आध्यात्मिक जन्म का अर्थ है आत्मा की नई जागृति, जब व्यक्ति अपने जीवन के मूल उद्देश्य और आध्यात्मिक सत्य को समझने लगता है। यह कोई भौतिक जन्म नहीं, बल्कि एक आंतरिक परिवर्तन होता है, जहाँ इंसान सांसारिक मोह-माया से परे जाकर आत्मज्ञान, शांति, मोक्ष प्राप्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण की ओर बढ़ता है। अपने जीवन के मूल उद्देश्य पथ पर अग्रसर हो जाता है।
“जा दिन सतगुरू भेंटिया, वो दिन लेखे जान, बाकी समय गवां दिया, बिना गुरु के नाम।”
बिना गुरु के जीवन को भी व्यर्थ और अकार्थ कहा जाता है, सतगुरू के मिले सब कुछ अधूरा है। जिस दिन सतगुरू की भेंट होती है उस दिन से जीव का वास्तविक जनम होता है और वह शुभ दिन उसका आध्यात्मिक जनम कहलाता है।
गीता में सतगुरू की पहचान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा गया है कि तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त करो।
“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥”
अर्थ: तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर, श्रद्धा और सेवा से ज्ञान प्राप्त करो, वे तुम्हें सही ज्ञान देंगे।
गीता अध्याय 15 श्लोक 1-4 सतगुरू के पहचान बताएं गए है कि संसाररूपी एक उल्टे वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ से लेकर उसके सभी विभागों को भिन्न भिन्न बता देगा वही तत्व दर्शी संत होगा। परम पद प्राप्त करने के लिए उस तत्वदर्शी संत की ही आवश्यकता है।
शास्त्रों के अनुसार सतगुरु
सूक्ष्म वेद के अनुसार, सतगुरु वही होता है जो सभी शास्त्रों के अनुसार परमात्मा की वास्तविक भक्ति बताए और जन्म-मरण से मुक्ति का मार्ग दिखाए।
- गीता जी अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी संत की पहचान है की वह संसार रूपी उल्टे वृक्ष के सभी भागों को भिन्न भिन्न करके बताता है।
- गीता जी में वर्णित तत्वदर्शी संत वही होता है, जो “सतपुरुष” की भक्ति कराए (गीता 15:4)।
- तत्वदर्शी संत वही होगा जो “ओम, तत्, सत्” (गीता 17:23) तीन मंत्रों का सही ज्ञान देगा।
- सतगुरु वही होगा, जो पूर्ण ब्रह्म (कबीर साहेब) की भक्ति बताए और उसके प्रमाण वेदों, गीता, बाइबिल, गुरुग्रंथ साहेब, और कुरआन शरीफ आदि सभी धर्म ग्रंथों में हों।
कर्म बंधन से सदा के लिए मुक्ति हेतु सतगुरू उपदेश!
गीता जी अध्याय 4 श्लोक 32
एवम्, बहुविधाः, यज्ञाः, वितताः, ब्रह्मणः, मुखे, कर्मजान्, विद्धि, तान्, सर्वान्, एवम्, ज्ञात्वा, विमोक्ष्यसे ॥ ३२॥
इस प्रकार (और भी) वेद की वाणीमें विस्तारसे कहे गये हैं। उन सबको (तू) मन, इन्द्रिय और शरीरकी क्रिया-द्वारा सम्पन्न होनेवाले बहुत तरहके यज्ञ जान, इस प्रकार (तत्त्वसे)जानकर (उनके अनुष्ठान-द्वारा तू कर्मबन्धनसे सर्वथा)मुक्त हो जायगा।
निष्कर्ष
गीता जी के अनुसार सतगुरु वह है जो तत्वदर्शी संत हो और सत्य भक्ति का मार्ग दिखाए। संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान बताता है कि तत्वदर्शी संत वही होता है, जो पूर्ण परमात्मा (कबीर साहेब) की भक्ति कराए और शास्त्र-सम्मत मंत्रों की जानकारी दे। सच्चे संत के मार्गदर्शन और दीक्षा प्राप्त कर जीव अपने वास्तविक लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है, वहीं से उसकी आध्यात्मिक जीवन यात्रा प्रारम्भ होती है और वही उसका नया जन्म होता है।
संत रामपाल जी महाराज ही विश्व में एक मात्र तत्व दर्शी संत हैं जो गीता और वेदों के अनुसार प्रमाणित तत्वदर्शी संत हैं और सतगुरु के लक्षणों को भी गीता जी में स्पष्ट किया गया हैं।
आप जी भी उनके तत्व ज्ञान को समझने हेतु Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड करें और उनके वेबसाईट www.jagatgururampalji.org पर visit कर सकते हैं।