कभी न कभी आपने भी किसी राजनेता, अभिनेता या किसी जानी-मानी हस्ती की ऐसी वीडियो देखी होगी जिसमें भ्रामक जानकारी होती है। कई बार हम इन वीडियो पर भरोसा कर बैठते हैं, लेकिन जब बाद में सच सामने आता है तो पता चलता है कि ये वीडियो नकली होती हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से बनाई गई हैं।
आइए जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक तकनीक की मदद से ऐसी वीडियो कैसे बनती हैं, और हम किस तरह ऐसी भ्रामक जानकारी का पता लगा सकते हैं। आखिरकार, इस डिजिटल युग में हम अपने आपको सुरक्षित और जागरूक कैसे रख सकते हैं?
क्या है डीपफेक तकनीक?
डीपफेक एक कंप्यूटर की तकनीक है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) की सहायता से किसी मनुष्य के चेहरे, उसके हाव-भाव, और आवाज़ को इस तरह निर्माण करती है कि नकली सामग्री भी असली जैसी लगने लगती है। डीपफेक शब्द का जन्म दो शब्दों से मिलकर हुआ है:
“Deep Learning” + “Fake” = Deepfake.
कैसे काम करता है Deepfake तकनीक?
डीपफेक तकनीक का आधार है (GANs) Generative Adversarial Networks।
इसमें दो हिस्से होते हैं:
प्रथम: जनरेटर (Generator):
इसका काम होता है फर्जी वीडियो या इमेज बनाना।
दूसरा: डिस्क्रिमिनेटर (Discriminator):
यह जांचता है कि जनरेटर द्वारा बनाई गई चीज़ सत्य है या असत्य।
ये दोनों ही एक-दूसरे के खिलाफ एक तरह की “डिजिटल युद्ध” लड़ते हैं। जनरेटर बार-बार नए नकली वीडियो बनाता है और डिस्क्रिमिनेटर उसे पकड़ने की कोशिश करता है। हर बार की कोशिश के साथ असत्य वीडियो और भी ज्यादा उचित होता चला जाता है। परिणामस्वरूप ऐसा कंटेंट सामने आता है जिसे देखकर किसी के लिए भी “सच और झूठ” का फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
डीपफेक तकनीक के दो पहलू
हर चीज के दो पहलू होते हैं, एक अच्छा तो दूसरा उसके विपरीत बुरा। ठीक इसी प्रकार, डीपफेक के भी दो पहलू हैं। प्रथम पहलू है सकारात्मक उपयोग:
- फिल्मों में: मर चुके या बुज़ुर्ग अभिनेताओं को युवा रूप में दिखाना, या डबिंग आसान बनाना।
- शिक्षा क्षेत्र में: ऐतिहासिक शख्सियतों को “जिंदा” कर इंटरैक्टिव लर्निंग अनुभव बनाना।
- गेमिंग में: रियल-लाइफ जैसे अवतार तैयार करना।
दूसरा पहलू है नकारात्मक उपयोग:
- राजनीतिक प्रोपेगेंडा: राजनेताओं के नकली भाषण और फोटोज़ बनाकर अफवाह फैलाना।
- व्यक्तिगत तौर पर बदनाम करने के लिए: आम लोगों या सेलिब्रिटीज़ के अश्लील और झूठे वीडियो बनाना।
- ऑडियो फ्रॉड: डीपफेक वॉइस कॉल्स से धोखाधड़ी या ब्लैकमेल करना भी।
डीपफेक से क्या है खतरा?
एक ओर डीपफेक तकनीक के फायदे हैं तो दूसरी ओर कई नुकसान भी। अगर इस तकनीक का गलत इस्तेमाल हो, तो उससे कई खतरे हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि किस प्रकार से डीपफेक लोगों की जिंदगी में हानि कर सकते हैं:
- भ्रम और असत्य सूचना: नकली वीडियो को भी सच मान लिया जाता है और इससे समाज में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- प्रतिष्ठा पर हमला: किसी भी व्यक्ति की छवि को कुछ समय में खराब किया जा सकता है।
- चुनावों पर असर: झूठी न्यूज़ और भाषणों के ज़रिए जनता को गुमराह किया जा सकता है।
- साइबर क्राइम: पहचान को चुराना, पैसों की ठगी, या वॉइस कॉल के जरिए धोखाधड़ी जैसी घटनाएं बढ़ सकती हैं।
कैसे पहचानें डीपफेक (Deepfake) कंटेंट?
अगर डीपफेक एक समस्या है, तो इसका समाधान भी है। ऐसे कई तरीके हैं जिससे आप डीपफेक को पहचान सकते हैं। नीचे दिए गए कुछ तरीके डीपफेक को पहचानने में आपकी मदद करेंगे:
- चित्रों में आंखों की पलकें सामान्य से कम झपकना।
- होंठों की हरकत और आवाज़ का मेल न खाना।
- चेहरे और बैकग्राउंड के बीच का असामान्य अंतर।
- इसके साथ ही Microsoft’s Video Authenticator, Deepware Scanner जैसे टूल्स का इस्तेमाल।
भारत और दुनिया में कानूनी स्थिति
भारत में अभी तक डीपफेक को लेकर कोई विशेष प्रकार के कानून नहीं हैं, लेकिन IT Act 2000, IPC की कुछ धाराएँ, और डिजिटल डेटा सुरक्षा कानून के अंतर्गत ही कार्रवाई की जा सकती है। ठीक इसके विपरीत, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन जैसे देशों ने इस पर कड़े कानून बना रखे हैं।
निष्कर्ष – तकनीकी वरदान या अभिशाप?
डीपफेक तकनीक एक ओर देखें तो विज्ञान की चमत्कारिक शक्ति है, लेकिन यह गलत हाथों में चली जाए तो यह समाज, राजनीति और व्यक्तिगत जीवन के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती है। इसलिए तकनीक का जिम्मेदारीपूर्ण इस्तेमाल, जागरूकता और सख्त साइबर क़ानून आवश्यक हैं।
कैसे करें असली और नकली ज्ञान की पहचान?
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