- जुगनू सिर्फ कल्पना नहीं, पर्यावरण का अहम हिस्सा हैं वे पारिस्थितिकी तंत्र में कीट नियंत्रण और जैव विविधता के संकेतक होते हैं।
- जुगनुओं की संख्या तेज़ी से घट रही है।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वे निकट भविष्य में विलुप्त हो सकते हैं।
- प्राकृतिक आवास का नुकसान जैसे खेत, जंगल और दलदली ज़मीनें नष्ट हो रही हैं।
- कृत्रिम रोशनी उनकी प्रजनन प्रक्रिया में बाधा डालती है।
- कीटनाशकों और रसायनों का अत्यधिक उपयोग, इनसे जुगनुओं के अंडे और लार्वा नष्ट हो जाते हैं।
- मौसम की अस्थिरता उनके जीवन चक्र को प्रभावित करती है।
- विकास के नाम पर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र खत्म हो रहा है।
- भविष्य में केवल किताबों और स्क्रीन पर रह जाएंगे जुगनू। अगली पीढ़ियाँ जुगनू को असल में नहीं देख पाएंगी।
- आवासों की रक्षा, प्रकाश नियंत्रित करना और कीटनाशकों पर रोक। हम “जुगनू देखने वाली अंतिम पीढ़ी” बन सकते हैं।
प्रकृति की सुंदरता संकट में
जुगनू सिर्फ बच्चों की कहानियों या कविताओं का हिस्सा नहीं हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। खेतों, जंगलों और दलदली क्षेत्रों में पनपने वाले ये कीट कीटनाशकों के उपयोग, शहरीकरण और अत्यधिक प्रकाश प्रदूषण के कारण तेजी से लुप्त हो रहे हैं।
जुगुनू के अस्तित्व पर मंडराता खतरा प्रकाश प्रदूषण
समस्या का एक महत्वपूर्ण पहलू प्रकाश प्रदूषण भी है। जुगनुओं की लगभग तीन-चौथाई प्रजातियाँ रात्रिचर होती हैं, यानी वे रात में सक्रिय रहती हैं। मादा और नर दोनों जुगनू अपनी चमकती हुई रोशनी का उपयोग आपसी संवाद, साथी खोजने, घुसपैठियों को दूर रखने और अपने इलाके को चिह्नित करने के लिए करते हैं।
प्रजातियों के अनुसार, ये चमकदार संदेश कभी-कभी हज़ारों कीड़ों के विशाल समूहों में समन्वित रूप से प्रकाशित होते हैं, जो एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य बनाते हैं।
लेकिन वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि कृत्रिम रोशनी ,चाहे वह स्थायी हो, जैसे स्ट्रीट लाइट्स या घर की लाइटें, या अस्थायी, जैसे गाड़ियों की हेडलाइट्स, इन जुगनुओं के लिए आपसी संवाद को बेहद कठिन बना देती हैं। जब नर और मादा जुगनू कृत्रिम रोशनी के कारण एक-दूसरे को पहचान नहीं पाते, तो उनका संभोग बाधित होता है। इसका सीधा असर अगली पीढ़ी के जन्म पर पड़ता है ,जो कि कभी हो ही नहीं पाता।
कुछ जुगनू प्रजातियों को तो संभोग के लिए पूर्ण अंधकार की आवश्यकता होती है, और कृत्रिम प्रकाश से वे पूरी तरह दूर हो जाती हैं। इस प्रकार, प्रकाश प्रदूषण न केवल उनके प्राकृतिक व्यवहार को प्रभावित करता है, बल्कि उनके अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है।
खाद, कीटनाशक और बदलता मौसम: जुगनुओं के अस्तित्व की चुनौती
रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने न केवल जुगनुओं की भोजन शृंखला को प्रभावित किया है, बल्कि उनके लार्वा के विकास को भी बाधित कर दिया है। तेज़ी से बदलते मौसम तथा असामान्य तापमान के प्रकोप की कीमत ये नन्हें कीट भी चुका रहे हैं। जलवायु परिवर्तन ने इनके जीवन चक्र को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है।
जुगनुओं पर शोध की गंभीर चेतावनी: पर्यावरणीय बदलाव बना खतरा
राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र, चेन्नई द्वारा वर्ष 2022 में किए गए शोध में यह सामने आया कि कृत्रिम रोशनी जुगनुओं की प्रजनन प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डाल रही है। इसके साथ ही छह महीने पहले पेन स्टेट यूनिवर्सिटी, केंटकी विश्वविद्यालय, अमेरिकी कृषि अनुसंधान सेवा और बकनेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भी जुगनुओं पर मंडराते संकट को रेखांकित किया था।
शोध से यह भी पता चला कि जुगनुओं की जीवन-चक्र की विभिन्न अवस्थाओं जैसे अंडे, लार्वा और प्यूपा के लिए खास मौसम की ज़रूरत होती है। परंतु बढ़ते वैश्विक तापमान और बदलते मानसून चक्र ने इन आदर्श परिस्थितियों को असंतुलित कर दिया है।
