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Scottish Parliament Condemns: दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीनी हस्तक्षेप

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Last updated: June 4, 2025 4:02 pm
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Scottish Parliament Condemns: दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर चीनी हस्तक्षेप
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Scottish Parliament Condemns: ऋषि-मुनियों की धरती भारत ने अनेक बुद्धों (बुद्ध का अर्थ है जागृत, enlightened) को जन्म दिया है। ईसा से लगभग 560 वर्ष पहले शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया। पिछले जन्मों के भक्ति संस्कारों के कारण सिद्धार्थ का मन विषय-भोग में नहीं लगा। एक दिन राज्य में विहार करते समय उन्होंने एक वृद्ध, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत शरीर और एक संन्यासी को देखा, जिसे देखकर उनके अंदर संसार से वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने उसी रात घर त्यागने का निर्णय लिया।

Contents
  • बौद्ध धर्म का विकास
  • तिब्बत में बौद्ध धर्म
  • लामा परंपरा और दलाई लामा की भूमिका
  • चीनी हस्तक्षेप के खिलाफ स्कॉटलैंड की संसद की प्रतिक्रिया
  • सतज्ञान – संत रामपाल जी महाराज की दृष्टि से
  • निष्कर्ष
  • FAQs: स्कॉटलैंड संसद द्वारा तिब्बत और दलाई लामा की पुनर्जन्म पद्धति में चीन को हस्तक्षेप न करने की सलाह

सत्य की तलाश में सिद्धार्थ कई वर्षों तक कथित गुरुओं के पास भटकते रहे, लेकिन उन्हें सत्य का कोई अनुभव नहीं हुआ। अंततः उन्होंने अपना मार्ग स्वयं खोजने का निर्णय लिया और बोधगया में वटवृक्ष के नीचे तप करना प्रारंभ कर दिया। कई वर्षों बाद पूर्णिमा की रात उन्हें एक प्रकाश दिखाई दिया, जिसे उन्होंने परमात्मा का स्वरूप माना। उसी दिन से सिद्धार्थ गौतम ‘बुद्ध’ कहलाए।

कई वर्षों तक जंगल में रहने के बाद बुद्ध बस्ती में लौटे और प्रवचन देना प्रारंभ किया। बुद्ध का ‘मध्यम मार्ग’ आम जनमानस के लिए अधिक व्यावहारिक था। बौद्ध धर्म के विकास में बुद्ध के प्रभावशाली व्यक्तित्व का विशेष योगदान रहा। आम नागरिकों के साथ-साथ राजा बिंबिसार, अशोक और अनेक अन्य महान हस्तियों ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया।

बौद्ध धर्म का विकास

बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित प्राचीन भारत का विश्वविद्यालय ‘नालंदा’ पाँचवीं शताब्दी में गुप्त वंश के राजा कुमारगुप्त प्रथम द्वारा स्थापित किया गया था। यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को दूर देशों तक पहुँचाने का एक प्रमुख माध्यम बना।

प्रारंभिक काल में बौद्ध धर्म में अनेक संप्रदाय विकसित हुए। आरंभिक काल का एकमात्र संप्रदाय जो आज भी विद्यमान है, वह है हीनयान बौद्ध धर्म। यह आज भी श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और कंबोडिया में प्रचलित है।

पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास बौद्ध धर्म का एक नया स्वरूप ‘महायान’ के रूप में उभरा। इसने बौद्ध धर्म में एक नया धार्मिक आदर्श प्रस्तुत किया—‘बोधिसत्व’। यह वह व्यक्ति होता है जो केवल अपने मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए कार्य करता है। यह संप्रदाय चीन, कोरिया और जापान में व्यापक रूप से फैल गया।

बाद में उत्तर भारत में ‘वज्रयान’ या तांत्रिक बौद्ध धर्म की परंपरा उभरी, जो हीरे जैसी स्पष्टता और कठोरता को दर्शाती है। यह परंपरा तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, भूटान और मंगोलिया तक विस्तारित हुई।

तिब्बत में बौद्ध धर्म

तिब्बती बौद्ध धर्म का इतिहास दूसरी शताब्दी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है, जब राजा थोथोरी न्यांत्सेन के शासनकाल में भारत से कुछ बौद्ध ग्रंथ दक्षिणी तिब्बत पहुंचे। तीसरी शताब्दी में उत्तरी तिब्बत में भी इनका प्रसार हुआ, हालांकि उस समय बौद्ध धर्म प्रमुख नहीं था।

641 ईस्वी में राजा सोंगत्सेन गम्पो के शासनकाल में तिब्बत का एकीकरण हुआ। उन्होंने चीन की तांग राजवंश की राजकुमारी वेनचेंग और नेपाल की भृकुटी देवी से विवाह किया, जो दोनों बौद्ध थीं। उनके प्रभाव से बौद्ध धर्म को राज्य धर्म घोषित किया गया। 108 बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया गया। हालांकि, बॉन धर्म के साथ प्रतिस्पर्धा भी लंबे समय तक बनी रही।

774 ईस्वी में ऋषि पद्मसंभव को राजा त्रिसोंग देत्सेन ने तिब्बत आमंत्रित किया। उन्होंने बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती में अनुवाद किया और तांत्रिक बौद्ध धर्म को स्थानीय बॉन परंपराओं से जोड़ा। उन्होंने ‘निंग्मा’ नामक प्रथम तिब्बती बौद्ध स्कूल की स्थापना की।

बाद में महान विद्वान अतीशा का आगमन हुआ, जिनके शिष्य ड्रोमटन ने ‘कदमपा’ नामक एक और परंपरा की स्थापना की। 11वीं शताब्दी के बाद शाक्य, काग्यू और गेलुग संप्रदायों का भी उदय हुआ।

