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ई-वेस्ट: बढ़ती समस्या और उसका समाधान

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Last updated: September 30, 2025 12:52 pm
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ई-वेस्ट बढ़ती समस्या और उसका समाधान
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आज वर्तमान समय में दुनियां भर के डिजिटल और तकनीकी युग में  विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक , इलेक्ट्रिकल उपकरण मानव जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। “ई वेस्ट” – शब्द इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) से जुड़े सभी उपकरणों को शामिल करता है जिसमें स्मार्ट मीटर स्मार्ट स्पीकर से लेकर यहां तक की वर्तमान समय की उच्च तकनीक वाले कार्य भी आज शामिल है मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी, वॉशिंग मशीन, फ्रिज , कार और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण  मानव रोज़मर्रा के काम को आसान बनाते हैं। लेकिन जब ये उपकरण पुराने या खराब हो जाते हैं, तो वे ई-वेस्ट  के रूप में एक नई समस्या खड़ी कर देते हैं।

Contents
  • ई-वेस्ट क्या है?
  • भारत में ई-वेस्ट की स्थिति
  • ई-वेस्ट से होने वाले खतरे
  • समाधान और पहल
  • निष्कर्ष

वर्तमान समय में दुनिया भर  में ई-वेस्ट की समस्या तेजी से बढ़ रही है और भारत भी इसमें प्रमुख योगदान देने वाले देशों में शामिल है।

ई-वेस्ट क्या है?

ई-वेस्ट जैसे नाम से ही पता चल रहा है कि ये एक कबाड़ या “कचरा”शब्द है।उन विद्युत् इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों का कचरा है जो अब मानव जीवन के उपयोग में नहीं आते। इनमें कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर और उन सभी पार्ट्स की बैटरियां शामिल हैं। इनमें कई प्रकार के हानिकारक रसायन तत्व और धातुएं  हैं जैसे– सीसा, पारा, लिथियम ,कैडमियम, क्रोमियम। अगर आज वर्तमान परिदृश्य में इन पार्ट्स को सुरक्षित तरीके से रीसाइक्लिंग न किया जाए तो ये मिट्टी, पानी और हवा को गंभीर रूप से प्रदूषित कर  मानव जीवन को काफी ज्यादा प्रभावित करते है।

भारत में ई-वेस्ट की स्थिति

भारतदेश दुनिया भर में तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक देश है।

UNO संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट 2024- के अनुसार, प्रति वर्ष विश्व में करीबन 62 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है।

इसमें से भारत देश में लगभग 38 लाख टन ई-कचर प्रति वर्ष पैदा होता है, 2024 की रिपोर्ट के अनुसार।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ई-कचरा प्रति वर्ष 7–10% की दर से बढ़ रहा है।

आज वर्तमान में सबसे ज्यादा ई-कचरा देश की राजधानी दिल्ली, और मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों से निकलता है।

ई-वेस्ट से होने वाले खतरे

1. पर्यावरण प्रदूषण – “ई- कचरा” में लेड, पारा ,लिथियम , केडीयम जैसे जहरीले रसायन तत्व होते हैं जो लैंडफिल में मिट्टी और जल को दूषित करते हैं जिससे भूमि का जल भी प्रदूषित होता  हैं।

2. स्वास्थ्य पर असर – ई कचरा  के अनुचित  निपटान से मानव शरीर पर त्वचा रोग, लिवर संबंधित बीमारियां और बच्चों के विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है, क्योंकि यह जहरीले तत्व स्वास के जरिए या चमड़ी से मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं , पारा और सीसा जैसी धातुएं कैंसर, सांस की बीमारियां, मानव शरीर के तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ियां और जन्मजात विकार पैदा कर सकती हैं।

3. जलवायु परिवर्तन – ई कचरे का अनुचित तरीके से जलाने से वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है।

4. अनौपचारिक क्षेत्र का संकट – खासकर विकासशील देशों में जैसे भारत, ब्राज़ील में करीब 90% ई-वेस्ट असंगठित कबाड़ी और छोटे छोटे  रीसाइक्लर के स्टोर में जाता है, जिससे सुरक्षित निपटान नहीं हो पाता।

