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क्या गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही है? विशेषज्ञों की राय

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Last updated: July 4, 2025 1:11 pm
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क्या गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही है? विशेषज्ञों की राय
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ऑनलाइन गेमिंग का चलन आज के युवाओं से लेकर बच्चों और वयस्कों तक, तेजी से बढ़ रहा है। मोबाइल, लैपटॉप और हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुंच ने हर किसी को गेमिंग का हिस्सा बना दिया है। PUBG, Call of Duty, Free Fire, Minecraft और Fortnite जैसे गेम्स ने मनोरंजन की परिभाषा ही बदल दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक है या नहीं?

Contents
ऑनलाइन गेमिंग के संभावित फायदे (Pros of Online Gaming)ऑनलाइन गेमिंग के नुकसान (Cons of Online Gaming)लत और कम्पल्सिव व्यवहारनींद और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावितमानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावआक्रामक व्यवहार में वृद्धिशारीरिक स्वास्थ्य को खतराजुआ और इन-गेम खरीददारीसाइबर धमकियाँ और उचित सामग्री की कमीभारत में गेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थितिबच्चों और किशोरों पर असर ताजा आंकड़े और रिपोर्ट्स क्या करें? संतुलन कैसे बनाएँ?विशेषज्ञों की रायऑनलाइन गेमिंग से बाहर निकालने वाला आध्यात्मिक उपायक्या गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही है? विशेषज्ञों की राय: पर FAQs Q2. गेमिंग डिसऑर्डर क्या होता है?Q3. क्या बच्चों में गेमिंग की लत एक मानसिक विकार है?Q4. गेमिंग की लत से बचने के लिए क्या उपाय अपनाएं?

यह लेख इसी गंभीर विषय पर आधारित है — ऑनलाइन गेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य का गहरा संबंध। आइए समझते हैं इसके फायदे, नुकसान, और संतुलन बनाए रखने के उपाय, ताकि हम अपने और अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रख सकें।

ऑनलाइन गेमिंग के संभावित फायदे (Pros of Online Gaming)

ऑनलाइन गेमिंग के कुछ सीमित फायदे हैं । कुछ रणनीतिक गेम्स (जैसे सुडोकू आदि) से समस्या सुलझाने की क्षमता और निर्णय लेने की कला में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, मल्टीप्लेयर गेम्स से दोस्ती बढ़ती है और डिजिटल दुनिया में नेटवर्किंग का मौका मिलता है। परंतु ये लाभ तभी हैं जब गेमिंग सीमित समय और सकारात्मक उद्देश्य के साथ की जाए। हालांकि फायदे गिने-चुने हैं, लेकिन नुकसान कहीं ज़्यादा हैं।

Also Read: स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से पेरेंट्स और बच्चों के रिश्तों में बढ़ रहा तनाव

इसके विपरीत, ऑफलाइन गेमिंग — जैसे कबड्डी, क्रिकेट, बैडमिंटन, लुका-छुपी, आदि — शरीर को सक्रिय रखती है और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देती है। ये खेल न केवल फिजिकल हेल्थ सुधारते हैं, बल्कि बच्चों में टीम वर्क, लीडरशिप, अनुशासन और धैर्य जैसे गुण भी विकसित करते हैं। ऑफलाइन गेम्स से आंखों पर जोर नहीं पड़ता और ये प्राकृतिक वातावरण में खेलने का अवसर भी देते हैं, जिससे मन प्रसन्न रहता है, तनाव कम रहता है और मानसिक शांति बनी रहती है।

ऑनलाइन गेमिंग के नुकसान (Cons of Online Gaming)

लत और कम्पल्सिव व्यवहार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने “gaming disorder” को आधिकारिक मानसिक विकार के रूप में मान्यता दी है जो दिन-प्रतिदिन की जिंदगी को प्रभावित कर सकता है।
रांची के 14 साल के बच्चे का केस–बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है: गेमिंग डिसॉर्डर से सामाजिक अलगाव, पढ़ाई में गिरावट, चिड़चिड़ापन और अवसाद जैसी समस्याएँ सामने आती हैं।

