लोकतंत्र को अक्सर एक इमारत के रूप में देखा जाता है, जिसकी मजबूती उसके चार स्तंभों पर निर्भर करती है। ये चार स्तंभ हैं: विधायिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive), न्यायपालिका (Judiciary), और मीडिया (Press)। इन चारों स्तंभों का एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और इनके बीच संतुलन और पारदर्शिता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि ये स्तंभ कितने मजबूत हैं और इनकी वर्तमान स्थिति क्या है।
1. विधायिका (Legislature)
विधायिका वह संस्था है, जो कानून बनाती है और सरकारी नीतियों को निर्धारित करती है। यह एक चुनी हुई संस्था होती है, जिसमें संसद या विधानसभा के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं।
स्थिति और चुनौतियां:
विधायिका लोकतंत्र का केंद्रबिंदु मानी जाती है, लेकिन विधायिका की कार्यवाही में:
- संसदीय चर्चा का ह्रास: संसद और विधानसभाओं में गहरी बहस और विचार-विमर्श की कमी, तकरार देखी गई है।
- विधायिका की स्वायत्तता : कई देशों में विधायिका पर कार्यपालिका का प्रभुत्व भी देखा गया है, जिससे इसकी स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं।
- जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही: राजनीति में भ्रष्टाचार और जनविरोधी नीतियों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिसके कारण जनता के मुद्दे एजेंडे में पीछे रह जाते हैं ।
- विश्वसनीयता का ह्रास: विधायिका में चुनकर आने वाले कई प्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिससे उनके प्रति जनता का विश्वास कम होता जा रहा है।
2. कार्यपालिका (Executive)
कार्यपालिका वह संस्था है, जो देश के कानूनों को लागू करती है और सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करती है। इसमें प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल और विभिन्न सरकारी अधिकारी शामिल होते हैं।
स्थिति और चुनौतियां:
कार्यपालिका का कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत होता है, और इसका सीधा संबंध जनता के जीवन से होता है।
- नीति निर्माण और कार्यान्वयन में देरी: सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में काफी समय लगता है।
- सत्ता का केंद्रीकरण: सत्ता का केंद्रीकरण से उच्च पदों पर बैठे अधिकारी और नेता सभी निर्णय अपने हाथों में रखना चाहते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी हो जाती है।
- ब्यूरोक्रेसी की जटिलताएं : नौकरशाही की धीमी गति भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के कारण योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता।
3. न्यायपालिका (Judiciary)
न्यायपालिका का काम कानून की रक्षा करना और उसे सही ढंग से लागू करना है। यह सरकार और नागरिकों के बीच निष्पक्षता बनाए रखने का कार्य करती है।
स्थिति और चुनौतियां:
न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता किसी भी लोकतंत्र की नींव होती है।
- न्याय की देरी: न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति एक गंभीर समस्या है। जिससे आम जनता को न्याय मिलने में काफी देरी होती है।
- न्यायपालिका की स्वायत्तता पर खतरा: कभी-कभी न्यायपालिका पर कार्यपालिका या विधायिका का प्रभाव देखा जाता है, जिससे इसकी स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं।
- लोक-अधिकारों की रक्षा: न्यायपालिका के फैसलों से जनता के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए।
4. मीडिया (Press)
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह जनता और सरकार के बीच सूचना का माध्यम होता है और सत्ता के गलत उपयोग को उजागर करने का काम करता है।
स्थिति और चुनौतियां:
मीडिया का लोकतंत्र में बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन हाल के समय में इसमें भी कुछ चुनौतियां आई हैं।
- स्वतंत्रता पर खतरा: मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरे का इससे पत्रकारिता की निष्पक्षता पर असर पड़ता है।
- फ़ेक न्यूज़ का बढ़ता प्रचलन: आजकल सोशल मीडिया के ज़रिए फेक न्यूज़ का प्रसार एक बड़ी चुनौती बन गई है। इससे जनता को गलत जानकारी मिलती है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक है।
- मीडिया का व्यवसायीकरण: मीडिया का अधिक व्यवसायीकरण भी इसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है। कई बार मीडिया घरानों के व्यावसायिक हित पत्रकारिता के सिद्धांतों से ऊपर हो जाते हैं।
मजबूती:
लोकतंत्र के ये चार स्तंभ आपस में जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। अगर इनमें से कोई भी स्तंभ कमजोर होता है, तो लोकतंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है। वर्तमान समय में, इन चारों स्तंभों को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि एक सशक्त और स्वस्थ लोकतंत्र कायम रह सके।
लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए चारों स्तंभों को मजबूत बनाना आवश्यक है जिसमें सबकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
संत रामपाल जी महाराज ने न्यायालय की गिरती गरिमा, भ्रष्ट शासन, प्रशासन पर गंभीर चोट लगाई है आज उनके संघर्ष और समाज निर्माण के कार्य जैसे नशामुक्ति, दहेज़ रहित विवाह, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का खात्मा, चोरी, ठगी जैसी बुराईयों का अंत कर एक स्वच्छ समाज का निर्माण कर रहे हैं जिनसे लोकतंत्र काफी मज़बूत हो रहा है उनका यह कार्य सदियों तक याद किया जायेगा।उनकी पुस्तकों और विश्व कल्याण के कार्य आज देश तक ही सीमित नहीं है। बल्कि विश्व भर में उसका प्रभाव है जो भारत को विश्वगुरू बनाने का एक कदम और काफी महत्त्वपूर्ण प्रयास हैं।
एक झलक:
सवाल यह नहीं है कि कौन सा स्तंभ सबसे मजबूत है, बल्कि यह है कि सभी स्तंभ एक साथ कैसे बेहतर कार्य कर सकते हैं। जनता की जागरूकता और संत रामपाल जी के उपदेशों का अनुसरण कर ही इन चारों स्तंभों की जिम्मेदारी और विश्वसनीयता को बढ़ाकर एक सशक्त लोकतंत्र का निर्माण कर सकती है।