2014 में “मेक इन इंडिया” की शुरुआत के बाद से भारत ने विनिर्माण, डिफेंस, टेक्नोलॉजी, ऊर्जा और कृषि सहित कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। केंद्र सरकार ने निरंतर नीतियाँ बनाई हैं ताकि आयात पर निर्भरता कम हो और घरेलू उद्योगों को बल मिले। जैसे-जैसे 11 साल पूरे हुए, GST 2.0 की शुरुआत ने यह संकेत दिया है कि सरकार उद्योगों को और सक्षम बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और उपभोक्ताओं पर कर बोझ कम करने के लिए सक्षम ढाँचों को और मजबूत कर रही है। भारत में त्योहारों से पहले लागू हुई GST 2.0, “मेक इन इंडिया” की 11वीं वर्षगांठ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत का आह्वान — ये सब मिलकर देश की अर्थव्यवस्था, उद्योग और सामाजिक भावना को नया आकार दे रहे हैं।
- GST 2.0 के प्रभाव
- ‘मेक इन इंडिया’ — 11 वर्ष की यात्रा और उसका महत्व
- प्रधानमंत्री का आह्वान और जनभागीदारी
- मेक इन इंडिया को अपनी पहली पसंद कैसे बनाएं — व्यक्तिगत एवं सामूहिक कदम
- खरीदारी में Make in India को प्राथमिकता दें
- निर्यात-उन्मुख सोच अपनाएं (Export mindset)
- नवोन्मेष और तकनीकी उन्नति
- सरकारी नीतियों और प्रोत्साहन योजनाओं को समझें
- निरंतर निगरानी एवं मांग
- मेक इन इंडिया + GST 2.0 = आत्मनिर्भर भारत की दिशा
- आत्मनिर्भर भारत का सूत्र: स्वदेशी उद्योग और आत्मसम्मान की शक्ति
- मेक इन इंडिया के 11 सालपर FAQs:
GST 2.0 के प्रभाव
- सरल टैक्स संरचना — करों की दरों में संशोधन से रोजमर्रा की चीजों और निर्माण सामग्री जैसे सीमेंट, इस्पात आदि पर कर बोझ कम हुआ है।
- व्यापारी और छोटे उद्योगों को राहत — MSME और छोटे दुकानदारों को कर प्रक्रिया और अनुपालन में सुधार मिलेगा।
- खपत-शक्ति में बढ़ोतरी — जब चीजों की कीमतें सुलभ होंगी, उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी, त्योहारों के दौरान खर्च में वृद्धि संभव है।
‘मेक इन इंडिया’ — 11 वर्ष की यात्रा और उसका महत्व
प्रारंभ और उद्देश्य
‘मेक इन इंडिया’ पहल सितंबर 2014 में शुरू की गई थी, ताकि भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाया जाए।
इसके मूल उद्देश्य थे:
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, निर्यात क्षमता को सुदृढ़ करना
- रोजगार सृजन करना, विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग और निजी उद्यमों में
- अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर (Atmanirbhar) बनाना
प्रधानमंत्री ने स्वयं इस पहल को अब 11 वर्ष की वर्षगाँठ पर याद किया और कहा कि इसने भारत की आर्थिक ताकत, नवोन्मेष (Innovation) और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है।
उपलब्धियाँ
- रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता: निर्यात और स्वदेशी उत्पादन में भारी बढ़ोतरी।
- ऊर्जा एवं क्रिटिकल मिनरल्स: ऊर्जा क्षेत्र व न्यूक्लियर ऊर्जा में निजी भागीदारी, क्रिटिकल माइन ग्राउंड मैपिंग, और स्वदेशी संसाधनों के बेहतर उपयोग की योजनाएँ शुरू।
- टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक्स: सेमीकंडक्टर मिशन, “चिप्स-टू-शिप्स” की योजना और डिजिटल इंडिया के माध्यम से टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम।
चुनौतियाँ एवं आगे की राह
- बुनियादी ढाँचे की कमी और आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) में बाधाएँ अभी भी कई इलाकों में बाधक हैं।
