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योग: एक प्राचीन भारतीय वरदान जो तन, मन और आत्मा को जोड़ता है

SA News
Last updated: June 23, 2025 11:17 am
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योग: एक प्राचीन भारतीय वरदान जो तन, मन और आत्मा को जोड़ता है
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योग केवल व्यायाम या आसनों तक सीमित नहीं है, यह जीवन जीने की एक सम्पूर्ण पद्धति है। योग का शाब्दिक अर्थ है “जुड़ना”, जो व्यक्ति की चेतना को सार्वभौमिक चेतना से जोड़ने का माध्यम है। यह भारत की वह अद्वितीय देन है जो आज पूरे विश्व में एक जीवनदायिनी विधा बन चुकी है। आधुनिक जीवन की चुनौतियों में शांति और संतुलन प्रदान करने का यह एक शाश्वत साधन बन गया है।

Contents
योग की परिभाषा व अर्थयोग की उत्पत्ति और इतिहासयोग के प्रकारयोग के लाभ1. शारीरिक लाभ:2. मानसिक लाभ:योग के मुख्य अंग (पतंजलि के अनुसार)सतज्ञान और योग:निष्कर्ष:FAQs

योग की परिभाषा व अर्थ

संस्कृत शब्द ‘योग’ की उत्पत्ति ‘युज्’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है – “जोड़ना”। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रक्रिया है। पाणिनि, पतंजलि, गीता और उपनिषदों में योग को चेतना की उच्च अवस्था, कर्म और ज्ञान के अनुशासित समन्वय के रूप में वर्णित किया गया है। योग का उद्देश्य बाह्य जगत से भीतर की यात्रा को साकार करना है।

योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग का इतिहास सिंधु-सरस्वती सभ्यता (2700 ईसा पूर्व) से भी पुराना माना जाता है। पतंजलि ऋषि द्वारा रचित योगसूत्र ने योग को आठ अंगों में विभाजित कर एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया:
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।

महाभारत, भगवद्गीता, उपनिषद, बौद्ध और जैन धर्म, शैव और वैष्णव परंपराएं सभी किसी न किसी रूप में योग को अपनाती हैं। मध्यकाल में आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मत्स्येंद्रनाथ, गोरखनाथ ने हठयोग को जन-जन तक पहुँचाया।

भक्ति परंपरा में संत कबीर, संत नामदेव, संत तुलसीदास आदि ने योग के आध्यात्मिक आयामों को उजागर किया।आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, बी.के.एस. अयंगर, श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव आदि ने योग को विश्वमंच तक पहुँचाया।

योग के प्रकार

  1. हठयोग – शारीरिक आसनों और प्राणायाम पर आधारित।
  2. राजयोग – ध्यान और आत्म-संयम पर आधारित, पतंजलि द्वारा वर्णित।
  3. कर्मयोग – निष्काम कर्म के माध्यम से।
  4. भक्तियोग – प्रेम, समर्पण और ईश्वर भक्ति से आत्मिक शुद्धि।
  5. ज्ञानयोग – विवेक और वैराग्य के माध्यम से मुक्ति।
  6. कुण्डलिनी योग, मंत्र योग, लय योग, सहज योग आदि भी प्रमुख परंपराएं हैं।

 इन सबमें, संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, भक्तियोग ही सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यही आत्मा को सत्पुरुष से जोड़ने का माध्यम बनता है।

योग के लाभ

1. शारीरिक लाभ:

  • शरीर को लचीला, मज़बूत और ऊर्जावान बनाता है।
  • रक्तसंचार, पाचन तंत्र और श्वसन प्रणाली में सुधार।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
      इसके नियमित अभ्यास से मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियाँ भी नियंत्रित की जा सकती हैं।

2. मानसिक लाभ:

  • तनाव, चिंता, अवसाद और अनिद्रा में राहत।
  • ध्यान केंद्रित करने की शक्ति और आत्म-संयम में वृद्धि।
      मनोवैज्ञानिक संतुलन और भावनात्मक स्थिरता प्राप्त होती है।

योग के मुख्य अंग (पतंजलि के अनुसार)

  1. यम – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
  2. नियम – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
  3. आसन – स्थिरता और सुख देने वाली शारीरिक मुद्राएं।
  4. प्राणायाम – श्वास नियंत्रण द्वारा ऊर्जा संतुलन।
  5. प्रत्याहार – इंद्रियों का संयम।
  6. धारणा – एकाग्रता।
  7. ध्यान – निरंतर चेतना।
  8. समाधि – आत्मा का परमात्मा में विलय।

सतज्ञान और योग:

संतमत के अनुसार, योग का अंतिम उद्देश्य आत्मा का अपने वास्तविक स्वरूप – परमात्मा – से मिलन है।
जैसा कि गीता में श्रीकृष्ण ने कहा:
“समत्वं योग उच्यते” – समभाव ही योग है।

 संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, केवल आसन और प्राणायाम योग नहीं है,
बल्कि सच्चा योग वह है जिसमें साधक “सतनाम” और “सारनाम” के माध्यम से गरीबदास जी और कबीर साहेब द्वारा प्रदत्त मोक्षमार्ग पर चलता है।
जब आत्मा सतलोक की ओर अग्रसर होती है, तभी वह पूर्ण योग कहलाता है।
यानी अपने निज धाम में वापसी।
पूर्ण मोक्ष।

 यह योग केवल किसी क्रिया-कलाप का नाम नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान और परम सत्ता की अनुभूति का पथ है।

निष्कर्ष:

योग केवल शरीर को लचीला बनाने या मानसिक शांति पाने का उपाय नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण जीवन का विज्ञान है। यह व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण बनाता है।

आज लाखों लोग विश्वभर में योग से लाभान्वित हो रहे हैं।
परंतु जब योग को केवल आसनों तक सीमित कर दिया जाता है, तो उसका उद्देश्य अधूरा रह जाता है।
यदि योग को उसके सम्पूर्ण आध्यात्मिक स्वरूप में अपनाया जाए –
जैसा कि संत रामपाल जी महाराज ने बताया है – तभी आत्मा पूर्ण मोक्ष को प्राप्त कर सकती है।

संत जी के अनुसार मनुष्यों को जीवित मरना यानी अपने विकारों पर काबू पाना ही सच्चा योग है। अपनी इच्छाओं, लालसाओं को हराकर पूर्ण ब्रह्म में आत्मचित होना ही परम योग है।

FAQs

Q1. क्या योग धर्म से जुड़ा हुआ है?
नहीं, योग किसी धर्म, संप्रदाय या जाति से बंधा नहीं है। यह सार्वभौमिक और वैज्ञानिक अभ्यास है।

Q2. क्या योग केवल आसनों तक सीमित है?
नहीं, योग एक सम्पूर्ण जीवन प्रणाली है जिसमें यम-नियम, ध्यान, प्राणायाम और आत्मज्ञान शामिल हैं।

Q3. योग का अंतिम उद्देश्य क्या है?
संत मत के अनुसार, आत्मा को परमात्मा (सतपुरुष कबीर साहेब) से जोड़ना ही योग का परम उद्देश्य है।

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