हम सभी ने अपनी छोटी कक्षाओं में पढ़ा है कि जिस रफ्तार से हम जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, डीजल का उपयोग कर रहे हैं, वे जल्द ही समाप्त हो जाएंगे। साथ ही, इनके उपयोग से पर्यावरण को होने वाले गंभीर नुकसान की जानकारी भी मिली है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से पर्यावरण में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या तेजी से बढ़ रही है।
ऐसे में सरकार और वैज्ञानिक सतत नए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज में जुटे हैं, जो ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी करें। बढ़ते प्रदूषण को कम करने हेतु भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर मिशन की शुरुआत की है, जिससे भविष्य में ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके और पर्यावरण भी स्वच्छ व स्वस्थ बना रहे। आइए, जानते हैं क्या है ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर, इसकी चुनौतियां और इसके लाभ।
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर?
‘ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर’ का मतलब है वर्तमान परिदृश्य में एक ऐसा नेटवर्क तंत्र तैयार करना, जिसमें औद्योगिक केंद्र, परिवहन प्रणाली, भंडारण सुविधाएँ और निर्यात के मार्ग एक-दूसरे से जुड़े हों। इसमें न केवल रेल और समुद्र आधारित परिवहन तथा पाइपलाइन शामिल हैं, बल्कि आधुनिक डिजिटल कनेक्टिविटी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इसका उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन को उस क्षेत्र तक पहुँचाना है जहाँ वर्तमान समय में इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है — जैसे इस्पात उद्योग, कृषि उर्वरक, रसायन, रिफाइनरी और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार।
वर्तमान भारत में यह कॉरिडोर उन क्षेत्रों से शुरू होगा जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता अधिक है, जैसे गुजरात राज्य (मुंद्रा, कांडला), आंध्र प्रदेश (काकीनाडा), ओडिशा (पारादीप) और तमिलनाडु (तूतीकोरिन)।
इन स्थानों से ग्रीन हाइड्रोजन को कार्गो जहाज़, रेल और पाइपलाइन के माध्यम से बड़े उपभोक्ता उद्योगों और निर्यात केन्द्रों तक पहुँचाया जाएगा
भारत में मिशन की पृष्ठभूमि
भारत ने पहली बार जनवरी 2023 में राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (NGHM) लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य सन् 2030 तक हर वर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
इसके लिए लगभग ₹19,744 करोड़ का निवेश प्रस्तावित किया गया है।
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के उद्देश्य?
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य न सिर्फ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है, बल्कि प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ रोजगार वृद्धि पर भी जोर दिया जा रहा है। आइए जानते हैं ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के मुख्य उद्देश्य।
- ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: पेट्रोलियम और गैस पर निर्भरता घटाना।
- शुद्ध प्राकृतिक पर्यावरण: कार्बन उत्सर्जन को तेजी से कम करना।
- नई इंडस्ट्रीज: ग्रीन टेक्नोलॉजी आधारित उत्पादन हब बनाना।
- नए रोज़गार निर्माण: अनुमानित 6 लाख से अधिक नौकरियाँ।
- निर्यात क्षमता: भारत को ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाकर यूरोप और एशिया महाद्वीप को भी आपूर्ति करना।
भारत सरकार के नीति आयोग की रिपोर्टों में 2022 से ही “ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर” की सिफारिश की गई थी, लेकिन अब भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय मिशन के साथ जोड़कर लागू करने की प्रक्रिया तेज कर दी है।
किस तरह के कॉरिडोर हो रहे विकसित?
