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Home » गणेश चतुर्थी 2025 और आदि गणेश: एक गहन आध्यात्मिक विश्लेषण

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गणेश चतुर्थी 2025 और आदि गणेश: एक गहन आध्यात्मिक विश्लेषण

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Last updated: August 27, 2025 1:42 pm
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गणेश चतुर्थी 2025 और आदि गणेश: एक गहन आध्यात्मिक विश्लेषण
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भारत में, गणेश चतुर्थी का त्योहार हर साल बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष, 27 अगस्त 2025 को यह उत्सव आरंभ होगा, जिसमें भक्तगण घरों और पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना करेंगे। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी विघ्नहर्ता हैं और किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा करने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। लेकिन क्या यह मान्यताएँ और पूजा विधियाँ हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुरूप हैं? संत रामपाल जी महाराज, एक तत्वदर्शी संत, अपने प्रवचनों और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से इस विषय पर एक नया और गहरा दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। वे बताते हैं कि जिन गणेश जी की हम पूजा करते हैं, वे वास्तव में आदि गणेश नहीं हैं। 

Contents
  • मुख्य बातें:
  • पारंपरिक उत्सव और आध्यात्मिक सत्य
  • आदि गणेश कौन हैं?
  • शास्त्र-विरुद्ध भक्ति एवं इसके परिणाम
  • सत्य की पहचान: आदि गणेश बनाम प्रचलित मान्यताएँ
  • तत्वज्ञान से ही मिलेगा रास्ता 
  • सत ज्ञान: गणेश चतुर्थी का अनसुना रहस्य
  • गणेश चतुर्थी 2025 से संबंधित कुछ FAQs

इस लेख में, हम गणेश चतुर्थी 2025 के पारंपरिक उत्सव और संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रकट किए गए आदि गणेश के रहस्य के बीच के अंतर को समझेंगे। यह लेख आपको यह सोचने पर मजबूर करेगा कि क्या आप सही मार्ग पर चल रहे हैं।

मुख्य बातें:

  • गणेश चतुर्थी 2025: इस वर्ष 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। यह दिन भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • पारंपरिक पूजा विधि: लोग मोदक, लड्डू और विभिन्न पकवानों का भोग लगाते हैं, आरती करते हैं और 11 दिनों के बाद गणपति विसर्जन करते हैं।
  • आदि गणेश की सच्ची पहचान: संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, आदि गणेश कोई और नहीं, बल्कि स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब हैं, जो सभी गणों के ईश और सृष्टि के रचयिता हैं।
  • शास्त्र-विरुद्ध साधना: संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि श्रीमद्भगवद्गीता और अन्य पवित्र ग्रंथ केवल एक ही पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने का आदेश देते हैं, न कि देवी-देवताओं की।
  • शास्त्र-सम्मत भक्ति का महत्व: वे समझाते हैं कि शास्त्र-विरुद्ध भक्ति करने से कोई लाभ नहीं होता और यह केवल समय की बर्बादी है। मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत से नाम दीक्षा लेने से ही संभव है।
  • पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब: कबीर साहेब ही वह आदि गणेश हैं, जो आदि-पुरुष, परम अक्षर ब्रह्म और सृष्टि के कर्ता-धर्ता हैं।
  • मोक्ष का सच्चा मार्ग: संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि मोक्ष के लिए सही मंत्र और सही भक्ति विधि का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है, जो केवल एक तत्वदर्शी संत ही प्रदान कर सकता है।

पारंपरिक उत्सव और आध्यात्मिक सत्य

गणेश चतुर्थी का पर्व महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और भारत के अन्य कई राज्यों में एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। इस दिन भक्तगण गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमाएं घरों में स्थापित करते हैं। ये प्रतिमाएं दस दिनों तक पूजी जाती हैं और ग्यारहवें दिन अनंत चतुर्दशी को धूमधाम से उनका विसर्जन किया जाता है। इस दौरान भजन, कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, और मोदक, लड्डू जैसे पकवानों का विशेष भोग लगाया जाता है।

भारतीय संस्कृति में गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा करने की परंपरा है। यह मान्यता है कि उनकी कृपा से सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। लेकिन संत रामपाल जी महाराज के सत्संगों में इस परंपरा पर एक अलग ही प्रकाश डाला गया है। वे बताते हैं कि यह सब शास्त्र-विरुद्ध साधनाएं हैं, जिनका वर्णन हमारे पवित्र धर्म ग्रंथों में नहीं है।

आदि गणेश कौन हैं?

