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डिजिटल चरमपंथ का नया हथियार: खून खराबे, हिंसा के जाल में फंसाए जा रहे हैं मासूम बच्चे

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Last updated: April 20, 2025 12:42 pm
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डिजिटल चरमपंथ का नया हथियार: खून खराबे, हिंसा के जाल में फंसाए जा रहे हैं मासूम बच्चे
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इंटरनेट के बढ़ते दायरे और डिजिटल उपकरणों की आसान उपलब्धता ने जहां बच्चों के लिए मनोरंजन के नए रास्ते खोले हैं, वहीं यह नई तकनीक उनके लिए खतरे की घंटी बनते जा रही है। देश विदेश में सक्रिय चरमपंथी और उग्रवादी संगठन अब बच्चों और किशोरों को निशाना बनाने के लिए एक नई रणनीति अपना रहे हैं जिसमें पोर्नोग्राफी, खून–खराबे वाले वीडियो गेम्स और हिंसात्मक कंटेंट का इस्तेमाल करके बच्चों को अपने जाल में फंसा रहे हैं।

Contents
ऑनलाइन कट्टरपंथ द्वारा मासूम बच्चों का शिकार से संबंधित मुख्य बिंदु ऑनलाइन कट्टरपंथ की ओर मासूम कदमहज़ारों चरमपंथी तस्वीरों ने 12 साल के बच्चे की सोच को कैसे विकृत कर दियाडिजिटल कट्टरपंथ का शिकार: कैसे एक किशोर ‘अमानवीय सैनिक’ बनने की राह पर थाडिजिटल कट्टर पंथ के शिकार मासूम बच्चे: एक उभरता हुआ वैश्विक ख़तराबच्चों में बढ़ते कट्टरपंथ से दुनियाभर की एजेंसियाँ सतर्क : “अश्लीलता से जिहादी प्रचार तक: यूरोप में मासूम बच्चे तेज़ी से हो रहे कट्टरपंथ का शिकार ”डिजिटल युग में तेज़ गति से मासूम बच्चे बन रहे कट्टरपंथी:12 साल का बच्चा बना चरमपंथी कंटेंट का शिकार” 12 साल की उम्र में नफ़रत का ज़हर: “डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा: संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान से:डिजिटल चरमपंथ फंसा रहे पोर्न, खून खराबे के जाल में मासूम बच्चों को ” से संबंधित मुख्य FAQs 

एक ऐसी ही भयभीत कर देने वाली पेरिस की घटना सामने आई जिसमें लड़के की गिरफ्तारी के बाद उसकी मां यह जानकार दंग रह गई कि उसका 12 वर्षीय बेटा हत्या करना सीख रहा था। सिर काटने और यातना के इतने भयानक वीडियो देख रहा था कि उन्हें देख कर कठोर फ्रांसीसी अदालत के अधिकारी भी चौंक गए। उसकी मां ने अपराधिक जांचकर्ताओं को बताया कि,उसे लगा था कि उसका  बेटा अपने कमरे में बिताए घंटों के दौरान वीडियो गेम्स खेल रहा है और होमवर्क कर रहा होगा।

ऑनलाइन कट्टरपंथ द्वारा मासूम बच्चों का शिकार से संबंधित मुख्य बिंदु 

1. सोशल मीडिया, गेमिंग ऐप्स और एन्क्रिप्टेड चैट्स के ज़रिए चरमपंथी बच्चों तक पहुँच बना रहे हैं।

2. धार्मिक या सामान्य जिज्ञासा से शुरुआत कर बच्चों को हिंसक और अश्लील कंटेंट की ओर धकेला जाता है।

3. पहले के मुकाबले अब बच्चों का कट्टरपंथीकरण बहुत तेज़ और डिजिटल माध्यम से छिपकर हो रहा है।

4. कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए अश्लीलता और खून-खराबे वाले वीडियो का उपयोग किया जा रहा है।