नींद और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित

रात में देर तक खेलना नींद चक्र को बिगाड़ता है, जिसके कारण आंखों में तनाव, सिरदर्द, मोटापा और शारीरिक कमजोरी जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
2009 में PLOS One के एक अध्ययन में यह दिखाया गया कि अचानक ट्रॉमा के बाद ‘Tetris’ खेलने से PTSD जैसे फ्लैशबैक में कमी आती है, लेकिन लगातार गेमिंग कभी-कभी इसके विपरीत असर भी दिखाती है।

मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

WHO ने “Gaming Disorder” को मानसिक बीमारी की श्रेणी में शामिल किया है। इससे डिप्रेशन, एंग्जायटी, अकेलापन, और सोशल विथड्रॉवल जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
Source: WHO: Gaming Disorder

आक्रामक व्यवहार में वृद्धि

एक्सपोज़र टू वॉयलेंट गेम्स बच्चों के व्यवहार में आक्रामकता और असंवेदनशीलता बढ़ा सकता है। इसके कारण कई बच्चों में सामाजिक समर्पण की भावना कम हो जाती है।

शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा

लंबे समय तक बैठने, फिजिकल एक्टिविटी की कमी और आंखों पर लगातार स्क्रीन का दबाव शारीरिक रूप से भी नुकसानदेह होता है। इससे मोटापा, आंखों की थकान और गर्दन दर्द जैसी समस्याएं सामने आती हैं।

जुआ और इन-गेम खरीददारी

“Loot boxes” और माईक्रोट्रांजक्शन में हो रही अत्यधिक खर्चीली खरीद मानसिक तनाव, आवेग प्रवृत्ति और भविष्य में जुआ की आदत को बढ़ा सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के एक अध्ययन में दिखा कि लूट बॉक्स ख़रीदने से चिंता, तनाव, इम्पल्सिविटी सहित कई समस्याएँ गहराई से जुड़ी हुई हैं ।

साइबर धमकियाँ और उचित सामग्री की कमी

ऑनलाइन गेम्स में अनमॉडरेटेड चैट, बयाबान भद्दी भाषा और धोखाधड़ी की आशंका बनी रहती है।

भारत में गेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति

भारत में 2025 तक गेमर्स की संख्या 700 मिलियन पार करने का अनुमान है। COVID-19 के बाद गेमिंग में जबरदस्त उछाल आया है, लेकिन इसके साथ ही डिजिटल डिपेंडेंसी भी बढ़ी है। कई मनोवैज्ञानिकों और बाल चिकित्सकों ने इसके गंभीर परिणामों की ओर इशारा किया है।

बच्चों और किशोरों पर असर 

बच्चे और किशोर तेजी से ऑनलाइन गेमिंग की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन गिर सकता है, परिवार से दूरी बढ़ती है, और आक्रामकता जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ सकती हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें और समयसीमा निर्धारित करें।

ताजा आंकड़े और रिपोर्ट्स 

  • Statista (2024) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 15-35 आयु वर्ग के 40% युवा नियमित रूप से ऑनलाइन गेम खेलते हैं।
  • National Institute of Mental Health का मानना है कि अत्यधिक गेमिंग करने वाले युवाओं में अवसाद और चिंता के लक्षण 35% ज्यादा पाए जाते हैं।
  • WHO (2022) ने “Gaming Disorder” को मानसिक विकार के रूप में घोषित किया।

क्या करें? संतुलन कैसे बनाएँ?

