मुख्य बिंदु (Highlights):
- नवरात्रि व्रत के दौरान पीरियड आने पर महिला ने खाया जहर
- अस्पताल में हुई मौत, पति को कहा: “अब मैं पूजा नहीं कर पाऊंगी”
- अंधविश्वास और धार्मिक दबाव बना आत्महत्या का कारण
- समाज में पीरियड्स को लेकर जागरूकता की बेहद आवश्यकता
- सतज्ञान का पालन कर सकता है ऐसे दुखद घटनाओं से बचाव
घटना विस्तार से
महिला की पहचान और पारिवारिक स्थिति
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र के गोला कुआं मोहल्ले में रहने वाले ज्वैलर्स मुकेश सोनी की पत्नी, 36 वर्षीय प्रियांशी सोनी, दो बेटियों जाह्नवी और मानवी के साथ खुशहाल जीवन जी रही थीं।
घटना की पृष्ठभूमि
प्रियांशी हर साल चैत्र नवरात्रि में पूरे नौ दिन व्रत रखती थीं और मां दुर्गा की पूजा में विशेष भक्ति रखती थीं। इस बार भी उन्होंने पूजा की तैयारी पहले से शुरू कर दी थी और 29 मार्च को पूजा का सारा सामान मंगवाया था। लेकिन 30 मार्च की सुबह उन्हें मासिक धर्म आ गया, जिससे वे अत्यंत दुखी हो गईं।
आत्महत्या की घटना
पति मुकेश के अनुसार, उन्होंने पत्नी को समझाया था कि मासिक धर्म एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और इसमें शर्म या अपराधबोध की कोई बात नहीं है। लेकिन प्रियांशी बेहद भावुक और आहत थीं। उन्होंने कहा, “अब मैं माँ की पूजा नहीं कर पाऊंगी, मुझे बहुत कष्ट हो रहा है।” कुछ ही देर बाद उन्होंने जहरीला पदार्थ खा लिया। परिजन उन्हें तुरंत अस्पताल ले गए, लेकिन इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
परिवार की स्थिति
बच्चियों का रो-रो कर बुरा हाल है और घर के सभी सदस्य गहरे सदमे में हैं। पति मुकेश भी इस घटना से पूरी तरह टूट गए हैं।
धार्मिक भ्रांतियाँ और सामाजिक दबाव
मासिक धर्म और अंधविश्वास
आज भी समाज के कई हिस्सों में मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है और महिलाओं को इस दौरान पूजा, मंदिर प्रवेश और धार्मिक कार्यों से वंचित किया जाता है। यह सोच न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि मानसिक रूप से भी महिलाओं पर दबाव बनाती है।
मानसिक स्वास्थ्य और धार्मिक दबाव
प्रियांशी की आत्महत्या इस बात का उदाहरण है कि धार्मिक आस्थाएं और सामाजिक अपेक्षाएं किस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। मासिक धर्म एक प्राकृतिक और आवश्यक जैविक प्रक्रिया है, जिसे लेकर शर्मिंदगी या हीन भावना नहीं होनी चाहिए।
सतज्ञान का दृष्टिकोण
आध्यात्मिक ज्ञान और सच्ची भक्ति
संत रामपाल जी महाराज और संत कबीरदास जी के प्रवचनों में यह बताया गया है कि पूजा का संबंध शरीर की स्थिति से नहीं, बल्कि मन की भावना और सत्य साधना से होता है।
महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण
सतज्ञान के अनुसार, ईश्वर ने स्त्री और पुरुष दोनों को समान बनाया है और किसी भी प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण पूजा से वंचित करना धर्म के खिलाफ है।
निष्कर्ष: समय है बदलाव का
सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता
प्रियंशी की आत्महत्या न केवल एक व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि यह समाज को आत्ममंथन करने पर विवश करती है। मासिक धर्म को कलंक मानने की बजाय इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया मानकर महिलाओं को मानसिक और भावनात्मक रूप से सशक्त बनाना चाहिए।
सही आध्यात्मिक मार्ग अपनाएं
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, सच्चाआध्यात्मिक ज्ञान वह है जो आत्मा की शुद्धता और मानसिक शांति को बढ़ावा दे, न कि शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं को पाप समझे। उन्होंने अपने सत्संगों में बार-बार बताया है कि ईश्वर को भक्ति भाव चाहिए, न कि शरीर की स्थिति। मासिक धर्म कोई अपवित्रता नहीं, बल्कि एक जैविक प्रक्रिया है जो स्त्री जीवन का महत्वपूर्ण भाग है।
झांसी की महिला की आत्महत्या यह दर्शाती है कि समाज अब भी शरीर को धर्म से जोड़ कर आत्मा की उपेक्षा कर रहा है। संत रामपाल जी कहते हैं, आत्मा तभी शुद्ध होती है जब हम सच्चे ज्ञान को अपनाते हैं, भेदभाव और अंधविश्वास को छोड़ते हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि तत्वज्ञान की कमी समाज में कितनी घातक हो सकती है। सच्चा ज्ञान ही दुखों का अंत कर सकता है।
यदि आप या आपका कोई परिचित मानसिक तनाव या अवसाद से जूझ रहा है, तो कृपया विशेषज्ञ से सलाह लें। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। मदद के लिए स्थानीय हेल्पलाइन से संपर्क करें।