भारत पिछले हजारों वर्षों से अस्तित्व में है। भारत का विस्तार आज के अफगानिस्तान, ईरान तक था। अखंड भारत कहने का यही अर्थ है। भारत ने न जाने कितनी सभ्यताएं और कितने आक्रमण देखे हैं। कुछ आक्रमणकारी भारत के ही हो कर रह गए या यह कहें कि उन्होंने अपना राज्य भारत की धरती पर ही स्थापित कर लिया। और भारत के संसाधनों का इस्तेमाल भारत की तरक्की के लिए किया। लेकिन कुछ आक्रमणकारी ऐसे भी रहे जिन्होंने भारत के संसाधनों का पतन किया। ऐसा कहें कि भारत को सोने की चिड़िया से मिट्टी की चिड़िया बना दिया।
वो थे अंग्रेज़, जिन्होंने भारत को लगभग 200 साल तक लूटा। न सिर्फ लूटा बल्कि इसको खंड-खंड कर गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद, अंग्रेजों की पकड़ भारत पर कमजोर पड़ने लगी थी, तो उन्होंने भारत को छोड़ने का निर्णय किया। मार्च 1947 में वायसराय वावेल को माउंटबेटन से बदल दिया गया। 8 मई 1947 को वी. पी. मेनन ने सत्ता अंतरण के लिए एक योजना प्रस्तुत की, जिसका अनुमोदन माउंटबेटन ने किया।
कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और कृपलानी थे जबकि मुस्लिम लीग की ओर से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली और अब्दुल निश्तार थे जिन्होंने विचार-विमर्श के बाद इस योजना को स्वीकार किया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने इस योजना की घोषणा हाउस ऑफ कॉमन्स में 3 जून 1947 को की थी, इसलिए इसे “3 जून योजना” भी कहा जाता है।
इस योजना के अनुसार पंजाब और बंगाल की प्रांतीय विधानसभाओं के वे सदस्य, जो मुस्लिम बहुमत वाले जिलों का प्रतिनिधित्व करते थे, अलग एकत्र होकर और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले सदस्य अलग एकत्र होकर यह तय करेंगे कि प्रांत का विभाजन किया जाए या नहीं। दोनों भागों में विनिश्चित सादे बहुमत से होगा। प्रत्येक भाग यह भी तय करेगा कि उसे भारत में रहना है या पाकिस्तान में?
पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में और असम के सिलहट जिले में जहां मुस्लिम बहुमत है वहां जनमत संग्रह की बात कही गई। दूसरी ओर इसमें सिंध और बलूचिस्तान को भी स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार दिए गए। बलूचिस्तान के लिए निर्णय का अधिकार क्वेटा की नगरपालिका को दिया गया।
उस वक्त भारत, अफगानिस्तान और ईरान के हवाले से बलूचिस्तान के लिए यह बहस की गई थी कि आप भारत के साथ रहना चाहेंगे, ईरान के साथ, अफगानिस्तान के साथ, या आज़ाद रहना चाहेंगे? उस दौरान पाकिस्तान के साथ विलय के लिए किसी भी प्रकार का करार पास नहीं हुआ था। तब यह समझाया गया कि इस्लाम के नाम पर बलूच पाकिस्तान के साथ विलय कर लें। लेकिन तब बलूचों ने यह मसला उठाया कि अफगानिस्तान और ईरान भी तो इस्लामिक देश हैं, तो उनके साथ क्यों नहीं?
