चिंता की बातजातीय जनगणना कहीं ध्यान भटकाने का साधन तो नहीं?दोनों मुद्दों पर चाहिए जिम्मेदारी और पारदर्शिता

जातीय जनगणना: सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम पहल

केंद्र सरकार द्वारा जातिगत जनगणना को मंजूरी देने के निर्णय का स्वागत करते हुए सांसद ने कहा कि यह फैसला समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करेगा।

क्यों जरूरी है जातिगत जनगणना?

सांसद के अनुसार, आज भी कई सामाजिक वर्ग ऐसे हैं जो जनसंख्या में तो बहुसंख्यक हैं, लेकिन उनके पास संसाधनों और सरकारी योजनाओं तक समुचित पहुंच नहीं है। इस असमानता को दूर करने के लिए “जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी भागीदारी” का सिद्धांत अपनाना जरूरी है।

सरकार के फैसले का स्वागत, लेकिन पारदर्शिता की मांग

सपा सांसद ने इस फैसले को “ऐतिहासिक” बताते हुए केंद्र से आग्रह किया कि जातीय जनगणना निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से कराई जाए। उन्होंने कहा कि यदि यह प्रक्रिया ठीक से नहीं हुई तो इसका लाभ नहीं मिल पाएगा, और इसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।

संसाधनों पर असमान नियंत्रण को लेकर चिंता

उन्होंने यह भी कहा कि देश में कुछ वर्ग ऐसे हैं जो अपनी चतुराई से सारे संसाधनों पर नियंत्रण बनाए हुए हैं, जबकि दूसरे वर्ग हाशिए पर खड़े हैं। उन्होंने इसे सामाजिक संतुलन के लिए घातक बताया।

पहलगाम आतंकी हमला: सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल

जहां एक ओर सामाजिक न्याय की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर देश की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया।

निर्दोष पर्यटकों की हत्या और सुरक्षा की विफलता

इस हमले में आतंकवादियों ने बर्बरता की सारी सीमाएं पार करते हुए धर्म और नाम पूछकर निर्दोष पर्यटकों की हत्या की। यह हमला न केवल आतंकवाद की क्रूरता को दिखाता है, बल्कि देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की विफलता को भी उजागर करता है।

काश्मीर में परिंदा भी पर नहीं मार सकता – अब यह कथन सवालों के घेरे में

सांसद ने कहा कि सरकार बार-बार दावा करती रही है कि कश्मीर में अब स्थिति सामान्य है, लेकिन यह हमला दर्शाता है कि यह सिर्फ एक भ्रम है। हमले के समय वहां करीब 2000 पर्यटक मौजूद थे, लेकिन सुरक्षा बलों की मौजूदगी न के बराबर थी।

स्थानीय नागरिकों की बहादुरी

उन्होंने यह भी बताया कि एक स्थानीय नागरिक ने पर्यटकों को बचाने के लिए आतंकवादियों के सामने दीवार बनकर खड़ा हो गया और अपनी जान गंवा दी। यह घटना बताती है कि कश्मीरी आम नागरिक शांति चाहते हैं, लेकिन उन्हें सुरक्षा नहीं मिल रही।

पुलवामा की तरह पहलगाम भी रहस्य बने, यह देश के लिए चिंता की बात

सांसद ने पुलवामा की घटना का भी ज़िक्र किया और कहा कि आज तक उसका सच सामने नहीं आया है। अगर इसी तरह पहलगाम हमला भी केवल मीडिया रिपोर्ट तक सीमित रह जाएगा और इसकी गहराई से जांच नहीं होगी, तो यह भविष्य में और बड़ी घटनाओं का रास्ता खोल सकता है।

जातीय जनगणना कहीं ध्यान भटकाने का साधन तो नहीं?

सांसद ने यह भी सवाल उठाया कि कहीं जातीय जनगणना की घोषणा केवल पहलगाम हमले से ध्यान हटाने का प्रयासरत तो नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि यह फैसला सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए किया गया है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

दोनों मुद्दों पर चाहिए जिम्मेदारी और पारदर्शिता

एक ओर सरकार को चाहिए कि वह जातीय जनगणना को पूरी निष्पक्षता से करवाए, ताकि सामाजिक संतुलन कायम किया जा सके, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा एजेंसियों को अपनी रणनीति और कार्रवाई को लेकर आत्मनिरीक्षण करना होगा।

देश को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ घोषणाएं नहीं, बल्कि ईमानदार प्रयास, प्रभावी क्रियान्वयन और उत्तरदायित्व की आवश्यकता है।

यह सब देखने और समझने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आज समाज को न केवल न्यायिक और प्रशासनिक सुधारों की ज़रूरत है, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता की भी अत्यंत आवश्यकता है।

वर्तमान में आध्यात्म‌ के क्षेत्र में हरियाणा के संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान इस दिशा में प्रकाश की किरण बनकर उभरा है। वे शास्त्रों के प्रमाणों से यह सिद्ध करते हैं कि जब तक समाज धार्मिक पाखंडों, जात-पात और आडंबरों से मुक्त नहीं होगा, तब तक सच्चा सामाजिक सुधार संभव नहीं।

 जब तक हम शास्त्रों अनुसार भक्ति नहीं करेंगे, तब तक न तो समाज सुधरेगा और न ही देश प्रगति करेगा। उनके द्वारा बताया गया सतभक्ति मार्ग न केवल व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि पूरे समाज में समानता, शांति और सच्चे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।

समाज को चाहिए कि संत रामपाल जी महाराज के सत्य ज्ञान को समझे, अपनाए और एक समरस, भयमुक्त तथा न्यायपूर्ण भारत की ओर कदम बढ़ाए।

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