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शतरंज की दुनिया में कैसे हुई भारत की एंट्री, जानिए शतरंज खेल का इतिहास

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Last updated: December 16, 2024 1:08 pm
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शतरंज की दुनिया में कैसे हुई भारत की एंट्री, जानिए शतरंज खेल का इतिहास
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भारत के प्रमुख खेलों में से एक ‘शतरंज’ जिसे Chess के नाम से भी जाना जाता है। इस खेल की शुरुआत गुप्त काल में छठी शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में हुई, इस खेल के इतिहास में अनेकों परिवर्तन देखने को मिले जिन्होंने इस खेल को नई दिशा प्रदान की। 

Contents
शतरंज की दुनिया में कैसे हुई भारत की एंट्री, जानिए शतरंज खेल का इतिहासचतुरंग से शतरंज तक: प्राचीन खेल का इतिहासलोकप्रिय खेल शतरंज का सफर: भारत से विश्व तकशतरंज की शुरुआत: कब और कैसे हुईOldest Popular Game: शतरंज की मोहरेंशतरंज के एतिहासिक बदलाव: इतिहास में दर्जभारत में शतरंज की लोकप्रियता: हमारे ऐतिहासिक संबंधक्या है शतरंज के नियमशतरंज के प्रमुख खिलाड़ी: और उनका योगदानराम नाम का खेल खेलने से मिलेंगे सैकड़ों अद्भुत लाभ, घर में होगी बरकत

शतरंज की दुनिया में कैसे हुई भारत की एंट्री, जानिए शतरंज खेल का इतिहास

भारत के प्रमुख खेलों में से एक ‘शतरंज’ जिसे Chess के नाम से भी जाना जाता है। इस खेल की शुरुआत गुप्त काल में छठी शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में हुई, इस खेल के इतिहास में अनेकों परिवर्तन देखने को मिले जिन्होंने इस खेल को नई दिशा प्रदान की। 

चतुरंग से शतरंज तक: प्राचीन खेल का इतिहास

इस खेल को पूर्व में चतुरंग के नाम से जानते थे, यह खेल सेना के चार डिवीजनों पर आधारित होता था जिसमें, घुड़सवार सेना, पैदल सेना, हाथी और रथ सेनाएं शामिल थी।

स्पेन पर मूरिश विजय के बाद, शतरंज दक्षिणी यूरोप में फैल गया तथा यूरोप में 15वीं शताब्दी के बाद शतरंज पूरी तरह विकसित हो गया। 1883 में पहली बार शतरंज घड़ियों का इस्तेमाल किया गया और 1886 में पहली बार विश्व शतरंज चैंपियनशिप आयोजित की गई। उसके बाद धीरे-धीरे 21वीं सदी में शतरंज एक ई-स्पोर्ट बन गया। 

लोकप्रिय खेल शतरंज का सफर: भारत से विश्व तक

शतरंज (Chess) भारतीय इतिहास के सबसे पुराने खेलों में से एक है। फारसी लोगों ने इसे चेस (Chess) नाम दिया। प्राचीन इतिहास में इस खेल को अष्टपद के नाम से भी जाना जाता था। शतरंज का इतिहास तकरीबन 1,500 साल पुराना माना गया है। छठी शताब्दी के दौरान उत्तर भारत में इसकी शुरुआत हुई थी, 1886 में पहली बार विश्व शतरंज चैंपियनशिप आयोजित की गई, उसके बाद यह खेल धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया।

शतरंज की शुरुआत: कब और कैसे हुई

 कहा जाता है कि शतरंज का आधुनिक रूप यूरोप में 15वी शताब्दी के दौरान बना, इस खेल की शुरुआत गुप्त वंश के दौरान छठी शताब्दी के मध्य में भारत में हुई थी, जिसे चतुरंग नाम से जानने लगे। लेकिन दुनिया के अधिकतर इतिहासकार इस खेल को चीन से जन्मा मानते हैं, उनका ये भी मानना है कि फारसीयों ने इस खेल का आविष्कार किया था। सन् 1886 में पहली बार इस खेल का आयोजन किया गया उसके बाद इस खेल ने पूरी दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। 