- कौशल विकास (skill development) में अभी भी अंतर मौजूद है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- निवेश और वित्तपोषण की चुनौतियाँ, विशेषकर छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए।
प्रधानमंत्री का आह्वान और जनभागीदारी
प्रधानमंत्री मोदी ने “स्वदेशी उत्पाद” खरीदने की अपील की है, ताकि उपभोक्ताओं की भागीदारी से और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिले। उन्होंने “चिप्स-टू-शिप्स” जैसे विज़न पेश किए हैं, जिससे टेक्नोलॉजी और घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा।
मेक इन इंडिया को अपनी पहली पसंद कैसे बनाएं — व्यक्तिगत एवं सामूहिक कदम
अब प्रयुक्त समय है कि मेक इन इंडिया सिर्फ एक सरकारी नारा न रह जाए, बल्कि सभी नागरिकों का दैनिक व्यवहार बने। नीचे कुछ सुझाव दिए हैं:
खरीदारी में Make in India को प्राथमिकता दें
- घरेलू ब्रांडों की पहचान करें — उत्पाद पर ‘Make in India’, ‘भारतीय उत्पाद’ आदि लेबल देखें।
- यदि दो सामानों में कीमत और गुणवत्ता समान है, तो स्वदेशी विकल्प चुनें।
- त्योहारों के अवसर पर स्थानीय शिल्पकार, हस्तशिल्प और छोटे उद्योगों से खरीदारी करें — इससे स्थानीय आर्थिक चक्र को सहायता मिलेगी।
निर्यात-उन्मुख सोच अपनाएं (Export mindset)
- अगर आप उद्यमी हैं, तो सिर्फ घरेलू बाज़ार तक सीमित न रहें — अपने उत्पादों को वैश्विक स्तर पर निर्यात करने की योजना बनाएं।
- गुणवत्ता मानकों (ISO, BIS, आदि) का पालन करें ताकि उत्पाद अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा कर सकें।
- सरकारी योजनाएँ जैसे PLI (Production Linked Incentive), एक्सपोर्ट प्रमोशन योजनाएँ आदि देखें और उनका लाभ उठाएँ।
नवोन्मेष और तकनीकी उन्नति
- R&D (अनुसंधान एवं विकास) में निवेश करें — नवाचार से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
- डिजिटलीकरण, ऑटोमेशन और उद्योग 4.0 (Industry 4.0) तंत्र अपनाएँ ताकि उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता दोनों बढ़ें।
- क्लस्टर / इंडस्ट्री हब में सहयोग करें — साझा संसाधन, लॉजिस्टिक्स सुविधाएँ और संसाधन उपयोग बेहतर होंगे।
सरकारी नीतियों और प्रोत्साहन योजनाओं को समझें
- मेक इन इंडिया, Atmanirbhar Bharat, PLI स्कीम, GeM (Government e-Marketplace), ODOP (One District One Product) जैसी योजनाओं का लाभ उठाएँ।
- टेक्नोलॉजी और उत्पादन उन्नति के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी, टैक्स रियायतों और फंडिंग योजनाओं को जानें।
- नागरिकों को भी सरकारी योजनाओं की जागरूकता फैलानी चाहिए — अन्य लोगों को बताएं कि कैसे मेड इन इंडिया को समर्थन दे सकते हैं।
निरंतर निगरानी एवं मांग
- यदि बाज़ार में विदेशी सामानों की भरमार हो और स्वदेशी विकल्पों को उपेक्षा मिले, तो यानी जनता की मांग कम हो। नागरिकों को स्वदेशी उत्पादों की मांग करनी चाहिए।
- सोशल मीडिया, ब्लॉग, मीडिया के माध्यम से मेड इन इंडिया की सफलता कहानियों को फैलाएं।
- यदि व्यापारियों या कंपनियों ने GST 2.0 की राहत ग्राहकों तक नहीं पहुँचाई, तो शिकायत करें — जैसे कि नेशनल एंटी प्रॉफिटर्स अथॉरिटी (NAA) को रिपोर्ट करना।
मेक इन इंडिया + GST 2.0 = आत्मनिर्भर भारत की दिशा
जब एक ओर मेक इन इंडिया ने हमें विनिर्माण और आत्मनिर्भरता की राह दिखाई है, वहीं दूसरी ओर GST 2.0 ने कर बोझ को हल्का कर इस राह को आसान बनाया है। ये दोनों पहलें अगर संयुक्त रूप से ठीक से लागू हो जाएँ, तो आने वाले दशक में भारत वैश्विक उत्पादन हब बन सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं यह आह्वान किया कि हर भारतीय इस संकल्प को अपनाए — मेक इन इंडिया को अपनी पहली पसंद बनाएं।