अंत में यह निर्णय हुआ कि बलूच एक आज़ाद मुल्क बनेगा। कलात के खान ने बलूची जनमानस की नुमाइंदगी करते हुए पाकिस्तान में विलय से इंकार कर दिया था। अंततः पाकिस्तान ने बलपूर्वक सैन्य कार्रवाई कर बलूचिस्तान का जबरन विलय कर लिया।
बलूचों का पाकिस्तान से लंबा संघर्ष
पाकिस्तान में बलूच राष्ट्रवादियों के संघर्ष के कई लंबे-लंबे दौर चले हैं। पहली लड़ाई तो बंटवारे के फौरन बाद 1948 में छिड़ गई थी। उसके बाद 1958-59, 1962-63 और 1973-77 के दौर में संघर्ष तेज रहा। ये लड़ाइयां हिंसक भी रहीं, मगर अहिंसक प्रतिरोध के दौर भी चले। मौजूदा अलगाववादी संघर्ष का हिंसक दौर 2003 से शुरू हुआ। इसमें सबसे प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को बताया जाता है जिसे पाकिस्तान और ब्रिटेन ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। इसके अलावा भी कई छोटे संगठन सक्रिय हैं। इनमें लश्कर-ए-बलूचिस्तान और बलूच लिबरेशन यूनाइटेड फ्रंट प्रमुख हैं। 2006 में बलूच नेता अकबर बुगती का कत्ल कर दिया गया। इसके बाद संघर्ष और बढ़ गया।
पाकिस्तान की बर्बर कार्रवाई के चलते बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान सरकार के मुख्य ठिकानों पर हमले करने शुरू किए। राजधानी क्वेटा के फौजी ठिकाने, सरकारी इमारतों और फौजियों तथा सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया जाने लगा। पाकिस्तान की फौजी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जानें गईं और हजारों लोग लापता बताए जाते हैं जिनमें 2,000 महिलाएं और सैकड़ों बच्चे हैं।
2006 में बलूचिस्तान की जंगे आजादी को बड़ा झटका लगा। पाकिस्तानी सैनिकों की कार्रवाई में कलात के खान बुगाटी शहीद हो गए और हजारों की तादाद में बलूची विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया गया। बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का हनन हुआ। मानवाधिकार समूहों के मुताबिक वहां फर्जी मुठभेड़ों में लगातार मौतों और लापता लोगों की तादाद बढ़ रही है।
अत्याचार अपने चरम पर
परवेज मुशर्रफ के काल में अत्याचार अपने चरम पर रहा। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी पूर्व फौजी शासक परवेज मुशर्रफ की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए थे। कुछ मानवाधिकार संगठनों के मोटे अनुमान के मुताबिक 2003 से 2012 के बीच पाकिस्तानी फौज ने 8000 लोगों को अगवा किया। 2008 में करीब 1100 बलूच लापता बताए जाते हैं। सड़कों पर कई बार गोलियों से बिंधी और अमानवीय अत्याचार के निशान वाली लाशें पाई जाती रही हैं।
बलूचिस्तान के साथ पाकिस्तान ने कैसा-कैसा अन्याय किया है उसकी लंबी सूची है। पाकिस्तानी सेना के पूर्व सेनापति टिक्का खां ने बलूचों की सामूहिक हत्याएं की थीं इसलिए आज भी वहां की जनता उन्हें ‘बलूचों के कसाई’ के नाम से याद करती है। बलूचों का अपहरण पाकिस्तान में एक सामान्य बात है।
दूसरी ओर मीर हजारा खान बजरानी मरी कबीले से संबंध रखते हैं। उनके विरुद्ध पाकिस्तान की आईएसआई ने मोर्चा खोल रखा है। सरकार के विरुद्ध राष्ट्रवादी कबीलों ने ‘बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी’ गठित कर ली है। सरदार अताउल्ला के नेतृत्व में पिछले दिनों लंदन में एक बैठक हुई जिसमें मुहाजिर कौमी मूवमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन, पख्तून मिल्ली अवाम के नेता मोहम्मद खान अचकजई और सिन्धी नेता सैयद इमदाद शाह उपस्थित थे। अपनी बैठक में इन नेताओं ने द्विराष्ट्र के सिद्धांत की कड़ी आलोचना करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद करने की अपील की।
एक और बलूच नेता गुलाम मोहम्मद बलूच, जिन्होंने बीएनएम का गठन किया था, ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया। उन्हें उनके वकील और पूर्व मंत्री कचकोल अली के चैंबर से उनके सहायक लाला मुनीर बलूच और बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता शेर मोहम्मद बलूच के साथ अगवा किया गया था। 5 दिनों बाद पिडरक में भेड़ें चरा रहे स्थानीय लोगों ने इनके क्षत-विक्षत शव को देखा। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सैन्य गुप्तचरों से धमकियों के बाद उनके अधिवक्ता कचकोल अली को बलूचिस्तान छोड़ना पड़ा, जो अब ओस्लो (नॉर्वे) में निर्वासन में रह रहे हैं।