5. यूरोप में 12 से 17 वर्ष के बच्चे आतंकवाद से जुड़े मामलों में पकड़े गए ।

6. ऐसा कंटेंट बच्चों के मन को विकृत कर देता है, जिससे सही-गलत की समझ खत्म हो जाती है।

7. बच्चों को संवाद, संस्कार और सुरक्षा देना अब पहले से ज्यादा ज़रूरी और कठिन हो गया है।

8.  यह सिर्फ एक देश की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक डिजिटल संकट बनते जा रहा है।

ऑनलाइन कट्टरपंथ की ओर मासूम कदम

कैसे एक 12 साल का बच्चा इंटरनेट के अंधेरे में गुम होता गया” बच्चे के वकील का कहना है कि इंटरनेट के सबसे अंधेरे कोनों में बच्चे का प्रवेश काफी मासूमियत से शुरू हुआ, जब उसकी आंटी ने उसे उपहार में कुरान दी थी। इसके बाद उसने इस्लाम के बारे में ऑनलाइन खोज शुरू की। वहीं से, लगातार होती खोजों, उपयोगकर्ताओं के अनुभवों को नियंत्रित करने वाले स्वचालित एल्गोरिदम और लड़के की जिज्ञासा ने मिलकर उसे एन्क्रिप्टेड चैट, इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों और अन्य चरमपंथी समूहों द्वारा फैलाए गए अति-हिंसक प्रचार तक पहुँचा दिया। ये प्रचार अब ऐप्स, वीडियो गेमिंग और सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत कम उम्र के बच्चों के दिमाग में गहराई से प्रवेश कर रहे हैं।

हज़ारों चरमपंथी तस्वीरों ने 12 साल के बच्चे की सोच को कैसे विकृत कर दिया

पॉल-एडौर्ड लालोइस, फ्रांसीसी अभियोक्ता, जिन्होंने पिछले अगस्त में दो आतंकवाद-संबंधी आरोपों में लड़के को सज़ा दिलवाई थी, कहते हैं कि बच्चे ने जो हजारों तस्वीरें और अन्य चरम सामग्री देखी, उससे दुनिया और सही-गलत के बारे में उसकी समझ इतनी विकृत हो गई तथा “इस बच्चे को सामान्य स्थिति में लाने में कई साल लग जाएंगे।”

डिजिटल कट्टरपंथ का शिकार: कैसे एक किशोर ‘अमानवीय सैनिक’ बनने की राह पर था

अभियोक्ता का मानना है कि यदि उसे समय रहते नहीं रोका जाता, तो वह लड़का संभवतः एक “पूरी तरह से अमानवीय सैनिक” बनने की राह पर था ऐसा किशोर जो फ्रांस और अन्य देशों में डिजिटल रूप से कट्टरपंथ की ओर बढ़ रहे युवाओं की उस श्रेणी में शामिल होने का जोखिम उठा रहा था, जो आतंकवादी साजिशों में शामिल हैं और चरमपंथी विचारधाराओं के प्रति समर्थन जता रहे हैं।

अभियोक्ता ने बताया कि हिंसक सामग्री की एक विशाल लाइब्रेरी कई टेराबाइट डेटा जो लड़के ने इकट्ठा की थी, उसमें बम बनाने के वीडियो ट्यूटोरियल्स भी शामिल थे।

उन्होंने कहा, “इतने छोटे बच्चे की मानसिक स्थिति को पूरी तरह से पलटना संभव है। अगर यह कुछ वर्षों तक चलता रहे, तो वह 18 साल की उम्र से पहले ही चाकू से हमला करने और सबसे भयानक काम करने में सक्षम हो सकता है।”

डिजिटल कट्टर पंथ के शिकार मासूम बच्चे: एक उभरता हुआ वैश्विक ख़तरा

पूरे यूरोप और उससे आगे भी स्थिति चिंताजनक है। आतंकवाद-निरोधी एजेंसियाँ अब हमलावरों, साजिशकर्ताओं और चरमपंथ के अनुयायियों की एक नई पीढ़ी से जूझ रही हैं। ऐसे युवा जो पहले से कहीं अधिक कम उम्र में कट्टर विचारों की चपेट में आ रहे हैं, और स्क्रीन के पीछे बैठकर अत्यधिक हिंसक व घातक सामग्री का लगातार सेवन कर रहे हैं। दुखद वास्तविकता यह है कि इनमें से कई किशोर तब तक सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर नहीं आते जब तक कि बहुत देर न हो चुकी हो।