भारत में मुख्य रूप से निम्न प्रकार के कॉरिडोर विकसित किया जा रहे है:
- नदी-समुद्र-रेल कॉरिडोर: बड़े बंदरगाहों जैसे डींदयाल (कांडला), पारादीप और वी.ओ. चिदंबरनार (तूतीकोरिन) को हाइड्रोजन हब के रूप में निर्माण किया जा रहा है, जहाँ पर हाइड्रोजन भंडारण, कंटेनर टर्मिनल और जहाज़ फ्यूलिंग की सुविधाएँ भी बनेंगी।
- ग्रीन एनर्जी डिजिटल कॉरिडोर: जो कि गुजरात से सिंगापुर तक डिजिटल और ऊर्जा एक्सचेंज की साझेदारी पर काम कर रहा है। यह कॉरिडोर सिर्फ भौतिक आपूर्ति ही नहीं करेगा बल्कि वर्तमान परिदृश्य में निवेश और तकनीकी आदान-प्रदान को भी आसान बनाएगा।
- भारत, मध्य पूर्व और यूरोप IMEC को जोड़ने वाले इस बड़े कॉरिडोर में आधुनिक रेल, पाइपलाइन और समुद्री मार्ग के साथ डिजिटल केबल भी शामिल हैं। इसका एक प्रमुख कार्य ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया का निर्यात है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
वर्तमान में भारत ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर को वैश्विक स्तर पर भी जोड़ रहा है, जिसमें निम्न कॉरिडोर शामिल हैं:
- भारत–सिंगापुर कॉरिडोर: तूतीकोरिन और पारादीप से ग्रीन हाइड्रोजन की आपूर्ति पर विस्तृत चर्चा।
- भारत–नीदरलैंड (रॉटरडैम पोर्ट) सहयोग: यूरोप के लिए निर्यात हब।
- भारत–फ्रांस की साझेदारी: IMEC (International Manufacturing Energy Cooperation) के तहत डिजिटल तकनीकी और वित्तीय सहयोग।
इस तरह से भारत न केवल घरेलू ज़रूरतें ही नहीं पूरी करेगा, बल्कि विश्व स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति में भी अग्रणी बनेगा।
क्या है चुनौतियाँ?
हालाँकि यह प्रोजेक्ट महत्वाकांक्षी है, लेकिन वर्तमान समय में इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं:
- इलेक्ट्रोलाइज़र (विद्युत अपघटक) और स्टोरेज टेक्नोलॉजी की ऊँची लागत।
- बड़े पैमाने पर नवीनीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता।
- ट्रांसपोर्ट और सुरक्षा से जुड़े मानक।
- इंटरनेशनल बाज़ार में प्रतिस्पर्धा (जैसे सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया)।
पर्यावरण पर प्रभाव
भारत का ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर मिशन ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ा निर्णायक कदम है। यह न केवल कार्बन उत्सर्जन कम करेगा, बल्कि भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और विश्व पटल पर निर्यात केंद्र भी बनाएगा।
सन 2030 तक, जब यह कॉरिडोर पूरी तरह विकसित हो जाएगा, तब भारत केवल अपनी घरेलू ज़रूरतें ही पूरी नहीं करेगा, बल्कि यूरोप और एशिया जैसे ऊर्जा-आश्रित देशों के लिए भी एक भरोसेमंद निर्यातक बनेगा। यह मिशन आने वाले वर्षों में भारत को “ग्रीन एनर्जी हब” के रूप में स्थापित करने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है।
कैसे होगा सच्चा पर्यावरण संतुलन?
सच्चा पर्यावरण संतुलन तभी संभव है, जब मानव समाज केवल तकनीकी प्रगति पर ही नहीं, बल्कि वर्तमान समय में आध्यात्मिक चेतना पर भी ध्यान दे।
संत रामपाल जी महाराज जी बताते है कि कलयुग में सतयुग की शुरुआत केवल सतभक्ति से ही संभव है। संत रामपाल जी महाराज बताते है कि जब सभी जीव परमेश्वर की सतभक्ति करेंगे तब धरती पर पुनः सतयुग जैसा माहौल स्थापित होगा। पूरी पृथ्वी हरी-भरी होगी, फलदार वृक्षों की संख्या बढ़ेगी। अपने बच्चों के लिए सर्व सुख- सुविधा परमात्मा प्रदान करेंगें।
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