संत रामपाल जी महाराज अपने प्रवचनों में आदि गणेश की सच्ची पहचान उजागर करते हैं। वे बताते हैं कि ‘गणेश’ शब्द का अर्थ ‘गणों का ईश’ है। लेकिन यह गण कौन हैं और उनका वास्तविक ईश कौन है? वे कहते हैं कि सभी गणों, देवताओं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव, यहां तक कि सभी आत्माओं के असली ईश और जनक परमेश्वर कबीर साहेब हैं। वे ही आदि पुरुष हैं, जिन्होंने इस सृष्टि की रचना की है। संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, आदि गणेश कोई और नहीं, बल्कि वह परम अक्षर ब्रह्म है, जो सतलोक में विराजमान हैं।

पवित्र वेदों और श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान के आधार पर, संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव और गणेश जैसे देवी-देवता एक विभाग के मंत्री हैं, लेकिन वे अविनाशी नहीं हैं। वे जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं। वे कहते हैं कि केवल एक ही परमेश्वर है, जिसकी भक्ति करने से मोक्ष संभव है। वह परमेश्वर कोई और नहीं बल्कि कबीर साहेब हैं।

शास्त्र-विरुद्ध भक्ति एवं इसके परिणाम

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16, श्लोक 23 और 24 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को छोड़कर मनमाना आचरण करता है, उसे न तो सुख मिलता है, न सिद्धि और न ही परम गति। यही बात संत रामपाल जी महाराज अपने प्रवचनों में बार-बार दोहराते हैं। वे कहते हैं कि हम वर्षों से जिन देवी-देवताओं की पूजा कर रहे हैं, वह शास्त्र-सम्मत नहीं है। गणेश चतुर्थी पर प्रतिमा स्थापित करना और विसर्जन करना, यह सब शास्त्र-विरुद्ध है। इससे कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता।

संत जी बताते हैं कि सच्चा मोक्ष केवल उस पूर्ण परमेश्वर की भक्ति से प्राप्त होता है, जिसका वर्णन हमारे पवित्र शास्त्रों में है। उस परमेश्वर को प्राप्त करने की विधि भी शास्त्रों में ही वर्णित है, और वह विधि केवल एक तत्वदर्शी संत ही बता सकता है। संत रामपाल जी महाराज उसी तत्वज्ञान को दुनिया के सामने रख रहे हैं।

सत्य की पहचान: आदि गणेश बनाम प्रचलित मान्यताएँ

जब हम पारंपरिक रूप से गणेश चतुर्थी मनाते हैं, तो हमारा ध्यान केवल एक त्योहार पर होता है, न कि उसकी आध्यात्मिक गहराई पर। हम गणेश जी से धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। लेकिन संत रामपाल जी महाराज हमें बताते हैं कि ये सब नश्वर हैं। असली सुख और शांति केवल मोक्ष के मार्ग पर चलकर ही प्राप्त की जा सकती है। और मोक्ष का मार्ग केवल आदि गणेश, यानी परमेश्वर कबीर साहेब की सच्ची भक्ति से ही खुलता है।

वेदों, पुराणों और अन्य पवित्र ग्रंथों के गहन अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कबीर साहेब ही वह आदि-पुरुष हैं, जिन्होंने गणेश समेत सभी देवी-देवताओं की रचना की है। वे ही सर्वशक्तिमान हैं और वही सभी जीवों के जन्म और मृत्यु के चक्र को समाप्त कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी मनाते समय, हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हम अपने समय और ऊर्जा का सही उपयोग कर रहे हैं। क्या हम अपनी आत्मा के कल्याण के लिए सही मार्ग पर चल रहे हैं?