बच्चों में बढ़ते कट्टरपंथ से दुनियाभर की एजेंसियाँ सतर्क : 

फ्रांस के राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी अभियोक्ता ओलिवियर क्रिस्टन, जो देश की सबसे गंभीर आतंकवाद जांचों को संभालते हैं, इस बढ़ते खतरे का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। उनकी यूनिट ने 2022 में केवल दो नाबालिगों पर आतंकवाद से संबंधित प्रारंभिक आरोप लगाए थे। 2023 में यह संख्या बढ़कर 15 हो गई, और पिछले साल यह आंकड़ा 19 तक पहुँच गया।

एसोसिएटेड प्रेस के साथ एक साक्षात्कार में क्रिस्टन ने कहा, “कुछ आरोपी वास्तव में बहुत युवा हैं लगभग 15 वर्ष के जो दो साल पहले तक लगभग अकल्पनीय था।” उन्होंने कहा कि यह “आतंकवादी संगठनों द्वारा फैलाए जा रहे प्रचार की गहरी प्रभावशीलता को दर्शाता है, जो इस आयु वर्ग को निशाना बनाने में काफी सफल हैं।”

तथाकथित “फाइव आइज़” खुफिया-साझाकरण नेटवर्क, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की सुरक्षा एजेंसियाँ शामिल हैं और जो सामान्यतः सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आता इतना चिंतित है कि उसने दिसंबर में सामूहिक कार्रवाई के लिए सार्वजनिक अपील की। उसने चेतावनी दी: “कट्टरपंथी नाबालिग, वयस्कों के समान ही एक विश्वसनीय आतंकवादी खतरा पैदा कर सकते हैं।”

“अश्लीलता से जिहादी प्रचार तक: यूरोप में मासूम बच्चे तेज़ी से हो रहे कट्टरपंथ का शिकार ”

जर्मनी में, पिछले साल हुई सामूहिक चाकूबाज़ी की घटनाओं के बाद गठित आंतरिक मंत्रालय की टास्क फोर्स किशोरों के सोशल नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसका उद्देश्य कट्टरपंथ में उनकी बढ़ती भूमिका का मुकाबला करना है।

फ्रांस में, घरेलू डीजीएसआई सुरक्षा एजेंसी का कहना है कि कथित आतंकी साजिशों में शामिल होने के आरोप में हिरासत में लिए गए 70% संदिग्ध 21 वर्ष से कम उम्र के हैं।

ऑस्ट्रिया में, सुरक्षा सेवाओं का कहना है कि अगस्त में टेलर स्विफ्ट कॉन्सर्ट में जाने वालों की हत्या की कथित आईएसआईएस-प्रेरित साजिश के लिए गिरफ्तार किए गए 19 वर्षीय संदिग्ध को, एक 18 वर्षीय और एक 17 वर्षीय किशोर के साथ, ऑनलाइन कट्टरपंथी बनाया गया था।

ऑस्ट्रियाई अधिकारियों का कहना है कि इसी तरह, 14 वर्षीय एक संदिग्ध आईएसआईएस समर्थक को भी इस फरवरी में वियना ट्रेन स्टेशन पर हमला करने की कथित योजना के लिए हिरासत में लिया गया था।

बेल्जियम में, वीएसएसई खुफिया एजेंसी का कहना है कि 2022 से 2024 के बीच हमलों की साजिश रचने के आरोप में हिरासत में लिए गए लगभग एक तिहाई संदिग्ध नाबालिग थे जिनमें सबसे कम उम्र का सिर्फ 13 वर्ष का था। चरमपंथी प्रचार “पहचान या उद्देश्य की तलाश कर रहे युवाओं के लिए बस एक क्लिक दूर है।” कट्टरपंथ अब इतनी तेज़ गति से हो रहा है कि वह “उग्रवाद से कम नहीं है।”

