शुक्रवार सुबह काबुल की फिज़ा गोलों और मिसाइलों की आवाज़ों से गूंज उठी। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में कई हवाई हमले किए, ठीक उसी वक्त जब तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी ऐतिहासिक यात्रा पर भारत पहुंचे। बताया जा रहा है कि ये हमले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ठिकानों पर केंद्रित थे। पाकिस्तान का दावा है कि अफगान सरकार इन उग्रवादियों को पनाह दे रही है। स्थानीय सूत्रों और तालिबान अधिकारियों के अनुसार, कम से कम 12 लोगों की मौत हुई है और कई घायल हैं।
हमलों से कुछ घंटे पहले ही पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने चेतावनी दी थी कि यदि तालिबान ने टीटीपी पर कार्रवाई नहीं की, तो “हम पूरी तरह युद्ध के लिए तैयार हैं।” इस बयान और हमलों के बीच का छोटा अंतराल यह संकेत देता है कि इस बार मामला गंभीर रूप से उबल चुका है।
निशाने पर कौन था: सटीक हमला या आक्रामकता?
काबुल के शाहिद अब्दुल हक चौक के पास तड़के तीन बजे कई विस्फोटों की गूंज सुनाई दी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में पाकिस्तानी वायुसेना के जेट विमानों को शहर के ऊपर उड़ते देखा गया। बताया जाता है कि इन हमलों का लक्ष्य टीटीपी प्रमुख नूर वली महसूद था, जिसने 2018 में संगठन की कमान संभाली थी और तब से पाकिस्तान के खिलाफ सीमा पार हमलों की अगुवाई कर रहा था। हालांकि उसकी मौत की पुष्टि किसी पक्ष ने नहीं की है।
तालिबान सरकार ने इसे “अफगान संप्रभुता का बर्बर उल्लंघन” बताया है और आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी विमानों ने पूर्वी पक्तिका प्रांत में एक भीड़भाड़ वाले बाज़ार को भी निशाना बनाया, जहां कई नागरिक मारे गए। तालिबान प्रवक्ता ने कंधार से बयान जारी कर कहा, “यह नापाक हमला बेनतीजा नहीं रहेगा। अफगान मिट्टी की रक्षा हर कीमत पर की जाएगी।”
राहत टीमें मलबे में शव और घायलों को खोजती रहीं। चश्मदीदों के अनुसार, कई महिलाएं और बच्चे उस समय बाज़ार में खरीदारी कर रहे थे।
यह पहली घटना नहीं है। दो दिन पहले, 8 अक्टूबर को, टीटीपी के उग्रवादियों ने उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में एक सैन्य काफिले पर हमला कर 11 सैनिकों की हत्या कर दी थी। उसी के बाद पाकिस्तान ने कठोर प्रतिक्रिया की बात कही थी।
नई दिल्ली में कूटनीतिक पिघलाव: अप्रत्याशित दृश्य
इसी बीच, जब काबुल धुएं से ढका था, नई दिल्ली में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी का स्वागत भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने किया। दोनों नेताओं की बैठक विदेश मंत्रालय के दक्षिण ब्लॉक मुख्यालय में लगभग एक घंटे चली। यह तालिबान के अगस्त 2021 के सत्ता संभालने के बाद दोनों देशों के बीच सबसे उच्चस्तरीय संवाद था।
भारत ने चार साल बाद अपने काबुल दूतावास को पुनः खोलने की घोषणा की है। यह कदम तालिबान के लिए राजनयिक रूप से राहत भरा माना जा रहा है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठन अभी भी अलग-थलग है। मुत्ताक़ी ने बैठक में कहा, “अफगानिस्तान भारत को अपना घनिष्ठ मित्र मानता है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्ते और आर्थिक संभावनाएं असीम हैं।”
उन्होंने यह भी दोहराया कि अफगान मिट्टी का इस्तेमाल किसी भी पड़ोसी देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा, जो पाकिस्तान पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी मानी गई।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी से मुत्ताक़ी को यात्रा की अस्थायी अनुमति दी गई है। उनका भारत प्रवास एक सप्ताह तक चलेगा, जिसमें व्यापार, मानवीय सहायता और आतंकवाद-रोधी सहयोग पर चर्चा होगी। भारत, जिसने 2021 से पहले अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी थी, अब अपने रणनीतिक निवेशों की सुरक्षा चाहता है, खासकर चाबहार बंदरगाह परियोजना की, जो पाकिस्तान को बायपास करती है।
