9 फरवरी 2025 को भारत और दुनिया भर में महान समाजसेवी बाबा आमटे की पुण्यतिथि मनाई जाएगी। यह दिन उनके अमर योगदान, मानवतावादी दृष्टिकोण, और समाज के प्रति समर्पण को याद करने का अवसर है। बाबा आमटे का नाम भारतीय समाज सेवा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने कुष्ठ रोगियों, वंचितों, और प्रकृति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, और आज भी उनकी विरासत करोड़ों लोगों को प्रेरित करती है।
बाबा आमटे का जीवन परिचय
मुरलीधर देवीदास आमटे, जिन्हें प्यार से “बाबा आमटे” कहा जाता है, का जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ था। एक संपन्न परिवार में जन्मे बाबा ने कानून की पढ़ाई की, लेकिन उनका मन समाज की सेवा में लगा। 1940 के दशक में उनकी मुलाकात एक कुष्ठ रोगी से हुई, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने महसूस किया कि यह बीमारी नहीं, बल्कि समाज की उपेक्षा लोगों को मारती है। इसी सोच ने “आनंदवन” की नींव रखी—एक ऐसा आश्रम जहाँ कुष्ठ रोगियों को इलाज, सम्मान और स्वावलंबन का मौका मिला।
समाज के प्रति समर्पण
बाबा आमटे ने केवल चिकित्सा सहायता तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने आनंदवन को एक आदर्श समुदाय के रूप में विकसित किया, जहाँ रोगी खेती, हस्तशिल्प, और शिक्षा के जरिए आत्मनिर्भर बने। उनका नारा था—”श्रम एवं प्रेम”। उनका मानना था कि गरिमा और मेहनत ही इंसान को पुनर्जीवित कर सकते हैं। 1970 के दशक में उन्होंने “भारत जोड़ो आंदोलन” चलाया, जिसने देशभर में सामाजिक एकता का संदेश फैलाया। 1990 में नर्मदा बचाओ आंदोलन में उनकी भागीदारी ने पर्यावरण संरक्षण को नई दिशा दी।
पुरस्कार और सम्मान
बाबा आमटे को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1985), पद्म विभूषण (1986), और गांधी शांति पुरस्कार (1999) जैसे प्रतिष्ठित सम्मान मिले। लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार लोगों का प्यार और उनकी मुस्कान थी। उनका कहना था— मैं ऐसे भारत का सपना देखता हूँ, जहाँ हर व्यक्ति को गरिमा और अवसर मिले।
पुण्यतिथि का महत्व
2025 में उनकी 17वीं पुण्यतिथि पर देशभर में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित होंगे। आनंदवन, हेमलकसा, और सोमनाथ जैसे उनके संस्थानों में स्वच्छता अभियान, चिकित्सा शिविर, और सेमिनार होंगे। युवाओं को उनके सिद्धांतों -सादगी, न्याय, और सहानुभूति से जोड़ने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में विशेष सत्र आयोजित किए जाएँगे।
आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
बाबा आमटे की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता, पर्यावरण संकट, और सामाजिक विभाजन के इस दौर में उनका संदेश हमें एकजुट होकर काम करने की प्रेरणा देता है। उनके पुत्र डॉ. विकास आमटे और डॉ. प्रकाश आमटे आज भी आनंदवन और तेलंगाना के आदिवासी इलाकों में उनके मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।
बाबा आमटे सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार थे। वे वह विचार थे, जो कहता है कि सेवा और साहस से दुनिया बदली जा सकती है। 2025 की पुण्यतिथि पर हम सभी का दायित्व है कि हम उनके सपनों को साकार करने के लिए अपना योगदान दें। जैसे वे कहते थे—”जागो, जुटो, और जुटे रहो।”
इस दिन हर नागरिक को यह प्रण लेना चाहिए कि वह बाबा आमटे के मार्ग पर चलते हुए समाज के अंतिम व्यक्ति की सेवा करेगा। उनकी याद हमें यह एहसास दिलाती है कि सच्ची मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।
मानवता की सेवा: एक महत्वपूर्ण कार्य
मानव समाज में ऐसे महापुरुष बहुत ही कम देखने को मिलते हैं, जो समाज में रहते हुए उसके कल्याण के लिए कार्य करते हैं, लोगों को जागरूक करते हैं और उन्हें एक नई दिशा देने के लिए अपना योगदान देते हैं। पुराने पुण्य कर्मों के प्रभाव से इंसान में दूसरों के प्रति ऐसी भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। संतों के सत्संग से भी हमें समाज के प्रति प्रेम और दया की भावना विकसित करने की प्रेरणा मिलती है, जिससे समाज उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
सत्संग से हमें यह ज्ञात होता है कि समाज में रहते हुए सतभक्ति करना भी आवश्यक है, जिससे हमें सामाजिक लाभों के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। तत्पश्चात, सद्गुरु की शरण में रहने और उनके बताए हुए मार्ग पर चलने से मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। अधिक जानकारी के लिए विजिट करें हमारा यूट्यूब चैनल संत रामपाल जी महाराज।