Oldest Popular Game: शतरंज की मोहरें

छठी शताब्दी के दौरान जब शतरंज खेल की शुरुआत हुई, उस समय कुछ प्रचलित मोहरे जारी की गई जो इस प्रकार है- सफेद राजा,सफेद सैनिक, सफेद ऊंट, काला हाथी, काला वज़ीर या रानी, और काला घोड़ा इन सभी छह प्रकार की मोहरों के द्वारा यह खेल खेला जाता है। 

शतरंज के एतिहासिक बदलाव: इतिहास में दर्ज

15वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में शतरंज के नियमों में बड़ा उलटफेर हुआ। जब यह खेल फारस पहुंचा, तो इसका नाम बदलकर ‘शतरंज’ कर दिया गया। इस खेल का यह शुरुआती और सबसे बड़ा परिवर्तन था। इसके अलावा इसे रानी (क्वीन) और ऊंट (बिशप) की चालों को अधिक शक्तिशाली और आक्रामक बनाया दिया, उसके बाद यह अरब, यूरोप और अन्य क्षेत्रों में फैल गया और अलग-अलग देश में अलग-अलग बदलाव होते चले गए और पारंपरिक खेल के अलावा, ब्लिट्ज, बुलेट और रैपिड फॉर्मेट्स का उभार शतरंज का नया स्वरूप बन गया। वर्ल्ड शतरंज चैंपियनशिप फॉर्मेट में बदलाव तकनीक और AI के साथ शतरंज का भविष्य और भी रोमांचक साबित होगा।

भारत में शतरंज की लोकप्रियता: हमारे ऐतिहासिक संबंध

‘शतरंज’ जिसे पूर्व में कोई जानता भी नहीं था, उत्साही प्रशंसकों की अपार लोकप्रियता तथा असाधारण खिलाड़ियों की बढ़ती संख्या ने अब इस खेल को वैश्विक स्तर पर पहुंचा दिया है।

Also Read: डबल ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट, पिस्टल गर्ल मनु भाकर (Manu Bhaker) की जीवनी तथा उपलब्धियाँ

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए-नए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों ने इस खेल को काफी लोकप्रिय बना दिया। पांच बार के पूर्व विश्व चैंपियन और दुनिया के जाने माने शतरंज ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद और Magnus Carlsen जैसे महान खिलाड़ी जोकि आज काफी चर्चित है। 

क्या है शतरंज के नियम

शतरंज एक ऐसा खेल है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी के पास 16 मोहर होते हैं। तथा प्रत्येक खिलाड़ी के पास सोचने और चाल चलने के लिए 10 मिनट का समय होता है। यह खेल हमेशा सफ़ेद मोहर वाले खिलाड़ी से शुरू किया जाता है। प्रत्येक खिलाड़ी एक के बाद एक करके मोहरों को आगे बढ़ाते हैं।

इस खेल का मकसद प्रतिद्वंद्वी के राजा को चेकमेट करना या गतिरोध पैदा करना होता है। यदि कोई भी खिलाड़ी अपने राजा को चेकमेट नहीं कर पाता है तो वह हार जाता है। और यदि राजा के पास कोई चाल नहीं बचती है और उस पर चेक भी न हो, तो उस स्थिति में खेल को ड्रॉ माना जाता है। खिलाड़ी ड्रॉ का अनुरोध भी कर सकता हैं, लेकिन इसके लिए दोनों खिलाड़ियों की सहमति जरूरी होती है। 

शतरंज के प्रमुख खिलाड़ी: और उनका योगदान

दुनिया के प्रमुख चर्चित खिलाड़ियों में से एक है विश्वनाथ आनंद जो की पांच बार विश्व शतरंज चैंपियनशिप के विजेता रह चुके हैं, 1988 में वे भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने

-2024 के शतरंज चैंपियनशिप विजेता D-gukesh जिन्होंने पिछली बार के वर्ल्ड चैंपियन डिंग लिरेन को करारी शिकस्त दी। 

इसके अलावा मिखाइल बोट्विननिक, कोनेरू हम्पी, निहाल सरीन, अर्जुन एरीगैसी, रोनक साधवानी, SL नारायणन, विदित गुजराती, अरविंद चिदंबरम, पेटाला हरिकृष्णा, आर प्रज्ञानंद जैसे महान खिलाड़ी शामिल है।

राम नाम का खेल खेलने से मिलेंगे सैकड़ों अद्भुत लाभ, घर में होगी बरकत

हमारे पवित्र शास्त्रों में लिखा है कि, मनुष्य जन्म का मिलना बहुत ही दुर्लभ है। यदि मनुष्य जन्म प्राप्त प्राणी पूर्ण परमात्मा की भक्ति नहीं करता है तो उसे अत्यधिक कष्ट झेलने पडते है। सतभक्ति न करने वाले या शास्त्रविरूद्ध साधना करने वाले साधक को यमदूत भुजा पकड़कर यमराज के पास ले जाते हैं, जबकि सतभक्ति करने वाला व्यक्ति पूर्ण परमात्मा कबीर परमेश्वर जी के साथ विमान में बैठकर अविनाशी स्थान यानी सतलोक में चला जाता है।

जहां पर जन्म – मृत्यु, बुढ़ापा तथा किसी भी प्रकार का दुख नहीं है

 इसलिए सांसारिक जीवन के साथ-साथ हमें आध्यात्मिक मार्ग की तरफ भी अग्रसर होना चाहिए, क्योंकि अध्यात्म के बिना मनुष्य जन्म अधूरा माना जाता है। 

पवित्र शास्त्रों में कहा गया है कि 84 लाख योनियों के महाकष्ट झेलने के बाद प्राणी को एक मनुष्य जन्म मिलता है और यह मनुष्य जन्म पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने के लिए ही प्राप्त होता है, ताकि इस 84 लाख के हरहट रूपी चक्कर से छुटकारा मिले और पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो सके।

पूर्ण परमात्मा की सद्भक्ति करने से घर की कलह समाप्त होती है, शारीरिक कष्ट दूर होते हैं साथ ही घर में बरकत होती है, इस प्रकार के लाखों अद्भुत चमत्कार होते हैं। 

इसलिए आप सभी से विनम्र निवेदन है कि जल्द से जल्द जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से नाम दीक्षा ग्रहण करें और अपना कल्याण करवाएं। क्योंकि आज पूरे विश्व में संत रामपाल जी महाराज ही वह तत्वदर्शी संत है जो पवित्र शास्त्रों के अनुसार यथार्थ भक्ति मार्ग बता रहे हैं।

इसी के विषय में कबीर साहिब जी ने पूर्ण सतगुरु के लक्षण इस प्रकार बताए हैं। 

 “कबीर सतगुरु के लक्षण कहूं मधुरे बैन विनोद। 

चार वेद षट शास्त्र कहै 18 बोध।। 

इसके अलावा कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ के पृष्ठ 1960 पर कुछ अमृतवाणियां भी अंकित हैं।

जो पूर्ण सतगुरु होगा उसमें चार मुख्य गुण होते हैं:-

गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना (ज्ञाता)।

दूजे हरि भक्ति मन कर्म बानी, तीसरे समदृष्टि कर जानी।

चौथे वेद विधि सब कर्मा, यह चार गुरु गुण जानो मर्मा।

ये अमृतवाणियां संत रामपाल जी महाराज पर ही खरी उतरती है। 

अधिक जानकारी के लिए पढ़िए पवित्र पुस्तक “ज्ञान गंगा” 

यह पवित्र पुस्तक निशुल्क प्राप्त करने के लिए 8222880541 पर संपर्क करें। 

और visit करें 👉www.jagatgururampalji.org

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