समाधान और पहल

1. पुनर्चक्रण – ई कचरे का सबसे महत्वपूर्ण समाधान है उसका उचित तरीके से  पुनर्चक्रण. दैनिक जीवन में इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रीसाइकलिंग बिन में डालना या सरकार द्वारा प्रमाणित संग्रह स्थलों पर ही ले जाना  उचित है, साथी हमें उसे प्रोडक्ट की जीवन अवधि बढ़ाना उपकरण को फेंकने की बजाय उसके मरम्मत को बढ़ावा देना ताकि वह और लंबे समय तक चल सके पुराने फोन, टैबलेट्सया इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद को दान करना या  बेचना चाहिए जिससे उनका पूर्ण उपयोग हो सके और ई कचरा कम हो सके।

2. ई-वेस्ट मैनेजमेंट नियम(EPR) 2022 – भारत सरकार ने “Extended Producer Responsibility ” लागू कर दिया गया है, जिसके तहत इस प्रकार के प्रोडक्ट कंपनियों को अपने उत्पाद के ई-वेस्ट की जिम्मेदारी लेनी स्वयं लेनी होगी।

3. कंपनी निर्माता को ऐसे मॉड्यूलर प्रोडक्ट डिजाइन करने चाहिए जिससे आने वाले समय में आसानी से तब्दील किया जा सके और उत्पाद की जीवन अवधि भी बढ़ सके सरकारी नियम और नीतियों का भी सरकारों को एक कचरा प्रबंधन के लिए कानून की नीतियां सख्त बनानी चाहिए ताकि जिम्मेदार प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा सके।

3. जागरूकता अभियान – आज के समय में आम नागरिकों को ई कचरा निपटान का सही तरीका और उसके पर्यावरण और स्वास्थ्य प्रभाव के प्रति शिक्षित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि जागरूकता की कमी के कारण ही आज इन प्रोडक्ट का रीसाइकलिंग की दर को कम कर दिया है  लोगों की भावना यूज एंड थ्रो हो गई है,ओर यह समझाना जरूरी है कि ई-कचरा को घर के कूड़े के साथ फेंकने की बजाय सरकारी अधिकृत रीसाइक्लर के पास ज्यादा से ज्यादा जमा करें।

4. सर्कुलर इकॉनमी – पुराने उपकरणों की मरम्मत और पुनर्चक्रण से न सिर्फ ई कचरा कम होगा बल्कि रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

5. दैनिक जीवन में नवाचार – वर्तमान में इस समस्या से निपटाने के लिए केवल पुन उपयोग या पुनर्चक्रण का सहारा लेना पर्याप्त नहीं है बल्कि हम सभी को जितना हो सके रीसाइकलिंग और पुण्य उपयोग करके अपनी भूमिका भी निभानी चाहिए, बढ़ते  ई वेस्ट संकट का सही समाधान करने के लिए तो हम सभी को आवश्यकता से अधिक नया सामान खरीदना बंद करना होगा ,हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि हम इलेक्ट्रॉनिक सामान कैसे खरीदे और इस्तेमाल करते हैं हमें उन्हें कब खरीदने हैं , और वह कितने समय तक चलते हैं और जब उनका उपयोग जीवन में समाप्त हो जाता है तो उसका क्या करना चाहिए। हमें अपने दैनिक कार्यों के साथ-साथ हमारे आसपास की दुनिया पर भी पडने वाले प्रभाव की जिम्मेदार भी लेनी होगी , गारमेंट क्या कर सकती है या कंपनियां ऐसा क्यों कर रही है यह पूछने की बजाय हम खुद से पूछे मैं क्या कर सकता हूं।

निष्कर्ष

ई-कचरा वर्तमान समय की सबसे बड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। यदि इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह मानव समाज के लिए स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर संकट खड़ा होगा। आज आधुनिक युग में दुनिया भर में हर एक देश को चाहिए कि वह तकनीकी समाधान, सख्त कानून और जन-जागरूकता के जरिए ई-कचरा प्रबंधन को  और मजबूती के साथ ध्यान दे। हर नागरिक को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी जितना संभव हो उपकरणों को रिपेयर और री-यूज़ करें और जब दैनिक जीवन में उपयोग न हो तो उन्हें अधिकृत रीसाइक्लिंग केंद्रों तक पहुंचाएं। यही कदम हमें एक स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।

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