जिस प्रकार दिन के बाद रात आती है, और रात के बाद दिन, उसी प्रकार वर्ष भी बदलता है। 2024 समाप्त हुआ और 2025 प्रारंभ हो चुका है। इस बदलाव में क्या बदला? क्या पाया, क्या खोया? समय का चक्र निरंतर गतिमान है। इस बदलाव में लोगों ने काफी योजनाएं बनाई, जीवन में बदलाव लाने की। बहुतों ने जश्न मनाया। क्या समय रुक गया? आया बदलाव? कुछ नहीं, बस समय की दौड़ गति दर गति अनवरत जारी है,और रहेगा!
इस मानव जीवन का मूल उद्देश्य क्या हमें समझ आया?
क्या खोया, क्या पाया? आइए जानें कि जीवन कितना महत्वपूर्ण है, इसकी भूमिका क्या होनी चाहिए? क्यों मिला है यह मानव देह?
परमात्मा कहते हैं:
सत्संग में न जाने से हम भूल जाते हैं कि:
“पशु के चाम की जूती बन जाए नौबत और नगाड़े।
मानव देह किसी काम न आए, जल भुन हो जाए छारे।”
पशुओं की खाल तो उपयोग में आ जाती है, पर यह मानव देह एक बार चला गया, तो इसका कोई मूल्य नहीं है।
इसलिए परमात्मा की भक्ति अवश्य करनी चाहिए। कहते हैं:
“मानुष जनम पायकर जो नहीं रटे हरि नाम।
जैसे कुआं जल बिना, फिर बनवाया क्या काम।”
सिमरन अवश्य करनी चाहिए। हरि भजन, सच्चे सतगुरु से दीक्षा प्राप्त कर जीवन मार्ग पर आगे बढ़ने से सारी बाधाएं समाप्त होती हैं और जीवन का मार्ग सुगम हो जाता है।
समय बीत रहा है…
सत्संग में क्यों जाना चाहिए, इस पर भी परमात्मा बताते हैं:
“मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारंबार।
तरुवर से पत्ता टूट गया, बहुर न लगता डार।”
अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ के कामों में लगाकर गंवा बैठे हैं। हमें सत्संग करना चाहिए, परमात्मा का गुणगान करना चाहिए।
नव वर्ष पर लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन का मूल उद्देश्य क्या है।
सिर्फ यह सोचते हैं कि क्या पहनें, क्या खाएं, क्या गिफ्ट दें, क्या संकल्प लें, नाचना, गाना, कौन सी पुस्तकें पढ़ें, कहां घूमने जाएं, पिकनिक, पार्टी, नशापान आदि।
परमात्मा की वाणी कहती है:
“ना जाने काल की कर डारे, किस विद ढल जाए पासा वे।
जिन्हां दे सिर पे मौत खुड़कड़ी, उन्हानु केड़ा हांसा वे।”
अपना समय अकारथ में गंवा रहे हो और समय निरंतर बीत रहा है।
अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ के कामों में लगाकर गंवा बैठे हैं। हमें सत्संग करना चाहिए, परमात्मा का गुणगान करना चाहिए।
आगे बताते हैं:
विचार करो, ये सुख आज कुत्ते के जन्म में भी प्राप्त हो सकता है। आज कुत्ते के जन्म में भी एसी और गाड़ियों का सुख है। अगर भक्ति नहीं की, तो 84 लाख योनियों का कष्ट तैयार है—गधे, कुत्ते, सूअर और न जाने कितने जन्मों का कष्ट सहना पड़ेगा।
“मन तू सुख के सागर बस रे, और न ऐसा यस रे…”
सत्संग में जाने से ही ज्ञान होता है और वह सत्संग हमें सतगुरु से ही प्राप्त होता है:
“तीन लोक और भवन चतुर्दश, कोई नहीं सत्संगी।
सतगुरु मिले तो इच्छा मिटे, पद मिले पदे समाना।”
सत्संग केवल सच्चे सतगुरु के पास है, जो सिर्फ तत्वदर्शी संत हैं। गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 1 से 3 तक में उनके बारे में बताया गया है। और वह संत रामपाल जी महाराज ही हैं, जिनके लाखों-करोड़ों अनुयायियों को अलौकिक लाभ सहज ही प्राप्त हो चुके हैं। लाइलाज बीमारियों से निदान मिला है। नशा चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, सभी से छुटकारा मिला है।
नकलियों ने तो पूरा ज्ञान उलझा दिया था, जिसे आज संत रामपाल जी महाराज ने अपने तत्वज्ञान से सुलझा कर आपके सामने रख दिया है। जरूरत है तो बस उसे समझने की।
कहते हैं:
“गुरुवा गाम बिगाड़े, संतों गुरुवा गाम बिगाड़े।
ऐसे रोग जीव के लादिए, इब झड़े न झाड़े।”
अन्य नकली धर्मगुरुओं के पास दान-धर्म के नाम पर अपना अनमोल मानव जीवन व्यर्थ न करें।
समय बीत रहा है…
संत रामपाल जी महाराज से उपदेश प्राप्त कर अपना और अपनों का कल्याण कराएं।
उनके ज्ञान को समझने के लिए संत रामपाल जी महाराज ऐप डाउनलोड करें और वेबसाइट www.jagatgururampalji.org पर विजिट करें।