लामा परंपरा और दलाई लामा की भूमिका

“लामा” शब्द संस्कृत के “गुरु” शब्द के समकक्ष है। लामाओं को ज्ञान, साधना और मार्गदर्शन का प्रतीक माना जाता है। इनका विशेष महत्त्व वज्रयान परंपरा में है। दलाई लामा और पंचेन लामा इनमें प्रमुख हैं। दलाई लामा को अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का अवतार माना जाता है।

दलाई लामा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से राजनीतिक नेता भी रहे हैं। 17वीं शताब्दी में पाँचवें दलाई लामा ने “चोसी” प्रणाली स्थापित की, जिसमें धर्म और राजनीति का एकीकरण हुआ।

1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य नियंत्रण स्थापित कर लिया, जिससे 1959 में 14वें दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो को भारत में शरण लेनी पड़ी। उन्होंने धर्मशाला में निर्वासित सरकार स्थापित की और ‘मध्य मार्ग’ का दृष्टिकोण अपनाया—तिब्बत की स्वतंत्रता नहीं, पर सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता की मांग।

1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला। 2011 में उन्होंने राजनीति से संन्यास लेकर निर्वासित सरकार को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों को सौंप दिया।

चीनी हस्तक्षेप के खिलाफ स्कॉटलैंड की संसद की प्रतिक्रिया

स्कॉटिश सरकार ने 14वें दलाई लामा के पुनर्जन्म में चीन के हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हुए तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के समर्थन की पुष्टि की है। 2025 में स्कॉटिश सांसद रॉस जॉन ग्रीर सहित प्रतिनिधिमंडल ने धर्मशाला स्थित निर्वासित तिब्बती संसद का दौरा किया।

उन्होंने चीन के श्वेत पत्र की आलोचना की, जिसमें पुनर्जन्म प्रक्रिया पर चीनी नियंत्रण का दावा किया गया था। निर्वासित संसद के अध्यक्ष खेनपो सोनम टेनफेल ने इसे धार्मिक परंपरा में अनावश्यक हस्तक्षेप बताया और चीन के आरोपों को झूठा करार दिया।

पहले भी, 2015 में स्कॉटिश संसद के 42 सदस्यों ने ‘I Stand with Tibet’ याचिका पर हस्ताक्षर कर तिब्बती अधिकारों के समर्थन में एकजुटता दिखाई थी।

सतज्ञान – संत रामपाल जी महाराज की दृष्टि से

संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि सिद्धार्थ ने सत्य की खोज में घर छोड़ा, लेकिन सच्चा ज्ञान बताता है कि परमात्मा घर पर रहकर भी प्राप्त किया जा सकता है।

“डेरे डांडे खुश रहो, खुसरे लह ना मोक्ष।

ध्रुव प्रहलाद उधर गए, फिर डेरे में क्या दोष।।”

परमात्मा का वह देश जहाँ केवल सच्चे नाम के जाप से पहुँचा जा सकता है, संत गरीबदास जी ने वर्णित किया:

“चल देखो देश हमारा रे, जहाँ कोटि पदम उजियारा रे…”

“संतो सो सतगुरु मोहि भावे, जो नैनन अलख लखावै।

आंख न मूंदे, कान न रुंधे, ना अनहद उलझावै।

योग युक्त क्रियाओं से न्यारा, सहज समाधि बतावै।।”

और जानें: www.jagatgururampalji.org

निष्कर्ष

स्कॉटलैंड संसद द्वारा तिब्बती धार्मिक मामलों में चीन के हस्तक्षेप को अस्वीकार करना एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संकेत है। यह न केवल तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि यह वैश्विक समुदाय को यह भी दर्शाता है कि धार्मिक परंपराओं में राजनीतिक दखल अस्वीकार्य है। यह निर्णय तिब्बती संघर्ष के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन का एक सशक्त उदाहरण है।

FAQs: स्कॉटलैंड संसद द्वारा तिब्बत और दलाई लामा की पुनर्जन्म पद्धति में चीन को हस्तक्षेप न करने की सलाह

प्र.1: दलाई लामा ने तिब्बत क्यों छोड़ा था?

उ: दलाई लामा को 1959 में चीनी कब्जे के खिलाफ़ तिब्बती विद्रोह के विफल होने के बाद तिब्बत से निर्वासित कर दिया गया था।

प्र.2: वर्तमान में दलाई लामा कौन हैं?

उ: वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं, जो भारत में शरणार्थी के रूप में निर्वासन में रहते हैं। जिन्हें करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है।

प्र.3: तिब्बत के धर्म गुरु कौन थे?

उ: तिब्बत का धर्म गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) को कहा जाता है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग (Gelug) संप्रदाय का सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता है।

प्र.4: वज्रयान के 4 स्कूल कौन से हैं?

उ: तिब्बती बौद्ध धर्म के भीतर, चार मुख्य विद्यालय हैं: न्यिंगमा (प्रारंभिक अनुवाद परंपरा), काग्यू (मौखिक परंपरा), शाक्य (“ग्रे अर्थ” परंपरा), और गेलुग (मठवासी परंपरा)।

प्र.5: भारत में सबसे ज्यादा तिब्बती कहां रहते हैं?

उ: 1959 से लगभग 1,00,000 तिब्बती भारत में निर्वासन में रह रहे हैं, जिनमें से अधिकांश धर्मशाला और बायलाकुप्पे जैसे तिब्बती परिक्षेत्रों में रह रहे हैं।

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