अफगान-पाक विवाद की पृष्ठभूमि: बारूद के ढेर पर सरहद
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव का मूल ब्रिटिश कालीन डूरंड रेखा है, जो 2,640 किलोमीटर लंबी है और जिसे काबुल कभी औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देता। इस रेखा के दोनों ओर उग्रवादी समूह आसानी से आ-जा सकते हैं।
अमेरिकी वापसी के बाद से टीटीपी ने पूर्वी अफगानिस्तान में अपने ठिकाने फिर से सक्रिय कर लिए हैं। पाकिस्तान का दावा है कि 2024 में टीटीपी ने उसके खिलाफ एक हज़ार से अधिक हमले किए। जवाब में पाकिस्तान समय-समय पर हवाई या ड्रोन हमले करता रहा है, जिन्हें वह प्रायः आधिकारिक तौर पर नकार देता है।
भारत की अफगान नीति में यह बदलाव इसलिए भी अहम है क्योंकि पहले वह उन सरकारों का समर्थक था जो तालिबान के विरोध में थीं। लेकिन अब नई दिल्ली व्यावहारिक रुख अपनाते हुए तालिबान से संवाद बढ़ा रही है ताकि पाकिस्तान के प्रभाव को संतुलित किया जा सके और अपने सुरक्षा हितों की रक्षा हो सके।
एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “यह यात्रा दक्षिण एशिया में शक्ति-संतुलन को नए रूप में परिभाषित करेगी। भारत स्थिरता की दिशा में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।”
वैश्विक प्रतिक्रिया: चिंता, निंदा और संयम की अपील
संयुक्त राष्ट्र ने दोनों पक्षों से “अधिकतम संयम” बरतने की अपील की है और चेतावनी दी है कि बढ़ता तनाव अफगानिस्तान की पहले से गंभीर मानवीय स्थिति को और बिगाड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 2.4 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।
चीन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है, ने संवाद की अपील की, जबकि अमेरिका ने कहा कि वह तालिबान को मान्यता नहीं देता, लेकिन हिंसा के फैलाव को रोकना आवश्यक है।
पाकिस्तान में कट्टरपंथी गुटों ने हमलों को “आतंकवाद पर निर्णायक प्रहार” बताया, जबकि विपक्षी नेताओं ने इसे “लापरवाह सैन्य दुस्साहस” कहा, जो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अलग-थलग कर सकता है।
अफगान सोशल मीडिया पर #PakistanOut जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। सैकड़ों लोगों ने हमलों की तस्वीरें साझा करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा जताया।
भारत सरकार ने मुत्ताक़ी की यात्रा के दौरान कूटनीतिक चुप्पी बनाए रखी, लेकिन सूत्रों के अनुसार नई दिल्ली इस घटना को अपने संवाद की प्रासंगिकता के रूप में देख रही है—एक संकेत कि अफगानिस्तान को क्षेत्रीय दबावों से निपटने के लिए भरोसेमंद साझेदारों की आवश्यकता है।
आगे का रास्ता: संवाद या टकराव?
काबुल में मलबा हटाया जा रहा है, और नई दिल्ली में कूटनीतिक बैठकें जारी हैं। परंतु पूरे दक्षिण एशिया में बेचैनी स्पष्ट है। ये हमले तालिबान की अंतरराष्ट्रीय वैधता की कोशिशों को कमजोर कर सकते हैं, जबकि भारत का दूतावास पुनः खोलना क्षेत्रीय व्यापार गलियारों को गति दे सकता है, जिससे पाकिस्तान असहज है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि स्थिति को तुरंत नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह संघर्ष 1980 के दशक जैसे प्रॉक्सी युद्धों का रूप ले सकता है। एक विश्लेषक ने कहा, “अब तालिबान को निर्णय लेना होगा—क्या वे आतंकियों को आश्रय देंगे या दुनिया से संबंध बनाएंगे।”
फिलहाल मुत्ताक़ी का भारत से संदेश साफ़ है—“अफगानिस्तान संप्रभुता चाहता है, अधीनता नहीं।”