पहलगाम में आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर
बीते दिनों पहलगाम में हुए आतंकी हमले मे 26 लोगों की जान चली गई थी,भारत ने जवाबी कार्रवाई मे सिन्धु जल समझौता को निलंबित कर दिया था।पाकिस्तान का सिन्धु नदी के 80% पानी पर आधिकार है। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए पाकिस्तान ने इस को एक्ट ऑफ वार कहा था।
भारतीय सशस्त्र बलों ने पहलगाम आतंकी हमले के दो सप्ताह बाद सख्त कार्रवाई करते हुए मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात चलाए गए ऑपरेशन में आतंकवादी ठिकानों को ही निशाना बनाया। इस हमले में 90 आंतकवादियों के मारे जाने की ख़बर है। भारत ने दावा किया है कि सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) मे आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए, जिनमें आतंकवादी समूहों लश्कर- ए-तोआबा और जेस-ए- मोहम्म के गढ़ भी शामिल है मुरीद मे लश्कर-ए-तोआबा का ठिकाना और सियाल कोट मे हिज्बुल मुजाहिदीन के ठिकानों को तबाह कर दिया।
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि पहलगाम मे हमला करने वाला आतंकवादी संगठन टीआरएफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित है, इसका संबंध आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तोआबा से भी है, टीआरएफ ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी भी ली थी। इस हमले के 7 दिन बाद भी पाकिस्तान ने आतंकियों के खिलाफ़ कोई एक्शन नहीं लिया, इसलिए भारत को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी।
“पाकिस्तान बलूचिस्तान छोड़ो” ऑपरेशन सिंदूर के बाद बलूच नेता ने भारी आजादी की हुंकार।
पाकिस्तान इस समय बुरी तरफ आइसोनेट हो चुका है। एक तरह भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान और आतंकियों को खौफ से भर दिया है तो वहीं दूसरी तरफ बलूचिस्तान ने भी अब अपनी आजादी का ऐलान कर दिया है ।सड़कों पर लोग उतर रहे है, इसी बीच बलूच नेता मीर यार बलोच ने पूरी दुनिया से अपील की है कि वे बलूचिस्तान की तरफ देखे, पाकिस्तान के अत्याचारों को देखें।
बलूच नेता मीर यार बलोच ने X(ट्विटर) पर कुछ तस्वीरें साझा कर लिखा कि – बलूच नागरिकों की एक ही मत है ‘ पाकिस्तान कविट बलूचिस्तान’ बलूच का एक ही नारा तुम मारोगे हम निकलेंगे, हम नस्ल बचाने निकले हैं, आओ हमारा साथ दो ! इस समय बलूचिस्तान के लोग सड़कों पर आ रहे है।
पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान का महत्व
बलूचिस्तान पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण प्रांत है, जो अपने विशाल क्षेत्रफल, प्राकृतिक संसाधनों और रणनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिमी में स्थित है और इसका क्षेत्रफल पाकिस्तान के कुल क्षेत्र का लगभग 44% है।
प्राक्रतिक संसाधन:
बलूचिस्तान गैस, खनिजों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में पाकिस्तान का सबसे अमीर प्रांत है। चीन – पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) : चीन की ओर से वित्त पोषित अरबों की परियोजना CPEC का एक बड़ा हिस्सा है जो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की (बेल्ट एंड रोड) पहल का हिस्सा है।
क्षेत्रीय महत्व:
यह प्रांत पाकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान और ईरान से लगा हुआ है, जिससे इसका रणनितिक महत्व बढ़ जाता है
सतज्ञान:संत रामपाल जी महाराज का समाधान – आध्यात्मिक जागरूकता ही सच्ची क्रांति है।
संत रामपाल जी महाराज कहते हैं “जब तक सतभक्ति का ज्ञान नहीं होगा, तब तक शांति असंभव है। युद्ध और विद्रोह केवल पापों का फल हैं”।आज बलूचिस्तान जल रहा है, ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम उठ रहे हैं लेकिन क्या समाधान केवल हिंसा है?
