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Home » लखनऊ को मिला UNESCO का “रचनात्मक गैस्ट्रोनॉमी शहर” टैग: अवधी व्यंजनों की वैश्विक स्वीकृति

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लखनऊ को मिला UNESCO का “रचनात्मक गैस्ट्रोनॉमी शहर” टैग: अवधी व्यंजनों की वैश्विक स्वीकृति

Reetesh Pal
Last updated: November 3, 2025 12:13 pm
Reetesh Pal
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लखनऊ को मिला UNESCO का “रचनात्मक गैस्ट्रोनॉमी शहर” टैग अवधी व्यंजनों की वैश्विक स्वीकृति
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को 31 अक्टूबर 2025 को UNESCO द्वारा “Creative City of Gastronomy” के रूप में मान्यता दी गई। यह सम्मान न केवल लखनऊ की समृद्ध पाक परंपरा को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और खाद्य विरासत को भी नई पहचान देता है। इस घोषणा ने लखनऊ को उन चुनिंदा शहरों की सूची में शामिल कर दिया है जो अपनी रचनात्मक खाद्य संस्कृति के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं।

Contents
  • चयन प्रक्रिया: एक योजनाबद्ध प्रयास
  • अवधी पाक परंपरा: स्वाद से संस्कृति तक
  • वैश्विक मान्यता के लाभ
  • सांस्कृतिक विश्लेषण: भोजन से जुड़ी सामाजिक चेतना
  • सतज्ञान (SatGyan) दृष्टिकोण से विश्लेषण
  • निष्कर्ष

चयन प्रक्रिया: एक योजनाबद्ध प्रयास

लखनऊ को यह टैग मिलने की प्रक्रिया एक सुव्यवस्थित और बहुस्तरीय प्रयास का परिणाम है। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और राज्य सरकार ने लखनऊ की खाद्य पारिस्थितिकी, सांस्कृतिक परंपराओं और पाक विरासत पर आधारित एक विस्तृत डॉसियर तैयार किया। यह डॉसियर जनवरी 2025 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को सौंपा गया, जिसने मार्च 2025 में UNESCO को भारत की ओर से आधिकारिक नामांकन भेजा।

UNESCO की विशेषज्ञ समिति ने लखनऊ की पाक शैली, व्यंजनों की विविधता, स्थानीय खाद्य परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों का गहन विश्लेषण किया। अंततः समरकंद, उज्बेकिस्तान में आयोजित 43वें सत्र में लखनऊ को “Creative City of Gastronomy” घोषित किया गया।

अवधी पाक परंपरा: स्वाद से संस्कृति तक

लखनऊ की पहचान उसकी अवधी पाक शैली से जुड़ी है, जो नवाबी दौर की विरासत को आज भी जीवंत बनाए हुए है। गलौटी कबाब, अवधी बिरयानी, टोकरी चाट, शीरमाल, मक्खन मलाई जैसे व्यंजन न केवल स्वाद में विशिष्ट हैं, बल्कि उनकी तैयारी में भी गहराई और परंपरा का समावेश है।

अवधी शैली में “दम पुख्त” यानी धीमी आंच पर पकाने की तकनीक, मसालों का संतुलित प्रयोग और प्रस्तुति की शाही शैली इसे अन्य पाक परंपराओं से अलग करती है। यहाँ का खानपान केवल भोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुभव है — जिसमें रसोई से संवाद, मेहमाननवाज़ी की परंपरा और सामाजिक समरसता का भाव शामिल है।

वैश्विक मान्यता के लाभ

UNESCO टैग मिलने से लखनऊ को कई स्तरों पर लाभ प्राप्त होंगे:

