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Home » बिहार का मखाना: किसानों की मेहनत, कंपनियों का मुनाफा और MSP की ज़रूरत

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बिहार का मखाना: किसानों की मेहनत, कंपनियों का मुनाफा और MSP की ज़रूरत

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Last updated: September 14, 2025 5:51 pm
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बिहार का मखाना: किसानों की मेहनत, कंपनियों का मुनाफा और MSP की ज़रूरत
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बिहार का मखाना (Fox Nut) दुनिया भर में लोकप्रिय है और GI जीआई (Geographical Indication) टैग से सम्मानित भी, लेकिन मिथिला-कोसी के किसान अब भी औने-पौने दाम पर इसे बेचने को मजबूर हैं। किसान 150–160 रुपये किलो पर मखाना बेचते हैं, जबकि ब्रांडेड कंपनियाँ वही पैक कर 800–1000 रुपये किलो में बाजार में उतारती हैं। MSP, प्रोसेसिंग यूनिट और सीधे निर्यात के अभाव ने किसानों को बिचौलियों पर निर्भर बना दिया है। बिहार देश का 90% मखाना उत्पादन करता है, फिर भी असली मुनाफा कंपनियों को मिल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर MSP तय हो, गाँवों में प्रोसेसिंग यूनिट लगे और किसानों को ई-कॉमर्स व एक्सपोर्ट प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाए तो उनकी आय कई गुना बढ़ सकती है। किसानों की सबसे बड़ी मांग यही है कि GI टैग और उद्योग का लाभ उन्हें भी मिले, ताकि यह “सफेद सोना” सच में उनके जीवन को रोशन कर सके।

Contents
  • मखाना उद्योग की बढ़ती पहचान
  • किसानों की हालत: “तालाबों में मेहनत, जेब में खालीपन”
  • बिहार: मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक
  • कंपनियों और बिचौलियों का खेल
  • मखाना उद्योग की प्रमुख चुनौतियाँ
  • किसानों की चार बड़ी मांगें
  • विशेषज्ञों की राय
  • कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार
  • बिहार का “सफेद सोना” और किसानों की पीड़ा
  • FAQs: बिहार का मखाना उद्योग

मखाना उद्योग की बढ़ती पहचान

बिहार का मखाना (Fox Nut) अब सिर्फ़ घरेलू स्नैक नहीं रहा, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपनी खास पहचान बना चुका है। अमेरिका, जापान, कोरिया और यूरोप जैसे देशों में इसकी मांग तेज़ी से बढ़ रही है। हेल्थ फूड और “Luxury Superfood” के रूप में इसकी खपत हो रही है। यही वजह है कि बिहार का मखाना अब “लोकल से ग्लोबल” हो गया है।

लेकिन इस चमकदार सफर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। मिथिला और कोसी क्षेत्र के किसान, जो तालाबों और पोखरों में कठिन परिश्रम से मखाना उगाते हैं, उन्हें उनकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिल रहा।

किसानों की हालत: “तालाबों में मेहनत, जेब में खालीपन”

मखाना की खेती आसान नहीं है। यह खुले खेत में नहीं बल्कि पानी भरे तालाबों में उगता है। किसान को पानी में उतरकर बीज निकालने पड़ते हैं, फिर हाथों से सफाई, सुखाना और भुनाई करनी होती है। यह काम मेहनत और समय दोनों मांगता है।

इसके बावजूद किसानों को उनकी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिलता। जहाँ किसान 150–160 रुपये किलो पर मखाना बेचने को मजबूर हैं, वहीं यही मखाना प्रोसेस होकर 800–1000 रुपये किलो तक बिकता है।

बिहार: मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक

  • भारत के कुल मखाना उत्पादन का लगभग 85–90% हिस्सा बिहार से आता है।
  • मिथिला, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल, कटिहार, अररिया, पूर्णिया और सहरसा इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्र हैं।
  • हजारों परिवार मखाना की खेती और प्रोसेसिंग पर निर्भर हैं।
  • फिर भी यह विडंबना है कि जिस राज्य ने देश और दुनिया को मखाना दिया, वहीं के किसान सबसे कम लाभ में हैं।