समाधान है संत रामपाल जी के बताए सतज्ञान में।यह ज्ञान न केवल व्यक्ति को बदलता है, बल्कि समाज और देश को भी शांति की ओर ले जाता है।
इन सभी घटनाओं के बीच, संत रामपाल ए महाराज का दिया हुआ ज्ञान एक नई सोच प्रदान करता है। वे कहते हैं:
“जब तक मानव सच्चे ज्ञान और सतभक्ति की ओर नहीं बढ़ेगा, तब तक न शांति संभव है, न स्थायित्व । युद्ध, विद्रोह, आतंक – ये सब अज्ञान और पापों का फल हैं।”
पाकिस्तान हो या दुनिया का कोई भी देश – यदि लोग संतों द्वारा बताए गए सतभक्ति मार्ग पर चलें, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार आएगा, बल्कि समाज, राष्ट्र और पूरी मानवता में भी सुख-शांति स्थापित हो सकती है।
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निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति में रणनीतिक बदलाव को दर्शाया, जिसमें सैन्य श्रेष्ठता और सटीकता के साथ पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया गया कि सीमा-पार आतंकवाद अब बर्दाश्त नहीं होगा। यह 1971 के युद्ध के बाद भारत का सबसे बड़ा हमला माना गया, जिसने पाकिस्तान के सैन्य और आतंकी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया। दूसरी तरफ, बलूच विद्रोह ने पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरियों को उजागर किया, खासकर बलूचिस्तान में, जहां स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई।
कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में 14 मई 2025 को बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करने की बात कही गई, हालांकि यह दावा असत्यापित है और आधिकारिक पुष्टि की आवश्यकता है। दोनों घटनाओं ने मिलकर पाकिस्तान को अभूतपूर्व दबाव में ला दिया, जिससे उसकी क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति कमजोर हुई। भारत ने जहां आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की, वहीं बलूच विद्रोह ने पाकिस्तान के आंतरिक संकट को गहरा किया, जिससे उसके लिए दोहरी चुनौती उत्पन्न हुई।
FAQs:संत रामपाल जी महाराज के दृष्टिकोण से पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति पर आध्यात्मिक विश्लेषण।
प्र.1: क्या पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति (बलूच विद्रोह और ऑपरेशन सिंदूर) केवल राजनीतिक है?
उ: संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, यह संकट केवल राजनीतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक अज्ञानता का परिणाम है। जब कोई देश या समाज सच्चे ईश्वर और सतभक्ति से विमुख होता है, तब वहाँ अशांति, हिंसा और विनाश फैलता है।
प्र.2: संत रामपाल जी इस प्रकार की विद्रोह और सैन्य संघर्ष को किस रूप में देखते हैं?
उ: वे इसे कर्मों का फल और मानवता द्वारा धर्म के रास्ते से भटकने का परिणाम मानते हैं। उनका कहना है कि जब तक समाज और शासक वर्ग सतगुरु के बताए मार्ग पर नहीं चलता, तब तक ऐसी घटनाएं बढ़ती रहेंगी।
प्र.3: क्या केवल सैन्य कार्रवाई (जैसे ऑपरेशन सिंदूर) से स्थायी समाधान मिल सकता है??
उ: संत रामपाल जी के अनुसार, सैन्य समाधान अस्थायी हो सकता है, लेकिन स्थायी शांति केवल सतभक्ति और सच्चे ज्ञान से ही संभव है। आध्यात्मिक सुधार के बिना बाहरी संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता।
प्र.4:संत रामपाल जी का सुझाव क्या है ऐसे वैश्विक संकटों के समाधान के लिए?
उ: उनका सुझाव है:सभी राष्ट्र और उनके नागरिक सच्चे सतगुरु की पहचान करें। धार्मिक पाखंड, जात-पात और नफरत को छोड़ें। सतभक्ति करें और पूर्ण ईश्वर को पहचानें। शांति और एकता को बढ़ावा दें, न कि युद्ध और आतंक को।
प्र.5: क्या बलूचिस्तान जैसे क्षेत्रों में भी सतभक्ति से परिवर्तन संभव है?
उ: संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, चाहे क्षेत्र कोई भी हो – बलूचिस्तान हो या कश्मीर, वहां भी अगर लोग सच्चे ज्ञान को अपनाएं, तो आतंक और हिंसा समाप्त हो सकती है। केवल आत्मज्ञान ही सच्चा परिवर्तन ला सकता है।