रक्षाबंधन के दिन हुए एक दर्दनाक हादसे ने परिवार को तोड़कर रख दिया। एक बहन अपने भाई को राखी बांधकर ससुराल वापस लौट रही थी और रास्ते में ही उसकी बहुत दर्दनाक हादसे में मृत्यु हो गई।
एक बहन अपने भाई को राखी बांधकर मायके से ससुराल वापस आ रही थी। वह अपनी एक्टिवा स्कूटी पर सवार थी, तभी पीछे से आ रही कार ने उसे टक्कर मार दी। हादसा इतना भयानक था कि महिला की मौके पर ही मौत हो गई।
यह हादसा शाम को हुआ जब महिला अपने घर वापस आ रही थी। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है। परिजनों को सूचना दे दी गई है और पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया। यह हादसा पंजाब में जालंधर के नकोदर रोड में शाम के समय में हुआ।
इस हादसे से परिवार में कोहराम मच गया। राखी के दिन जो घरों में खुशियों की लहर होनी चाहिए, वहां मातम पसर गया है। पुलिस ने कार चालक को आगे की कार्यवाही के लिए हिरासत में ले लिया।
रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जिसमें बहन भाई को सूत्र बांध कर भाई की रक्षा की कामना करती है और भाई से भी वादा लेती है को भाई हर हाल में मेरी रक्षा करना । राखी के त्योहार का उल्लेख हमारे सनातन धर्म के किसी भी पवित्र शास्त्र में नहीं मिलता है जिस कारण से इसे शास्त्र विरुद्ध साधना कहना गलत नहीं होगा । रक्षा तो केवल पूर्ण परमेश्वर कविर्देव ही कर सकते हैं, उनके अतिरिक्त इस लोक में कोई नहीं कर सकता। यहां तक कि ब्रह्मा विष्णु महेश भी केवल किस्मत का लिखा दे सकते हैं इससे अतिरिक्त न तो वे मृत्यु को टाल सकते हैं और न ही किस्मत से अधिक कुछ दे सकते हैं। जबकि पूर्ण परमेश्वर कबीर साधक को शतायु प्रदान करते हैं, आयु भी बढ़ा सकते हैं, किस्मत में लिखे विधि के विधान को बदल सकते हैं, हादसे मृत्यु आदि को खत्म कर सकते हैं।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 & 24 में गीता ज्ञान दाता अर्जुन को बता रहे है कि शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करने से साधक को किसी प्रकार के सुख की प्राप्ति नहीं होती है, उसकी गती भी नहीं होती है और कोई सीधी भी नहीं होती है। इसलिए हे अर्जुन, कर्तव्य और अकर्तव्य तेरे लिए शास्त्र ही प्रमाण है। अतः पूर्ण तत्वदर्शी संत की शरण में जाएं और उनसे उपदेश लें। वर्तमान में पूर्ण तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हैं। उनसे नामदीक्षा ग्रहण करें और अपना कल्याण करवाएं। इस सत्यभक्ति को करने से साधक के मोक्ष और सुखी जीवन दोनों सुनिश्चित होंगे। मनुष्य जीवन का कर्तव्य बनता है वह आजीवन शास्त्र अनुसार भक्ति में व्यतीत करे जिससे आत्म का परमात्मा से मिलन में कोई भी बाधा उत्पन्न न हो।