कंपनियों और बिचौलियों का खेल

  • “खेती किसान की, मुनाफा कंपनियों का” – यह कहावत मखाना उद्योग पर बिल्कुल फिट बैठती है।
  • किसान से औने-पौने दाम पर मखाना खरीदने वाले व्यापारी और बिचौलिए इसे प्रोसेस कर महंगे दामों पर बेच देते हैं।
  • बड़ी ब्रांडेड कंपनियाँ पैकेजिंग करके घरेलू और विदेशी बाज़ार में उतार देती हैं।
  • GI टैग, जो 2022 में बिहार को मिला, किसानों के बजाय कंपनियों को फायदा पहुँचा रहा है।

मखाना उद्योग की प्रमुख चुनौतियाँ

  • MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य का अभाव – किसानों के पास न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं, इसलिए वे बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं।
  • प्रोसेसिंग यूनिट की कमी – ग्रामीण इलाकों में प्रोसेसिंग और पैकेजिंग सुविधाएँ नहीं होने से किसान कच्चा माल सस्ते में बेच देते हैं।
  • स्टोरेज की समस्या – कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस न होने से किसान उपज लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रख पाते।
  • बिचौलियों का दबदबा – किसान सीधे बाज़ार या निर्यात चैनल तक नहीं पहुँच पाते।

किसानों की चार बड़ी मांगें

मिथिला और कोसी क्षेत्र के किसानों ने सरकार से बार-बार अपनी समस्याएँ रखी हैं। उनकी प्रमुख माँगें हैं:

  • मखाना पर MSP तय किया जाए।
  • गाँवों में प्रोसेसिंग और पैकेजिंग यूनिट खोले जाएँ।
  • किसानों को सीधे ई-कॉमर्स और निर्यात प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाए।
  • GI टैग का लाभ किसानों तक पहुँचे, सिर्फ कंपनियों तक नहीं।

विशेषज्ञों की राय

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार के मखाना उद्योग को संगठित करने की ज़रूरत है। सरकार अगर किसानों को प्रोसेसिंग, स्टोरेज और निर्यात में मदद करे तो यह उद्योग अरबों का कारोबार कर सकता है और किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है।

कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार

  • बिहार सरकार को क्लस्टर-आधारित मखाना हब बनाने चाहिए।
  • सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मज़बूत किया जाए।
  • GI टैग का सीधा फायदा किसानों को मिले, इसके लिए पॉलिसी बनाई जाए।

बिहार का “सफेद सोना” और किसानों की पीड़ा

मखाना को बिहार का “White Gold” कहा जाता है। लेकिन इस सोने की चमक किसानों के जीवन में उजाला नहीं ला पाई। जहाँ कंपनियाँ करोड़ों का मुनाफा कमा रही हैं, वहीं असली उत्पादक किसान गरीबी और कर्ज में डूबे रहते हैं।

FAQs: बिहार का मखाना उद्योग

1. बिहार का मखाना इतना प्रसिद्ध क्यों है?

यह अपने स्वाद, पोषण और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इसे GI टैग भी मिला है।

2. किसानों को कम दाम क्यों मिल रहा है?

MSP तय न होने और बिचौलियों के दबदबे के कारण किसान औने-पौने दाम पर मखाना बेचने को मजबूर हैं।

3. भारत में सबसे अधिक मखाना कहाँ पैदा होता है?

भारत के कुल उत्पादन का लगभग 85–90% बिहार में होता है।

4. बिहार के प्रमुख मखाना उत्पादन क्षेत्र कौन से हैं?

दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सुपौल, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और सहरसा।

5. किसानों को असली लाभ कैसे मिल सकता है?

MSP तय करने, स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट बढ़ाने और सीधे निर्यात की सुविधा देने से।

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