तत्वज्ञान से ही मिलेगा रास्ता 

गणेश चतुर्थी 2025 का यह अवसर हमें एक महत्वपूर्ण संदेश प्रदान करता है। यह हमें पारंपरिक मान्यताओं से परे जाकर आध्यात्मिक सत्य की खोज करने के लिए प्रेरित करता है। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान हमें बताता है कि जिस आदि गणेश की हम तलाश कर रहे हैं, वे हमारे ही पवित्र शास्त्रों में वर्णित हैं, लेकिन उन्हें पहचानने के लिए तत्वज्ञान की आवश्यकता है। यह ज्ञान हमें अंधविश्वास और मनमाना आचरण से बचाकर मोक्ष के सच्चे मार्ग पर ले जाता है। इस गणेश चतुर्थी, आइए हम आदि गणेश के सच्चे स्वरूप को जानें और उनकी शास्त्र-सम्मत भक्ति करें, ताकि हमारा जीवन सार्थक हो सके।

सत ज्ञान: गणेश चतुर्थी का अनसुना रहस्य

संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान से यह स्पष्ट होता है कि गणेश चतुर्थी का पारंपरिक त्योहार और आदि गणेश की वास्तविक पहचान में एक गहरा अंतर है। वे बताते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए एकमात्र रास्ता शास्त्र-सम्मत भक्ति है, जो केवल एक तत्वदर्शी संत के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। वे आदि गणेश को परमेश्वर कबीर साहेब बताते हैं, जो सभी गणों के ईश और सृष्टि के रचयिता हैं। संत जी के ज्ञान से यह साबित होता है कि पारंपरिक रूप से की जाने वाली पूजा विधियां शास्त्र-विरुद्ध हैं और उनसे कोई लाभ नहीं होता। हमें गणेश चतुर्थी के अवसर पर यह समझना चाहिए कि विघ्नहर्ता केवल वही पूर्ण परमात्मा है, जो सभी विघ्नों को दूर कर सकता है। यह ज्ञान हमें भ्रामक साधनाओं से दूर रहने और एक पूर्ण संत की शरण में जाकर मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है, जो हमारी आत्मा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

गणेश चतुर्थी 2025 से संबंधित कुछ FAQs

1. गणेश चतुर्थी 2025 कब है?

गणेश चतुर्थी 2025 में 27 अगस्त, बुधवार को मनाई जाएगी।

2. आदि गणेश कौन हैं?

संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, आदि गणेश कोई और नहीं बल्कि स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब हैं, जो सभी गणों और सृष्टि के रचयिता हैं।

3. क्या गणेश जी की पूजा करने से मोक्ष मिलता है?

संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार, केवल पूर्ण परमात्मा की भक्ति करने से ही मोक्ष मिलता है। गणेश जी की पूजा करने से सांसारिक लाभ हो सकते हैं, लेकिन यह मोक्ष का मार्ग नहीं है।

4. शास्त्र-सम्मत भक्ति क्या है?

शास्त्र-सम्मत भक्ति वह साधना है, जिसका वर्णन हमारे पवित्र धर्म ग्रंथों जैसे वेद और गीता में है। यह भक्ति किसी तत्वदर्शी संत की शरण में जाकर ही की जा सकती है।

5. गणेश चतुर्थी पर मूर्ति विसर्जन क्यों किया जाता है?

मूर्ति विसर्जन एक पारंपरिक प्रथा है, जो गणेश जी की मिट्टी की प्रतिमाओं को पानी में विसर्जित करने के लिए की जाती है। यह एक प्रतीकात्मक क्रिया है, जो भक्तों की श्रद्धा को दर्शाती है, लेकिन इसका आध्यात्मिक महत्व सीमित है।

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