डिजिटल युग में तेज़ गति से मासूम बच्चे बन रहे कट्टरपंथी:

आतंकवाद-निरोधी जांचकर्ताओं का कहना है कि ऑनलाइन कट्टरपंथीकरण कभी-कभी केवल कुछ महीनों में ही हो सकता है। डिजिटल युग में तेज़ गति से ढलते बच्चे अपनी पहचान छुपाने और माता-पिता के नियंत्रण से बचने में निपुण होते हैं। 12 वर्षीय एक बच्चे की माँ को यह अंदाज़ा तक नहीं था कि उसका बेटा चरमपंथी सामग्री देख रहा है यह बात परिवार के वकील, कामेल आइसाउई, ने एसोसिएटेड प्रेस (AP) को बताई।

जांचकर्ताओं के अनुसार, पिछली पीढ़ी के आतंकवादियों को ट्रैक करना अपेक्षाकृत आसान था, क्योंकि वे असल दुनिया में मिलते-जुलते और संवाद करते थे। लेकिन अब उनके उत्तराधिकारी अक्सर पूरी तरह डिजिटल हो चुके हैं वे एन्क्रिप्टेड चैट और गुमनाम प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं ताकि उनकी पहचान और गतिविधियाँ छिपी रहें।

एक यूरोपीय खुफिया एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर AP से बातचीत में बताया,

“वे अपने फोन, टैबलेट और कंप्यूटर पर ऐसे लोगों के संपर्क में रहते हैं जिन्हें वे असल में जानते तक नहीं।”

यह अधिकारी अवैध चरमपंथी गतिविधियों से निपटने के लिए किए जा रहे कार्यों पर टिप्पणी कर रहा था।

12 साल का बच्चा बना चरमपंथी कंटेंट का शिकार” 

बच्चे के वकील कामेल आइसाउई ने बताया कि 12 वर्षीय बच्चे के लिए यह मुकदमा इतना कठिन और मानसिक रूप से तनावपूर्ण था कि अदालत को सुनवाई दो बार रोकनी पड़ी क्योंकि वह बेहद व्यथित हो गया था।

आइसाउई ने कहा, “लड़का स्वभाव से हिंसक नहीं है। वह उन ऐप्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का शिकार था, जो बच्चों को आसानी से चरमपंथी सामग्री तक पहुंचा देते हैं।”

वकील ने आगे कहा, “उसे एक डिजिटल जगह से दूसरी जगह तक धकेला गया फिर एक और जब तक कि वह ऐसी चीज़ों तक नहीं पहुँच गया, जिन्हें उसे कभी देखना ही नहीं चाहिए था।”

अभियोजक ने एसोसिएटेड प्रेस (AP) को बताया कि बच्चा अब एक आवासीय देखभाल केंद्र में है, जहां उसकी सोशल नेटवर्क्स तक कोई पहुंच नहीं है, विशेष शिक्षकों की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है, और उसके माता-पिता को उससे नियमित मुलाक़ात की अनुमति नहीं है।

आतंकवाद-निरोधी जांचकर्ताओं का कहना है कि वे अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आए बच्चों से जूझ रहे हैं। कुछ बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएं होती हैं, कुछ सामाजिक रूप से अलग-थलग होते हैं और उनका अधिकतर संवाद ऑनलाइन ही होता है। लेकिन कुछ अन्य ऐसे भी होते हैं जिनमें किसी भी तरह के खतरे के संकेत पहले कभी नहीं देखे गए थे जब तक कि पुलिस का ध्यान उन पर न गया।

12 साल की उम्र में नफ़रत का ज़हर: 

बच्चे के डिवाइस से निकले 1,739 जिहादी वीडियो”