  • पाक पर्यटन का विस्तार: लखनऊ अब वैश्विक खाद्य-पर्यटन मानचित्र पर एक प्रमुख केंद्र बन सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय पर्यटक यहाँ की पाक संस्कृति का अनुभव लेने आएंगे।
  • स्थानीय उद्यमों को प्रोत्साहन: रेस्तरां, स्ट्रीट फूड विक्रेता, घरेलू खाद्य व्यवसाय और खाद्य स्टार्टअप्स को नई पहचान और बाजार मिलेगा।
  • रोजगार के अवसर: खाद्य उद्योग में प्रशिक्षण, उत्पादन, विपणन और सेवा क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएँ बढ़ेंगी।
  • संरक्षण और नवाचार: पारंपरिक व्यंजनों को संरक्षित करने के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों से उनका नवाचार भी संभव होगा।
  • भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूती: यह टैग भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को सशक्त करता है, जहाँ भोजन एक संवाद का माध्यम बनता है।

सांस्कृतिक विश्लेषण: भोजन से जुड़ी सामाजिक चेतना

लखनऊ को यह टैग केवल स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए नहीं मिला, बल्कि इसलिए कि यहाँ की खाद्य संस्कृति ने सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक संवाद और क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है। यहाँ की पाक शैली शाही और आम दोनों स्तरों पर एक साझा अनुभव प्रस्तुत करती है।

यह मान्यता दर्शाती है कि भोजन केवल पोषण का साधन नहीं, बल्कि स्मृति, रचनात्मकता और सांस्कृतिक पहचान का स्रोत है। जब कोई शहर अपनी खानपान परंपरा को विकास और प्रतिस्पर्धा की शक्ति बनाता है, तब वह आर्थिक और सांस्कृतिक सततता दोनों को प्राप्त करता है।

सतज्ञान (SatGyan) दृष्टिकोण से विश्लेषण

परंतु संत रामपाल जी महाराज जी के अनुसार यह संसार का सुख स्थायी नहीं है, चाहे भोजन का आनंद हो या कोई भौतिक उपलब्धि, सब नश्वर है। असली सुख तो सतलोक में है, जहाँ न बुढ़ापा है, न रोग, न मृत्यु। वहाँ हमारा नौरी (प्रकाशमय) शरीर होता है और पेड़ों से फल तोड़ते ही नए लग जाते हैं। वहाँ तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान हमारी इच्छा से स्वतः प्रकट हो जाते हैं, किसी श्रम या संसाधन की आवश्यकता नहीं।

इसलिए लखनऊ का यह सम्मान हमें यह याद दिलाता है कि भौतिक रचनात्मकता प्रशंसनीय है, परंतु स्थायी सुख का मार्ग केवल परमात्मा के सत्य ज्ञान से ही प्राप्त होता है, जैसा कि संत रामपाल जी महाराज जी ने अपने अमृत वचन में बताया है कि हमारा निजधाम सतलोक ही है। वहाँ वापस जाने हेतु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की शरण में जाकर उनके द्वारा दी गई सच्ची भक्ति का मार्ग अपनाकर ही पहुँचा जा सकता है। इसलिए उनसे नामदीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए विजिट करें संत रामपाल जी महाराज जी यूट्यूब चैनल।

निष्कर्ष

लखनऊ को UNESCO द्वारा “Creative City of Gastronomy” का दर्जा मिलना केवल एक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत है। यह सम्मान लखनऊ की पाक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है और भारत की सांस्कृतिक विविधता को सशक्त बनाता है।

अब लखनऊ के लिए यह अवसर है कि वह अपनी खाद्य परंपरा को संरक्षित करते हुए नवाचार और उद्यमशीलता की दिशा में आगे बढ़े। यह कहानी अब केवल स्वाद की नहीं, बल्कि संस्कृति, समुदाय और रचनात्मकता की भी है — और यही है लखनऊ की असली पहचान।

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Reetesh PalUPSC Aspirant | Graduate in Computer ScienceReetesh Pal is a graduate in Computer Science (B.Sc) with a strong interest in technology, computers, history, politics, geo-politics, defence and security. He has two years of experience in news writing, having worked with SA News. During this time, he has written and reported on current affairs, political developments, defence and international issues. Currently preparing for the UPSC examination, Reetesh continues to expand his expertise in these areas through research, writing and analysis.
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