चाहे उपभोक्ता हों या निर्माता, नागरिक हों या नीति निर्माता — यदि हम सभी मेक इन इंडिया को जीवन में उतारें, तो 2047 तक भारत विकसित, आत्मनिर्भर और सम्मानित राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर अपनी पहचान बना सकता है।
आत्मनिर्भर भारत का सूत्र: स्वदेशी उद्योग और आत्मसम्मान की शक्ति
मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और GST 2.0 की पहलें इसी तरह की शिक्षा की आधुनिक प्रतिध्वनि हैं। ये नीतियाँ जनता को यह संदेश देती हैं कि हमें विदेशी निर्भरताओं पर नहीं, बल्कि अपनी क्षमताओं और स्वदेशी संसाधनों पर विश्वास करना चाहिए। संत रामपाल जी महाराज एक विचारशील संत रहे हैं जिनकी शिक्षा में आत्म-निर्भरता, आस्था और सत्य की खोज प्रमुख है। उनके अनुसार, आत्मनिर्भर व्यक्ति वह है जो अपने अंदर की क्षमताओं को पहचानता हो, बाहरी निर्भरताओं से मुक्त हो और जिस पर दूसरों पर आश्रित नहीं होना पड़ता।
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संत रामपाल जी महाराज का यह मूल विचार कि “अंतःकरण की शक्ति ही मनुष्य को सच्ची ऊँचाइयों तक पहुंचाती है” यहां लागू होता है। यदि हम मेक-इन-इंडिया को अपनाएँ, अपने कौशल को निखारें, स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दें और भूमिका निभाएँ – तो न केवल हमारी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, बल्कि हमारी आत्मा और मान-सम्मान भी विकसित होगा। विजय केवल सरकार की नीति से नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के दृढ़ संकल्प, अपनी दिनचर्या में छोटे-छोटे निर्णयों से बनती है — जैसे कि स्वदेशी सामग्री खरीदना, स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करना।
इस प्रकार, मेक इन इंडिया केवल एक आर्थिक अभियान नहीं है, बल्कि आत्मज्ञान और आत्मसम्मान की यात्रा है — जैसा कि संत रामपाल जी महाराज की शिक्षा बताती है। इस दृष्टि से, प्रत्येक भारतीय की भूमिका अहम है: अपने अंदर की शक्ति और सत्य को पहचान कर देश को आत्मनिर्भर बनाना।
मेक इन इंडिया के 11 सालपर FAQs:
Q1. GST 2.0 क्या है और यह मेक इन इंडिया को कैसे प्रभावित करेगा?
GST 2.0 कर दरों और अनुपालन को सरल बनाती है, जिससे उत्पादन लागत कम होगी, उद्योगों को राहत मिलेगी, और आत्मनिर्भर उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
Q2. प्रधानमंत्री मोदी ने ‘चिप्स-टू-शिप्स’ से क्या मतलब बताया है?
इसका आशय है कि भारत सिर्फ सिपारिश (रॉ मटेरियल) экспорт नहीं करे बल्कि सेमीकंडक्टर चिप्स से लेकर जहाज़ निर्माण जैसे उच्च-स्तरीय विनिर्माण क्षेत्र में भी सक्षम हो।
Q3. एमएसएमई एवं छोटे उद्योगों को स्वदेशी उत्पादक बनने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
चुनौतियाँ हैं: पूँजी एवं निवेश की कमी, आधुनिक मशीनरी एवं टेक्नोलॉजी की पहुँच, कुशल श्रमिकों की कमी, और लॉजिस्टिक्स एवं सप्लाई चेन्स की व्यवधानें।
Q4. ‘वोकल फॉर लोकल’ आंदोलन का व्यापार एवं उपभोक्ताओं पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है?
इससे स्थानीय उत्पादों को बाजार मिलेगा, स्थानीय कारीगरों तथा छोटे उद्योगों को रोजगार ओर आमदनी बढ़ेगी, तथा भारत की अर्थव्यवस्था अधिक आत्मनिर्भर होगी।
Q5. GST सुधारों से त्योहारों के सीज़न में उपभोक्ताओं को क्या लाभ होगा?
त्योहारों पर रोजमर्रा की ज़रूरतों (खाना, कपड़ा, सजावट सामग्री आदि) में कर दरों की कमी से कीमतों में गिरावट होगी, जिससे उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा और बाजार को मजबूती मिलेगी।