जुगनुओं की घटती चमक: प्रकाश प्रदूषण से बढ़ता पारिस्थितिक संकट
पूरी दुनिया में प्रकाश प्रदूषण के कारण बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के प्रति सचेत करने वाले इस अध्ययन में बताया गया है कि पिछले तीस वर्षों में जुगनुओं की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। उदाहरण के तौर पर, आंध्रप्रदेश के बरनकुला गाँव में वर्ष 2019 में दस मीटर क्षेत्र में जुगनुओं की औसत संख्या मात्र दस से बीस के बीच रही, जबकि 1996 में यही संख्या पाँच सौ से अधिक थी।
इस शोध के अनुसार, इंसानों को रात में जिन कृत्रिम रोशनी स्रोतों की आवश्यकता होती है, उनका जीव-जंतुओं के जीवन चक्र पर गहरा और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में ये छोटे-छोटे कीट, विशेष रूप से जुगनू, एक अहम भूमिका निभाते हैं। इनका विनाश पारिस्थितिक असंतुलन को और गहरा करता है।
आधुनिक प्रकाश व्यवस्था भले ही मनुष्यों को रात में रंगों को स्पष्ट देखने की सुविधा प्रदान करती हो, परंतु ये कृत्रिम प्रकाश स्रोत अन्य जीव-जंतुओं की दृष्टि, व्यवहार और प्रजनन चक्र पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि जुगनुओं की घटती संख्या एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का संकेत है। यह न केवल जैव विविधता के क्षरण को दर्शाता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में बढ़ते असंतुलन की चेतावनी भी देता है। शोधकर्ता आगाह करते हैं कि यदि इस स्थिति में सुधार के उपाय जल्द नहीं किए गए, तो इसका व्यापक और गंभीर प्रभाव सम्पूर्ण पर्यावरण पर अवश्य पड़ेगा।
विशेषज्ञों की राय
डॉ. अविनाश शर्मा, वरिष्ठ कीटविज्ञानी, भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून: “जुगनुओं की घटती संख्या केवल एक कीट का संकट नहीं है, बल्कि यह एक पूरी श्रृंखला के बिगड़ते पारिस्थितिकी संकेतकों का द्योतक है। रोशनी के अत्यधिक प्रयोग से इनके संचार और प्रजनन क्षमता में रुकावट आ रही है।”
डॉ. किरण राव, पर्यावरण वैज्ञानिक, नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR), चेन्नई:
“हमने पाया कि कृत्रिम रोशनी जुगनुओं की चमकने की क्षमता और प्रजनन व्यवहार दोनों को प्रभावित करती है। यह जैविक संकेतों को बाधित करती है जो इनकी जीवन प्रणाली का आधार हैं।”
प्रकाश प्रदूषण और जुगनू (Fireflies) संकट से संबंधित मुख्य FAQs
1. जुगनू कौन होते हैं और ये क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर:जुगनू एक प्रकार के रात्रिचर कीट हैं जो बायोलुमिनेसेंस (स्वयं प्रकाश पैदा करने की क्षमता) से चमकते हैं। ये अपने साथी को आकर्षित करने और शिकारियों से बचने के लिए प्रकाश संकेतों का उपयोग करते हैं। ये पारिस्थितिक संतुलन, परागण और कीट नियंत्रण में सहायक होते हैं।
2. जुगनुओं की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: मुख्य कारण है कृत्रिम प्रकाश (Light Pollution), जिससे उनका प्रजनन व्यवहार, संचार और भोजन की खोज प्रभावित होती है। इसके अलावा, आवास का नुकसान, कीटनाशकों का उपयोग, और प्राकृतिक वातावरण में हस्तक्षेप भी जिम्मेदार हैं।
3. कृत्रिम प्रकाश का जुगनुओं पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:जुगनू अंधेरे में चमकते हैं और साथी को खोजने के लिए प्रकाश संकेत देते हैं। स्ट्रीट लाइट, एलईडी बल्ब और अन्य रोशनी उनके इन संकेतों को दबा देती है, जिससे वे साथी नहीं ढूंढ पाते और प्रजनन दर घटती है।
4. भारत में इस पर कौन-से अध्ययन हुए हैं?
उत्तर:भारत में राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR), चेन्नई ने इस पर गहन अध्ययन किया है, जिसमें पाया गया कि आंध्रप्रदेश के बरनकुला गाँव में 1996 से 2019 के बीच जुगनुओं की संख्या में भारी गिरावट हुई है।
5. जुगनू किस प्रकार की जगहों पर अधिक पाए जाते हैं?
उत्तर:जुगनू सामान्यतः नमी वाली जगहों जैसे घास के मैदानों, जलाशयों के किनारे, खेतों और जंगलों में पाए जाते हैं। वे अंधेरे और शांत वातावरण पसंद करते हैं जहाँ कृत्रिम रोशनी कम होती है।