12 वर्षीय लड़के के कंप्यूटर और फोन की फॉरेंसिक जांच में पुलिस को 1,739 जिहादी वीडियो मिले, जिनमें “सिर काटने, गला रेतने और गोली चलाने जैसे अत्यंत हिंसक दृश्य” शामिल थे। अधिकारियों ने बताया कि उसके पास बम बनाने और हत्या के तरीके भी मौजूद थे। एक वीडियो में एक व्यक्ति को बांधकर टुकड़ों में काटे जाने की वास्तविक घटना भी रिकॉर्ड थी।

एक जांच अधिकारी ने कहा, “मैंने अपने करियर में बहुत सी भयानक चीजें देखी हैं। लेकिन यह सब कुछ समझ से परे है।”

“डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा: संत रामपाल जी महाराज के आध्यात्मिक ज्ञान से:

डिजिटल युग में बच्चे आसानी से हिंसक और चरमपंथी विचारधाराओं के शिकार हो रहे हैं, लेकिन संत रामपाल जी महाराज का सत्यज्ञान उन्हें इस अंधकार से बचा सकता है। उनका ज्ञान बच्चों को सच्चे धर्म, प्रेम और करुणा की शिक्षा देता है, जिससे वे भटकाव से दूर रहते हैं। संत जी द्वारा दी गई नाम दीक्षा और भक्ति बच्चों के मन को शांति देती है और हिंसक या गलत विचारों से रक्षा करती है। वे समय के सदुपयोग की प्रेरणा देते हैं, जिससे बच्चे व्यर्थ के कंटेंट में नहीं उलझते। 

रोज़ाना सत्संग सुनने से बच्चों को एक आध्यात्मिक सुरक्षा कवच मिलता है, जो उन्हें डिजिटल दुनिया की बुराईयों से बचाता है। साथ ही, संत जी अच्छी संगति की महत्ता बताते हैं, जिससे बच्चे सकारात्मक माहौल में रहकर सही दिशा में आगे बढ़ते हैं। इस प्रकार, संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान बच्चों को एक सुरक्षित, संस्कारी और उज्ज्वल भविष्य प्रदान करते हैं।  अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक “जीने की राह” अवश्य पढ़े और Sant Rampal Ji Maharaj app download करें।

डिजिटल चरमपंथ फंसा रहे पोर्न, खून खराबे के जाल में मासूम बच्चों को ” से संबंधित मुख्य FAQs 

1 . इंटरनेट पर बच्चों को कट्टरपंथी कैसे बनाया जा रहा है?

उत्तर: चरमपंथी संगठन बच्चों को गेमिंग ऐप्स, सोशल मीडिया और वीडियो प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए टारगेट करते हैं। शुरुआत में सामान्य या धार्मिक जानकारी देकर धीरे-धीरे उन्हें हिंसा, पोर्न और कट्टरता भरे कंटेंट तक पहुंचाया जाता है।

2. चरमपंथी संगठन बच्चों को क्यों निशाना बना रहे हैं?

उत्तर :बच्चों का दिमाग कोमल और आसानी से प्रभावित होने योग्य होता है। उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार कर, लंबे समय में संगठन अपनी विचारधारा थोपते हैं और उपयोग करते हैं।

3 . बच्चों को इस खतरे से कैसे बचाया जा सकता है?

उत्तर : उन्हें नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देना, इंटरनेट पर निगरानी रखना, समय का सदुपयोग सिखाना और परिवार में मिलजुल कर रहने से ही इस खतरे से बचाया जा सकता है ।

4 .माता-पिता को क्या कदम उठाने चाहिए?

उत्तर: बच्चों के डिजिटल व्यवहार पर नज़र रखें, उन्हें प्यार से मार्गदर्शन दें, और उनकी भावनात्मक और मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश करें।

5 . कट्टरपंथ का यह तरीका पहले क्यों नहीं देखा गया?

उत्तर: पहले कट्टरपंथी संपर्क भौतिक माध्यमों से होते थे, लेकिन अब डिजिटल माध्यमों ने इसे छिपकर और तेज़ी से फैलने वाला बना दिया है।

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