  1. स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखें — WHO के अनुसार, बच्चों को दिन में 1 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए।
  2. शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें — आउटडोर गेम्स और योग को जीवन में शामिल करें।
  3. परिवार के साथ संवाद बनाए रखें — बच्चों से बात करें कि वे क्या खेलते हैं, कितनी देर तक और किसके साथ।
  4. स्लीप रूटीन को नियमित करें — सोने से पहले गेमिंग पूरी तरह बंद करें।
  5. डिजिटल डिटॉक्स करें — हफ्ते में कम से कम एक दिन गेमिंग से पूरी तरह दूर रहें।

विशेषज्ञों की राय

  • WHO और American Psychiatric Association जैसी संस्थाओं ने गेमिंग एडिक्शन को मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में सूचीबद्ध किया है।
  • वायर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, कई मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर अब गेम्स को थेरेपी का हिस्सा मानते हैं, बशर्ते संतुलन बनाए रखा जाए।
  • Flinders University के Zsolt Demetrovics जैसे विशेषज्ञ का कहना है कि इन गेम तत्वों में लचीलापन, नियम और संरचनात्मक पथ-निर्देश की कमी हो सकती है, जिससे बच्चों पर इसके दीर्घकालीन प्रभाव चिंताजनक हो सकते हैं।
  • Internet Matters की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि बच्चों को मॉनिटर करना चाहिए, इन-गेम खरीद पर नियंत्रण रखना चाहिए।

ऑनलाइन गेमिंग से बाहर निकालने वाला आध्यात्मिक उपाय

संत रामपाल जी महाराज जी का ज्ञान यह सिखाता है कि मानव जीवन का उद्देश्य केवल मनोरंजन या भौतिक सुखों की पूर्ति नहीं है, बल्कि आत्मा का उद्धार और परमात्मा की प्राप्ति है। जहां ऑनलाइन गेमिंग एक अस्थायी आनंद देता है, वहीं सतभक्ति आत्मा को स्थायी सुख प्रदान करती है।

संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि आज का मानव आध्यात्मिक ज्ञान से दूर होने के कारण बाह्य साधनों में आनंद ढूंढ़ता है, जो अस्थायी है। यह मानसिक विकारों को जन्म देता है। परंतु जब व्यक्ति “सतगुरु” के मार्गदर्शन में आकर सत्यभक्ति करता है, तो उसके जीवन में संयम, ध्यान और आत्मिक शांति का संचार होता है।

इसलिए अगर हम वास्तव में मानसिक शांति और संतुलन चाहते हैं तो हमें सतभक्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए। सत्य साधना के माध्यम से व्यक्ति अपनी गलत आदतों को त्याग सकता है और जीवन को एक सकारात्मक दिशा दे सकता है। जो युवा आज गेमिंग की लत में फंस गए हैं, उनके लिए यह ईश्वर से जुड़ने और जीवन को एक नया मोड़ देने का सर्वोत्तम उपाय है।

👉 सतभक्ति व सच्चे ज्ञान के लिए देखें:

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क्या गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही है? विशेषज्ञों की राय: पर FAQs 

Q1. क्या ऑनलाइन गेमिंग मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है?

हां, लगातार और असंतुलित गेमिंग मानसिक तनाव, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन और सामाजिक अलगाव जैसी मानसिक समस्याएं पैदा कर सकती है।

Q2. गेमिंग डिसऑर्डर क्या होता है?

यह एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति गेमिंग को अपनी ज़िंदगी का केंद्र बना लेता है और अन्य ज़रूरी कार्यों की उपेक्षा करने लगता है। इसे WHO ने मान्यता दी है।

Q3. क्या बच्चों में गेमिंग की लत एक मानसिक विकार है?

जी हां, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने “Gaming Disorder” को मानसिक विकार के रूप में मान्यता दी है, जो विशेष रूप से बच्चों और किशोरों में देखा जा रहा है।

Q4. गेमिंग की लत से बचने के लिए क्या उपाय अपनाएं?

गेमिंग का समय सीमित करें, भक्ति और सत्संग को जीवन में शामिल करें, पारिवारिक संवाद बढ़ाएं, और मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव पर विशेषज्ञ से परामर्श लें।

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